इतिहासप्राचीन भारतसिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी की सभ्यता : महत्त्वपूर्ण तथ्य

सिंधु घाटी की सभ्यता : महत्त्वपूर्ण तथ्य

रेडियोकार्बन C-14 जैसी विश्लेषण-पद्धति के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता की तिथि 2400 ई.पू.से 1700 ई.पू. मानी गई है।

रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1947 ई. में शिकागो विश्वविद्यालय के विलार्ड फ्रैंक लिब्बी और उनके साथियों ने किया था।

सिन्धु सभ्यता (सैन्धव सभ्यता) की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने 1921 ई. में की थी।

इस सभ्यता के लिये साधारणत- तीन नामों – सिन्धु सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता, हङप्पा सभ्यता और सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का प्रयोग किया जाता है।

सिन्धु सभ्यता त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई थी तथा इसका क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किमी. था।

1826 ई. में सर्वप्रथम चार्ल्स मर्सन को हङप्पा से बङी संख्या में ईंटें प्राप्त हुई थी।

1856 ई. में कराची और लाहौर के बीच रेल-मार्ग बनाने के लिये ईंटों की आवश्यकता हुई, परिणामस्वरूप हङप्पा के खंडहरों की खुदाई की गयी। खुदाई करते समय ही यहाँ एक अति प्राचीन विकसित सभ्यता होने का आभास हुआ।

विद्वानों ने हङप्पा को सिन्धु सभ्यता की प्रथम राजधानी माना।

मोहनजोदङो का आकार लगभग एक वर्ग मील है, जो कि पश्चिमी और पूर्वी दो खंडों में विभाजित है। पश्चिमी खंड पूर्वी खंड की तुलना में छोटा है।

कालीबंगा के उत्खनन में निचली सतह से पूर्व सिन्धु सभ्यता और ऊपरी सतह से सिन्धु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुये हैं।

फर्श में अलंकृत ईंटों का प्रयोग केवल कालीबंगा में ही किया गया है।

कालीबंगा के उत्खनन से काले रंग की चूङियाँ प्राप्त हुयी हैं।

कालीबंगा से मिट्टी के बर्तन से सूती वस्त्र की छाप मिली है।

हङप्पा से प्राप्त भंडारागार का प्रमुख प्रवेश द्वार नदी की ओर से था।

हङप्पा के बर्तनों पर लेख प्राप्त हुये हैं।

यहाँ से प्राप्त कुछ बर्तनों पर मानव आकृतियाँ भी बनी हुयी मिली हैं।

हङप्पा से एक दर्पण प्राप्त हुआ है, जो ताँबे का बना है।

ऐसा अनुमान है, कि स्वास्तिक चिह्न हङप्पा की ही देन है।

हङप्पा से प्राप्त मुद्रा में गरुङ का अंकन मिला है।

हङप्पा से काँसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुयी है।

हङप्पा से ताँबे की बनी हुई एक इक्का गाङी प्राप्त हुयी है।

मोहनजोदङो से प्राप्त किसी भी बर्तन पर लेख नहीं मिला है।

सिन्धुवासियों को लोहे की जानकारी नहीं थी।

सिंधु लिपि दाईं ओर से बाईं ओर और बाईं ओर से दाहिनी ओर लिखी जाती थी।

सिंधुवासियों की लिपि चित्र प्रधान लिपि थी। इस लिपि में लगभग 400 वर्ण हैं।

सिंधु सभ्यता की सभी सङकें मिट्टी की बनी थी।

सिंधुवासी अधिकांशतः पकी मिट्टी के बर्तन बनाते थे।

सिंधुवासी राजस्थान स्थित खेतङी की खदानों से ताँबा प्राप्त करते थे।

ऐसा माना जाता है, कि सिन्धुवासी नींबू से भी परिचित थे।

कर्नल स्यूयल का विचार है, कि सिंधुवासी हिरणों के सींग का चूर्ण बनाकर तथा समुद्रफेन को औषधि के रूप में प्रयोग करते थे।

सिंधुवासी पशुपति महादेव की पूजा करते थे।

मोहनजोदङो के उत्खनन में सात पर्त मिली हैं, जिनसे पता चलता है, कि यह नगर सात बार बसाया गया होगा।

मोहनजोदङो से पाँच बेलनाकार मुद्राएँ प्राप्त हुयी हैं।

मोहनजोदहों से कुछ अश्वों की हड्डियाँ प्राप्त हुयी हैं।

लोथल से एक शव प्राप्त हुआ है, जो कब्र में करवट लिये हुये लिटाया गया है। शव का सिर पूरब तथा पैर पश्चिम दिशा में हैं।

लोथल में एक ऐसी कब्र मिली है, जिसमें दो शव एक-दूसरे से लिपटे हुये हैं।

लोथल और कालीबंगा से अग्न-कुंड प्राप्त हुये हैं।

लोथल से गोदी के अवशेष प्राप्त हुये हैं।

रंगपुर से कोई सील अथवा मातृदेवी की प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई है।

चन्हूदङो से प्राप्त एक पात्र में जला हुआ कपाल मिला है।

चन्हूदङो से एक मनके बनाने का कारखाना प्राप्त हुआ है।

सिन्धु प्रदेश में मंदिर होने के कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुआ है।

सिंधुवासियों ने सर्वप्रथम कपास की खेती की थी।

सिंधुकालीन मुद्राओं के निर्माण में विभिन्न प्रकार के पदार्थों के प्रयोग के साथ ही सेलखङी का प्रयोग बहुतायत में किया जाता था।

सिंधुकालीन मुद्राएँ वर्गाकार, चतुर्भुजाकार तथा बेलनाकार होती थी।

सिंधुकालीन मुहरों पर पक्षियों के चित्र अंकित नहीं मिले हैं।

सिंधुकालीन नारी की मूर्तियों में कुरूपता दर्शित होती है।

उत्खनन में प्राप्त सूइयों से पता चलता है, कि सिंधुवासी सिले हुये कपङे पहनते थे।

सिंधुकालीन मिट्टी से निर्मित सङकों की चौङाई 30 से 35 फुट तक हुआ करती थी।

सिंधुकालीन गलियाँ प्रायः 3 फुट चौङी हुआ करती थी।

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