इतिहासप्राचीन भारतसिंधु घाटी सभ्यता

हड़प्पा नगर किस सभ्यता से संबंधित है

हङप्पा सैन्धव सभ्यता का प्रमुख स्थल है,जो पंजाब (पाकिस्तान)के मान्टमोगरी जिले में स्थित है।यह स्थल रावी नदी के बायें तट पर स्थित है। यह नगर लगभग तीन मील की परिधि में स्थित था। यहां के अवशेषों में दुर्ग, रक्षाप्राचीर, निवासगृह, चबूतरे तथा अन्नागार महत्त्वपूर्ण हैं।

हङप्पा की खोज का इतिहास

हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में ‘चार्ल्स मैन्सर्न’ ने दी।1856 ई. में ‘ब्रण्टन बन्धुओं’ ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।जॉन मार्शल ने1921 ई. में इस स्थल को स्पष्ट किया। जॉन मार्शल के निर्देशन में 1922 ई. में दयाराम साहनी ने इस स्थल का उत्खनन कार्य प्रारम्भ करवाया।

1946 में मार्टीमर ह्वीलर ने हड़प्पा के पश्चिमी दुर्ग टीले की सुरक्षा की प्राचीर का स्वरूप ज्ञात करने के लिए यहाँ उत्खनन करवाया। इसी उत्खनन के आधार पर ह्वीलर ने रक्षा प्राचीन एवं समाधि क्षेत्र के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित किया है। यह नगर 5 कि.मी. के क्षेत्र में बसा हुआ है। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को ‘नगर टीला’ तथा पश्चिमी टीले को ‘दुर्ग टीला’ के नाम से सम्बोधित किया गया। हड़प्पा का दुर्ग क्षेत्र सुरक्षा – प्राचीर से घिरा हुआ था। दुर्ग का आकार समलम्ब चतुर्भुज की तरह था। दुर्ग का उत्तर से दक्षिण से लम्बाई 420 मी. तथा पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 196 मी. है। उत्खननकर्ताओं ने दुर्ग के टीले को माउण्ट ‘AB’ नाम दिया है। दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर-दिशा में तथा दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में था। रक्षा-प्राचीर लगभग 12 मीटर ऊंची थी जिसमें स्थान-स्थान पर तोरण अथवा बुर्ज बने हुए थे। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6 मीटर ऊंचे टीले को ‘एफ‘ नाम दिया है गया है जिस पर अन्नागार, अनाज कूटने की वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं। पडरी हड़प्पाई नगर, हड़प्पा पूर्व व विकसित हड़प्पा काल के दो सांस्कृतिक चरणों को स्पष्ट करता है।

हङप्पा से मिला विशाल अन्नागार

हङप्पा से 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाला एक अन्नागार प्राप्त हुआ हैं। हड़प्पा के ‘एफ‘ टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मी. है। हर चबूतरे में सम्भवतः ओखली लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए गेहूँ तथा जौं के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है।

‘मार्टीमर ह्रीलर’ का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा। श्रमिक आवास के रूप में विकसित 15 मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं, जिनमें उत्तरी पंक्ति में सात एवं दक्षिणी पंक्ति में 8 मकानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।प्रत्येक गृह में कमरे तथा आंगन होते थे। इनमें मोहनजोदाड़ो के ग्रहों की भांति कुएं नहीं मिले हैं। श्रमिक आवास के पास ही 14 भट्टों और धातु बनाने की एक मूषा (Crucible) के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण अवशेष मिले हैं जैसे – एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे

हङप्पा से मिला कब्रिस्तान

हड़प्पा से एक ऐसा कब्रिस्तान मिला है,जिसे समाधि आर-37 नाम दिया गया है। यहाँ पर सबसे पहले माधोस्वरूप वत्स ने उत्खनन कराया था, बाद में 1946 में ह्वीलर ने भी यहाँ पर उत्खनन कराया था।

यहाँ पर खुदाई से कुल 57 शवाधान मिले हैं।इन शवों को उत्तर-दक्षिण दिशा में दफनाए गया है। तथा इनके सिर उत्तर दिशा की ओर होते थे। एक कब्र में लकड़ी के ताबूत में लाश को रखकर यहाँ दफनाया गया था। 12 शवाधानों से ‘कांस्य दर्पण’ भी पाए गए हैं। एक सुरमा लगाने की सलाई, सीपी की चम्मच एवं कुछ पत्थर के फलक (ब्लेड) पाए गए हैं। हड़प्पा में सन् 1934 में एक अन्य समाधि मिली थी जिसे समाधि ‘एच’ नाम दिया गया था। इसका संबंध सिन्धु सभ्यता के बाद के काल से था।

सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्य नगरों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी

References:
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक-के.सी.श्रीवास्तव

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