इतिहासदक्षिण भारतपल्लव राजवंशप्राचीन भारत

पल्लव काल में शासन व्यवस्था कैसी थी

काञ्ची के पल्लव नरेश ब्राह्मण धर्मानुयायी थे। अतः उन्होंने धर्ममहाराजाधिराज अथवा धर्ममहामात्र की उपाधि धारण की। उनकी शासन पद्धति के अनेक तत्व मौर्यों तथा गुप्तों की शासन पद्धतियों से लिये गये थे। शासन का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था। उसकी उत्पत्ति दैवी मानी जाती थी। पल्लव नरेश अपनी उत्पत्ति ब्रह्मा से मानते थे। पल्लव नरेश कुशल योद्धा, विद्वान एवं कला प्रेमी थे। युवराज का पद अत्यंत महत्वपूर्ण होता था और वह अपने अधिकार से भूमि दान में दे सकता था।

पल्लव सम्राट के पास अपनी मंत्रिपरिषद थी, जिसकी सलाह से वह शासन करता था। पल्लव नरेश लेखों में अमात्य शब्द का उल्लेख मिलता है। बैकुण्ठपेरुमाल लेख में नंदिवर्मन की मंत्रिपरिषद का उल्लेख मिलता है। किन्तु मंत्रियों के विभागों अथवा कार्यों के विषय में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। ऐसा लगता है, कि प्रमुख विषयों पर मंत्रणा करने के लिये राजा के पास कुछ खास मंत्री होते थे, जिन्हें रहस्यादिकद कहा जाता था।

पल्लवकालीन प्रमुख अधिकारी

पल्लव लेखों में शासन के कुछ प्रमुख अधिकारियों के नाम इस प्रकार मिलते हैं –

  • सेनापति,
  • राष्ट्रिक(जिले का प्रधान अधिकारी),
  • देशाधिकृत (स्थानीयसंरक्षक),
  • ग्रामभोजक (गाँव का मुखिया),
  • अमात्य,
  • आरक्षाधिकृत गौल्मिक (सैनिक चौकियों के प्रधान),
  • तैर्थिक (तीर्थों अथवा घाटों का सर्वेक्षक),
  • नैयोजिक,
  • भट्टमनुष्य,
  • संचरन्तक (गुप्तचर) आदि।

प्रांतीय व्यवस्था

विशाल पल्लव साम्राज्य विभिन्न प्रांतों में विभाजित किया गया था। प्रांत की संज्ञा थी, राष्ट्र या मंडल। राष्ट्रिक नामक पदाधिकारी इसका प्रधान होता था। यह पद युवराज, वरिष्ठ अधिकारियों अथवा कभी-कभी पराजित राजाओं को भी प्रदान किया जाता था। राष्ट्रिक, अधीन सामंतों के ऊपर भी नियंत्रण रखता था। मंडल के शासक अपने अपने पास सेना रखते थे तथा उनकी अपना अदालतें भी होती थी। कालांतर में उनका पद आनुवंशिक हो गया था। ऐसा प्रतीत होता है, कि अधिकारियों को वेतन के बदले भूमि का अनुदान ही दिया जाता था।

ग्रामसभा

दक्षिण भारतीय प्रशासन की प्रमुख तत्व ग्रामसभा या समिति होती थी और यह पल्लव काल में भी रही थी। प्राचीन लेखों से पता चलता है, कि ग्रामों का संगठन ग्रामकेय अथवा मुटक के नेतृत्व में किया गया था। राजकीय आदेश उसी को संबोधित करके भेजे जाते थे। ग्रामसभा की बैठक एक विशाल वृक्ष के नीचे होती थी। इस स्थान को मन्रम कहा जाता था।

ग्राम प्रायः दो प्रकार के होते थे-

  1. ब्रह्मदेय
  2. सामान्य।

कर प्रणाली

ग्रामों में ब्राह्मणों की आबादी अधिक होती थी तथा इनसे कोई कर नहीं लिया जाता था। सामान्य ग्रामों में विभिन्न जातियों के लोग रहते थे तथा भूराजस्व के रूप में उन्हें राजा को कर देना पङता था। यह छठें से दसवें भाग तक होता था। इसके अलावा कुछ स्थानीय कर भी लगते थे तथा इनकी वसूली भी ग्राम सभा द्वारा ही की जाती थी। लेखों से अठारह पारंपरिक करों (अष्टादश परिहार) का उल्लेख मिलता है।

सेना

पल्लवों के पास एक शक्तिशाली सेना भी थी। इसमें पैदल अश्वारोही तथा हाथी होते थे। उनके पास नौ सेना भी थी। महाबलिपुरम् तथा नेगपत्तन् नौ सेना के केन्द्र थे। नौ सैनिक युद्ध के अलावा अन्य कार्य भी करते थे। तथा दक्षिण – पूर्व एशिया से व्यापार में इनसे सहायता ली जाती थी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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