प्राचीन भारतअशोकइतिहासमौर्य साम्राज्य

अशोक के धम्म का स्वरूप कैसा था

धम्म में दार्शनिक एवं तत्वमीमांसीय प्रश्न की पूरी तरह से किसी भी प्रकार की समीक्षा नहीं की गयी है।धम्म में जिन सामाजिक एवं नैतिक आचारों का समावेश किया है, वे वही हैं, जिन्हें संप्रदाय समान रूप से सही मानते हैं।धम्म क्या है?

धम्म में न तो महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्यों का उल्लेख है, न अष्टांगिक मार्ग हैं और न आत्मा-परमात्मा संबंधी अवधारणायें हैं। अतः विद्वानों ने धम्म को भिन्न-2 रूपों में देखा है।बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का विवरण।

फ्लीट इसे राजधर्म मानते हैं, जिसका विधान अशोक ने अपने कर्माचरियों के पालनार्थ किया था। परंतु इस प्रकार का निष्कर्ष तर्कसंगत नहीं लगता, क्योंकि अशोक के लेखों से स्पष्ट हो जाता है, कि उसका धम्म केवल कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं था, अपितु वह सामान्य जनता के लिये भी था।

YouTube Video

राधाकुमुद मुकर्जी ने इसे सभी धर्मों की साझी संपत्ति बताया है।उनके अनुसार अशोक का व्यक्तिगत धर्म ही बौद्ध धर्म था, तथा उसने साधारण जनता के लिये जिस धर्म का विधान किया वह वस्तुतः सभी धर्मों का सार था। अशोक की धार्मिक नीति।

रमाशंकर त्रिपाठी एवं विंसेट स्मिथ जैसे कुछ अन्य विद्वानों ने भी इसी मत का समर्थन किया है।

त्रिपाठी के अनुसार अशोक के धम्म के तत्त्व विश्वनीय हैं। और हम उस पर किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहन अथवा संरक्षण प्रदान करने का दोषरोपण नहीं कर सकते। बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य।

फ्रांसीसी विद्वान सेनार्ट का विचार है कि अपने लेखों में अशोक ने जिस धम्म का उल्लेख किया है, वह उसके समय के बौद्ध धर्म का एक पूर्ण तथा सर्वांगीण चित्र प्रस्तुत करता है। धम्म विजय का उल्लेख करो।

रोमिला थापर का विचार है, कि धम्म अशोक का अपना आविष्कार था। संभव है, इसे बौद्ध तथा हिन्दू विचारधारा से ग्रहण किया गया हो, किन्तु सार रूप में यह सम्राट द्वारा जीवन पद्धति को सुझाने का एक ऐसा प्रयास थो, जो व्यावहारिक तथा सुविधाजनक होने के साथ-2 अत्यधिक नैतिक था। इसका उद्देश्य उन लोगों के बीच सुखद समन्वय स्थापित करना था, जिनके पास दार्शनिक चिंतन में उलझने का अवकाश नहीं था।

प्रसिद्ध विद्वान डी.आर.भंडारकर के अनुसार न तो अशोक का धम्म सभी धर्मों का सार ही है, और न ही उसमें बौद्ध धर्म का पूर्ण एवं सर्वांगीण चित्रण है। उनके विचार में अशोक का धम्म सभी धर्मों का मूल स्रोत बौद्ध धर्म ही है।अशोक के समय बौद्धधर्म के दो रूप थे – 1) भिक्षु बौद्ध धर्म और 2) उपासक बौद्धधर्म।

उपासक बौद्ध धर्म सामान्य गृहस्थों के लिये था। अशोक गृहस्थ था। अतः उसने बौद्ध धर्म के दूसरे रूप को ही ग्रहण किया। इस दर्म के अंतर्गत साधारण गृहस्थों के लिए सामाजिक एवं नैतिक नियमों का समावेश रहता था।

अशोक के धम्म तथा बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित उपासक धर्म के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है, कि उसने धम्म के जिन गुणों का निर्देश किया है, वे दीघनिकाय के सिगालोवादुसत्त में उसी प्रकार देखे जा सकते हैं।

इसमें उन उपदेशों का संग्रह हुआ है, जिन्हें बुद्ध ने साधारण गृहस्थों के लिये अनुकरणीय बताया था। इसी कारण इस सुत्त गिहिविनय (गृहस्थियों के लिये उपदेश) भी कहा गया है। इसमें माता-पिता की सेवा, गुरुओं का सम्मान, मित्रों, संबंधियों, परिचितों तथा ब्राह्मण-श्रमण-साधुओं के साथ उदारता और दास-भृत्यों के साथ उचित व्यवहार करने का उपदेश दिया गया है।

अशोक ने धम्म पालन से प्राप्त होने वाले जिन स्वर्गीय सुखों का उल्लेख किया है, उनका भी विमानवत्थु नामक पालिग्रंथ में, इसी रूप में विवरण देखा जा सकता है।

अतः इन समानताओं को देखते हुए भंडारकर अशोक के धम्म को उपासक बौद्धधर्म कहते हैं। इस निष्कर्ष की पुष्टि अशोक के प्रथम लघु शिलालेख से भी हो जाती है।इस शिलालेख में वह कहता है, कि संघ के साथ संबंध हो जाने के बाद उसने धम्म के प्रति अधिक उत्साह दिखाया। यदि अशोक के लेखों का धम्म बौद्ध धर्म नहीं होता तो बौद्ध ग्रंथ तथा कथानक कभी भी उसका चित्रण अपने धर्म के महान् पोषक एवं संरक्षक के रूप में नहीं करते।

इस प्रकार उपासक बौद्ध धर्म ही अशोक के धम्म का मूल स्रोत था। यही कारण है, कि इसका लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति न होकर स्वर्ग की प्राप्ति बताया गया है।

रोमिला थापर की धारणा है, कि अशोक की धम्म नीति उसके द्वारा स्थापित किये गये सुविस्तृत साम्राज्य में एकता स्थापित करने के उद्देश्य से अपनायी गयी है, यह एकता या तो कठोर केन्द्रीय नियंत्रण या भावनात्मक एकता के द्वारा स्थापित की जा सकती थी।

अशोक प्रथम मौर्य सम्राट था, जिसने भावनात्मक एकता के महत्त्व को समझा तथा इसी को प्राप्त करने के लिए धम्म का प्रचार किया। थापर के अनुसार अशोक ने धम्म को सामाजिक उत्तरदायित्व की एक वृत्ति के रूप में देखा था। इसका उद्देश्य एक ऐसी मानसिक वृत्ति का निर्माण करना था, जिसमें सामाजिक उत्तरदायित्वों को, समाज के क्रियाकलापों में मानवीय भावना का संचार करने का आग्रह था।

अशोक सच्चे ह्रदय से अपनी प्रजा का भौतिक तथा नैतिक कल्याण करना चाहता था, और इसी उद्देश्य से उसने अपनी धम्म नीति का विधान किया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!