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फ्रांस की क्रांति के परिणाम

फ्रांस की क्रांति के परिणाम

फ्रांस की क्रांति के परिणाम (Results of the French Revolution)

राष्ट्रीयता का विकास

फ्रांस की क्रांति ने समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया। फ्रांस की क्रांति के परिणामस्वरूप ही यूरोप में निरंतर राष्ट्रीय क्रांतियां होने लगी। इटली, जर्मनी, बेल्जियम, हॉलैण्ड, यूनान, पौलेण्ड आदि में 1830 व 1848 ई. के दौरान क्रांति हुई। वस्तुतः 19 वीं शताब्दी यूरोप में राष्ट्रीयता की शताब्दी कहलाई। राष्ट्रीयता की यह लहर 20 वीं शताब्दी में भी चलती रही। अनेक देशों में राष्ट्रीय आंदोलन हुए जो बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायक हुए। फ्रांस में 1848 की क्रांति

फ्रांस की क्रांति के परिणाम

जनतंत्र की विजय

फ्रांस की क्रांति ने सदियों से चल रहे सामंतवाद का अंत कर जनतंत्रात्मक शासन की स्थापना के युग को प्रारंभ किया। धर्म निरपेक्ष एवं जनप्रतिनिध्यात्मक शासन प्रणाली अनेक राज्यों द्वारा अपनाई जाने लगी। समाज में उच्च व निम्न वर्गीय असमानता खत्म हुई। व्यक्ति का महत्त्व बढा कृषकों व श्रमिक वर्गों में चेतना का उदय हुआ। कानून के समक्ष समानता एवं संवैधानिक शासन की स्थापना की मांग सर्वत्र फैलती रही।

निरंकुश राजतंत्र शासन का अंत

दैवीय अधिकारों से विभूषित राजा और उसकी निरंकुश राजसत्ता का स्थानान्तरण अव जन प्रतिनिधियों के हाथों में हुआ। वंशानुगत, कुलीन, भ्रष्ट, राज्याधिकारी, न्यायाधीशों के स्थान पर योग्य, प्रशिक्षित और चयनित व्यक्ति नियुक्त किए जाने लगे जो संविधान के अनुसार कार्य करने को बाध्य थे। न्यायालयों में ज्यूरी पद्धति का भी निरंतर विकास हुआ।

समाजवाद का विकास

असमानता एवं अन्याय के विरुद्ध हुई फ्रांस की क्रांति ने फ्रांस में सभी लोगों को संविधान द्वारा समान घोषित किया। सभी को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए गए। सामाजिक बंधन तोङे गए। मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों को मान्यता दी गयी फ्रांस में समान कानून एवं कर व्यवस्था स्थापित की गयी। विशेषाधिकार प्राप्त कुलीनों व सामंत वर्गों को समाप्त घोषित किया गया। दास प्रथा का अत हुआ। कृषक व श्रमिक शोषण से मुक्त हुए। सामाजिक असमानता समाप्त हुई, जिसका प्रभाव सभी देशों पर पङा।

शिक्षा व संस्कृति का विकास

शिक्षा पर चर्च का नियंत्रण समाप्त घोषित किया गया। शिक्षा को राष्ट्रीय एवं धर्म निरपेक्ष बनाया गया। पुरातन व्यवस्था में व्याप्त अंधविश्वास नष्ट हो गये। फ्रांस का साहित्यकार, लेखन में स्वतंत्र व स्वच्छंद हो गया। राष्ट्रीय शिक्षण संस्थायें स्थापित हुई जिनमें मानववादी दर्शन, विज्ञान और विशुद्ध धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाने लगी। राजभक्ति का स्थान राष्ट्रभक्ति ने एवं परतंत्रता का स्थान स्वतंत्रता से युक्त पाठ्यक्रमों ने लिया।

चर्च की प्रतिष्ठा का पतन

राज्य के समानान्तर अधिकार सम्पन्न संस्था चर्च जो कि कर एकत्र करना, न्याय करना आदि कार्य भी करता था। राज्य के अंदर चर्च का पृथक राज्य था। क्रांति द्वारा चर्च की संपत्ति को राज्य ने अधिग्रहीत कर लिया। पादरी राज्य के वेतन भोगी बना दिये गए। पादरी अब राज्य, जनता एवं संविधान के नाम पर शपथ लेने लगे। अतः क्रांति ने राजनीति पर धर्म के प्रभाव को समाप्त किया।

आर्थिक विकास को गति

फ्रांस की अधिकांश भूमि जो चर्च व सामंतों के स्वामित्व में थी, उसे छीनकर भूमिहीन कृषकों में बांट दी गयी। परिणाम स्वरूप सर्वत्र कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई समान कर व्यवस्था से आर्थिक शोषण बंद हो गया। चुंगी की समान दरों के कारण व्यापार-वाणिज्य को भी प्रोत्साहन मिला। विशेषाधिकार प्राप्त निरंकुश वर्ग के पतन से औद्योगिक प्रगति भी संभव हुई।

सैन्य व्यवस्था का आधुनिकीकरण

क्रांति के बाद फ्रांस को क्रांति के शत्रु यूरोपीय राष्ट्रों की चुनौती का सामना करना पङा। अतः फ्रांस की सैन्य व्यवस्था को आधुनिक बनाया गया। 25 वर्षीय प्रत्येक युवक को अनिवार्य सैन्य सेवा नियम के तहत सेना में भरती होना अनिवार्य किया गया। 10 लाख की सुदृढ सेना तैयार हुई जिसने विदेशियों का मुकाबला किया। सैन्य सामग्री संसाधन एवं शस्त्रास्त्रों की आधुनिकता के कारण ही नेपोलियन बोनापार्ट ने यूरोप को नतमस्तक किया। अब फ्रांस की सेना में वंशानुगत पदोन्नति बंद कर दी गयी। सामान्य वर्ग के योग्य लोगों को सेना में उच्च पद दिये गये। नेपोलियन बोनापार्ट इसका उदाहरण था।

यूरोप में प्रतिक्रियावाद का जन्म

स्वतंत्रता,समानता एवं भ्रातृत्व भाव के उदारवादी एवं प्रजातंत्रात्मक सिद्धांत, यूरोप के लगभग सभी देशों के दैवीय निरंकुश राजतंत्र को चुनौती थे। अतः यूरोप में राष्ट्रवादी विचारों के विरुद्ध प्रतिक्रियावाद का उदय हुआ। 1815 ई. से 1848 ई. तक का काल प्रतिक्रियावाद का काल माना जाता है।

फ्रांस की क्रांति का महत्त्व

फ्रांस की क्रांति के बारे में चिन्तन का निष्कर्ष यह निकलता है, कि यह ऐसी क्रांति थी जो कुलीन वर्गीय रूप में प्रारंभ हुई और सैनिक तानाशाही में समाप्त हुई। एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया जाना कुलीन वर्ग की सफलता थी। यदि फ्रांस के जागरुक मध्यम वर्ग का कुलीन वर्ग से स्थायी सामंजस्य स्थापित हो जाता तो क्रांति निस्संदेह स्थायी छाप छोङती।

राजतंत्र का सहारा लेकर कुलीन वर्ग ने मध्यम वर्ग का दमन करने की कोशिश की अतः सामान्य जनता के सहारे मध्यवर्ग की भावना ने क्रांति का स्वरूप ग्रहण कर लिया। बिना रक्तपात के संपन्न हुई क्रांति में हिंसा व आतंक का प्रवेश हो गया। अनिश्य, अराजकता व अशांति ने अंततः नेपोलियन बोनापार्ट को फ्रांस का संप्रभु शक्ति संपन्न सम्राट बना दिया।

फ्रांस की क्रांति की सबसे बङी देन स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्वभाव जैसे शाश्वत मानवतावाद आदर्श है जो संपूर्ण विश्व में प्रायः सभी देशों के संविधानों के मूलभूत आधार बने।

महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर

प्रश्न 1.) अमेरिका का नाम किस नाविक के नाम पर पङा?

उत्तर – एमेरिगो वेस्पुची के नाम पर ।

प्रश्न 2.) अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसायटी की स्थापना किसने की?

उत्तर –बेंजामिन फ्रेंकलिन ने ।

प्रश्न 3.) फ्रांस की क्रांति के समय फ्रांस का राजा कौन था?

उत्तर – लुई सोलहवां।

प्रश्न 4.) फ्रांस में चर्च को स्वेच्छा से दी जाने वाली भेंट, जो बाद में बाध्यकारी कर हुआ, को क्या कहते हैं?

उत्तर – टाइथ नामक कर।

प्रश्न 5.) नेपोलियन बोनापार्ट जब लेफ्टिनेन्ट बना उसकी उम्र क्या थी?

उत्तर – 16 वर्ष।

प्रश्न 6.) वाटरलू के मैदान में नेपोलियन बोनापार्ट ने समर्पण कब किया?

उत्तर – 15 जुलाई, 1815 ई. को।

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