प्राचीन भारतइतिहाससातवाहन वंश

सातवाहनकालीन धार्मिक दशा कैसी थी

सातवाहन राजाओं का शासन-काल दक्षिण में वैदिक तथा बौद्ध धर्मों की उन्नति का काल था। स्वयं सातवाहन नरेश वैदिक (ब्राह्मण) धर्म के अनुयायी थे। शातकर्णी प्रथम ने अनेक वैदिक यज्ञों – अश्वमेघ, राजसूय आदि का अनुष्ठान किया था तथा इस अवसर पर उसने गौ, हस्ति, भूमि आदि दक्षिणा स्वरूप प्रदान की थी। उसने अपने एक पुत्र का नाम वेदश्री रखा तथा संकर्षण, वासुदेव, इन्द्र, सूर्य और चंद्र की पूजा की।

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विविध प्रकार के वैदिक यज्ञ

बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य।

वैदिक धर्म।

गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक प्रशस्ति में वेदों का आश्रय तथा अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है। सातवाहन लेखों में शिव पालित, शिवदत्त, कुमार आदि नाम मिलते हैं, जिनसे शिव तथा स्कंद की पूजा की सूचना मिलती है। इसी प्रकार विष्णुपालित जैसे नामों से विष्णु-पूजा का संकेत मिलता है।

परंतु स्वयं ब्राह्मण होते हुए भी सातवाहन नरेश अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। उन्होंने अपने शासन में बौद्ध धर्म को भी संरक्षण एवं प्रोत्साहन प्रदान किया था। ईसा की प्रथम दो शताब्दियों – जो सातवाहनों के पुनरुत्थान का काल था – में इस धर्म का सर्वाधिक विकास हुआ। यह दो सौ वर्षों का काल दक्षिण में बौद्ध धर्म के लिये सर्वाधिक गौरवशाली युग था। इस समय पश्चिमी दक्कन में क्षहरातों तथा सातवाहनों में विहारों का निर्माण कराने के लिये पारस्परिक होङ सी लग गयी।

सातवाहन काल में दक्कन की सभी गुफायें बौद्ध धर्म से ही संबंधित हैं। कार्ले तथा नासिक में अनेक गुहा-विहारों तथा गुहा-चैत्यों का निर्माण हुआ। अमरावती, नागार्जुनीकोण्ड, श्रीशैल आदि इस धर्म के प्रधान केन्द्र थे। सातवाहनों के उत्तराधिकारी ईक्ष्वाकुवंशी राजाओं के समय में भी बौद्ध धर्म की उन्नति हुई। नागर्जुनीकोण्ड तथा जग्गयपेट में अनेक स्तूप, चैत्य तथा विहार बनवाये गये।के

सातवाहन युग में स्तूप, बोधिवृक्ष, बुद्ध के चरणचिन्हों, त्रिशूल, धर्मचक्र, बुद्ध तथा अन्य बङे संतों के धातु-अवशेषों की भी पूजा की जाती थी। बौद्ध-तीर्थ स्थलों की यात्रा इस समय की एक सामान्य प्रथा थी। इस समय बौद्ध संघ के अंतर्गत कई संप्रदाय हो गये थे, जैसे- भदायनीय ( ये नासिक तथा कन्हेरी में रहते थे), धम्मोत्तरीय (ये सोपारा में निवास करते थे) तथा महासंघिक (कार्ले तथा उसके आस-पास निवास करते थे)। परंतु इन संप्रदायों के बीच आपसी कलह अथवा विद्वेष की भावना नहीं थी और कभी-2 एक ही विहार में कई संप्रदाय के भिक्षु निवास करते थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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