इतिहासप्राचीन भारत

संस्कृत के महान लेखक श्रीहर्ष का परिचय

बारहवीं शती के प्रसिद्ध कवि श्रीहर्ष बनारस एवं कन्नौज के गहङवाल शासकों – विजयचंद्र एवं जयचंद्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें नैषधचरित महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है। इसमें 22 सर्ग तथा 2830 श्लोक हैं। नैषधरित में निषध देश के शासक नल तथा विदर्भ के शासक भीम की कन्या दमयंती के प्रणय संबंधों तथा अन्ततोगत्वा उनके विवाह की कथा का काव्यात्मक वर्णन मिलता है।

श्रीहर्ष भारवि की परंपरा के कवि हैं। उन्होंने अपी रचना विद्वज्जनों के लिये की, न कि सामान्य मनुष्यों के लिये। इस बात की उन्हें तनिक चिन्ता नहीं है, कि सामान्य जन उनकी रचना का अनादर करेंगे। वे स्वयं यह स्वीकार करते हैं, कि उन्होंने अपने काव्य में कई स्थानों पर गूढ तत्वों (ग्रंथ ग्रंथि) का समावेश कर दिया है, जिसे केवल पंडितजन ही समझ सकते हैं। अतः पंडितों की दृष्टि में तो उनका काव्य माघ तथा भारवि से भी बढकर है – “उदिते नैषधेकाव्ये क्व माघः क्व च भारवि”। किन्तु आधुनिक विद्वान इसे कृत्रिमता का भंडार कहते हैं।

श्रीहर्ष में उच्चकोटि की काव्यात्मक प्रतिभा है तथा वे अलंकृत शैली के सर्वश्रेष्ठ काव्यकार हैं। वे श्रृंगार के कला पक्ष के कवि हैं। उनका श्रृङ्गार वर्णन वात्स्यायन के कामसूत्र के आधार पर किया गया है। नखशिख वर्णन में उन्होंने विशेष अभिरुचि ली है, किन्तु वह अस्वाभाविक सा लगता है। श्रीहर्ष महान कवि के साथ-साथ बङे दार्शनिक भी थे। खंडनखंडखाद्य नामक ग्रंथ में उन्होंने अद्वैतवाद का प्रतिपादन किया है। इसमें न्याय के सिद्धांतों का खंडन किया गया है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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