चौसा का युद्ध क्यों हुआ ? | Chausa ka yuddh kyon hua ? | Why did the battle of Chausa take place?
चौसा का युद्ध – यह युद्ध 26 जून, 1539 ई. में हुमायूँ एवं शेर खां के मध्य लङा गया था। इस युद्ध में शेरखां की विजय हुई। अर्थात यह युद्ध मुगलों एवं अफगानों के मध्य हुआ थआ। जिसमें अफगानों की विजय हुई थी।
चौसा का युद्ध का इतिहास

हुमायूँ के आगरा लौटने की सूचना पाकर शेर खां उसे मार्ग में रोकने का निश्चय किया। इस उद्देश्य से उसने बिहार और जौनपुर आदि स्थानों से अपने सैनिकों को रोहतास के दुर्ग के निकट एकत्रित किया। वापस आने के लिये हुमायूँ ने गंगा पार कर दक्षिणी मार्ग से ग्राण्डट्रंक रोड से चला। यह हुमायूँ की बङी भू थी क्योंकि इस भाग पर अफगानों का अधिकार था। हुमायूँ की सेना चौसा के निकट पहुँची लगभग उसी समय शेर खां की सेना भी कर्मनाशा नदी के दूसरे तट पर पहुंच गई। दोनों सेनाएं लगभग तीन माह तक आमने सामने खङी रही। इस बीच शेर खां हुमायूँ को धोखे से शांति-वार्ता में उलझाए रहा। वस्तुतः वह वर्षा ऋतु की प्रतीक्षा कर रहा था। क्योंकि मुगल सेना गंगा और कर्मनाशा नदियों के बीच में थी और वह भाग नीचा था जिससे वर्षा का पानी आने पर नदियों में बाढ आ सकती थी और मुगल सेना कठिनाई में फंस सकती थी। वर्षा होते ही हुमायूँ के शिविर में पानी भर गया। मुगल सेना को कठिनाई होने लगी। तोपखाना नाकाम हो गया। अतः मुगल सेना अस्त-व्यस्त हो गयी। स्थिति का लाभ उठाकर शेर खां ने 26 जून, 1539 ई. को रात्रि में मुगल छावनी पर आक्रमण कर दिया।
मुगल खेमें में खलबली मच गयी । सैनिक अपनी प्राण बचाने के लिये गंगा में कूद गए। हुमायूँ ने वीरतापूर्वक अफगानों का सामना किया। किन्तु भुजा में तीर लगने के कारण वह घायल हो गया। अपने प्राण बचाने के लिये वह घोङे सहित गंगा में कूद गया जहां निजाम नामक एक भिश्ती ने अपनी मश्क के द्वारा उसे डूबने से बचाया। आगरा पहुंचने के बाद हुमायूँ ने इसी निजाम नामक चिश्ती को आधे दिन के लिये बादशाह का अधिकार प्रदान किया था। चौसा के युद्ध में मुहम्मद जमां मिर्जा सहित हजारों मुगल सैनिक मारे गए। शेर खां विजयी हुआ। उसने मुगल बेगमों और स्त्रियों को जो युद्ध के दौरान शिविर में छूट गयी थी, सम्मान सहित वापस भेज दिया। चौसा के युद्ध में विजय के बाद ही शेर खां ने स्वयं को सुल्तान घोषित किया तथा शेरशाह की उपाधि धारण की। उसने अपने नाम का खुत्बा पढवाया तथा सिक्के भी ढलवाया। शीघ्र ही उसने जलाल खां को भेजकर बंगाल पर अधिकार कर लिया। बाद में बनारस, जौनपुर और लखनऊ होते हुए कन्नौज पहुंचा।
References : 1. पुस्तक - मध्यकालीन भारत, लेखक- एस.के.पाण्डे
