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आर्य समाज की स्थापना एवं सिद्धांत

आर्य समाज की स्थापना एवं सिद्धांत

आर्य समाज की स्थापना एवं सिद्धांत (aary samaaj kee sthaapana evan siddhaant)

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती थे। दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 ई. में गुजरात के टंकारा नामक स्थान में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। सत्य की खोज करने के लिए 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने घर त्याग दिया और मथुरा में स्वामी बिरजानंद से वेद आदि की शिक्षा ली। स्वामी दयानंद प्राचीन और विशुद्ध वैदिक धर्म और संस्कृति में विश्वास रखते थे।

स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों का समावेश सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ में किया। दयानंद सरस्वती का देहांत 1883 में अजमेर में हुआ।

आर्य समाज की स्थापना दयानंद सरस्वती ने 1875 ई. में बंबई में की गयी जो शीघ्र ही उत्तरी भारत की धार्मिक और सामाजिक सुधार की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण संस्था बन गयी।

आर्य समाज के सिद्धांत

  • इस समाज में एकेश्वरवाद को मान्यता दी गयी।
  • हिन्दू समाज के कर्मकांडों और पुरोहितवाद का विरोध किया गया।
  • इसने वैदिक धर्म का पुनरुत्थान किया।
  • वैदिक रीति से यज्ञ, प्रार्थना, सत्संग आदि करके निराकार ईश्वर की उपासना को सत्य बताया है।
  • इसके अनुसार सब ज्ञान का स्त्रोत वेद हैं और वेदों का अध्ययन करने का अधिकार सबको है।
  • प्रत्येक मनुष्य को परोपकार, शुद्ध आचरण और सत्य को ग्रहण करना चाहिए।
  • मूर्तिपूजा का आर्य समाज ने घोर विरोध किया।

आर्य समाज की उपलब्धियाँ

सामाजिक क्षेत्र में योगदान

स्वामी दयानंद सरस्वती ने उस समय प्रचलित कुरीतियों की कङी निन्दा की। बाल-विवाह, अंधविश्वास, छुआछूत, बेमेल-विवाह, जन्म-मरण व विवाहों पर अनुष्ठान और अपव्यय आदि का प्रबल विरोध किया। उन्होंने विधवा-विवाह और स्त्री शिक्षा आदि का समर्थन किया, अनाथों और विधवाओं की रक्षा के लिए आश्रम खुलवाए।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

शिक्षा के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया गया। नवीन शिक्षा प्रणाली पर आधारित डी.ए.वी.कॉलेज और प्राचीन शिक्षा प्रणाली पर आधारित गुरुकुल खोले गए। हिन्दी और संस्कृत के अध्ययन तथा स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया गया। पर्दा-प्रथा का विरोध किया गया।

धार्मिक क्षेत्र में योगदान

स्वामी दयानंद ने हिन्दुओं विशेषतः तथाकथित अछूतों को ईसाई और मुसलमान बनने से रोका। उन्होंने शुद्धि आंदोलन भी चलाया और उनके समय और बाद में बहुत से ईसाई और मुसलमान शुद्धि कर पुनः हिन्दू धर्म में मिला लिये गये।

मूल्यांकन

19 वीं शताब्दी के धार्मिक सामाजिक सुधार आंदोलन में आर्य समाज ने महूत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीय जागृति में भी आर्य समाज का योगदान रहा। स्वामी दयानंद ने अपने देश और संस्कृति से प्रेम करने का पाठ पढाया।

मिसेज एनी बेसेन्ट ने लिखा है-

स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही सर्वप्रथम यह घोषणा की थी कि भारत भारतवासियों के लिए है।

फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान रोम्यारोलां ने उनके संबंध में लिखा है-

दयानंद अकेले भारत में सिंह की तरह गरजे और उन्होंने अकेले विदेशियों द्वारा फैलाये गये प्रवाह को रोका।

ब्रह्म समाज एवं आर्य समाज की तुलना

दोनों में समानताएँ

  • राजा राममोहन राय और स्वामी दयानंद दोनों ने वेदों, उपनिषदों आदि की महत्ता बताई।
  • दोनों ने मूर्ति पूजा, अनुष्ठानों, अंधविश्वासों तथा अन्य धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया और एकेश्वरवाद पर बल दिया।
  • दोनों ही महापुरुषों ने हिन्दुओं में नवजागरण उत्पन्न कर अपनी सभ्यता, संस्कृति व देश के प्रति आदर व प्रेम जागृत किया।
  • सामाजिक क्षेत्र में ब्रह्म समाज और आर्य समाज दोनों ने छुआछूत, जाति-पाँति, बाल-विवाह आदि कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न किया तथा स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह का समर्थन किया।

विभिन्नताएँ

सिद्धांतों के प्रचार संबंधी अंतर – स्वामी दयानंद ने सांसारिकता को त्याग कर तथा एक साधू व आजन्म ब्रह्मचारी के रूप में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया, जबकि राजा राममोहन राय ने व्यक्तिगत आचरण में इतने अतिवाद को नहीं अपनाया।

धार्मिक क्षेत्र में अंतर – स्वामी दयानंद ने वेदों तथा प्राचीन संस्कृति पर अत्यधिक बल दिया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ बताया। राजा राममोहन राय ने वेदों तथा प्राचीन संस्कृति की महत्ता को स्वीकार करते हुए अन्य धर्मों के पवित्र ग्रन्थों तथा संस्कृति को भी समान रूप से आदरणीय माना। ब्रह्म समाज ने शुद्धि आंदोलन जैसी बातें नहीं अपनाई।

शिक्षा के क्षेत्र में अंतर

आर्य समाज ने भी स्वामी दयानंद की मृत्यु के बाद पाश्चात्य शिक्षा को सीमित रूप से स्वीकार कर लिया था, परंतु दयानंद ने प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को ही सर्वश्रेष्ठ बताया था। राममोहन राय पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्होंने इसे अपनाने के लिए विशेष बल दिया।

आंदोलन संबंधी अंतर

आर्य समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन का प्रबल समर्थन किया और इसके अनेक नेता अखिल भारतीय स्तर के नेता रहे, किन्तु ब्रह्म समाज एक सामाजिक आंदोलन ही रहा तथा राष्ट्रीय आंदोलन पर इसने कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं डाला।

कार्यक्षेत्र संबंधी अंतर

ब्रह्म समाज केवल बंगाल तक ही सीमित रहा, किन्तु आर्य समाज का कार्य क्षेत्र लगभग संपूर्ण उत्तरी भारत रहा। इसके अलावा 20 वीं शताब्दी के आरंभ से ब्रह्म समाज की गतिविधियाँ कम होने लगी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो लगभग समाप्त हो गयी, किन्तु आर्य समाज अभी भी काफी सक्रिय है।

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