स्वराजी क्या था
स्वराज – (दिसंबर, 1922 ई.) कांग्रेस के गया अधिवेशन में जब सी.आर.दास, मोतीलाल नेहरू, हकिम अजमल खान, अली बंधु सहित कुछ प्रमुख सदस्यों द्वारा असहयोग आंदोलन को असफल घोषित किया गया, उसी समय स्वराज पार्टी की उत्पत्ति की रूपरेखा तैयार हुई।
उन लोगों द्वारा आंदोलन को एक छोटा रूप देने की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की गयी जिसके द्वारा कांग्रेसी सदस्य 1919 ई. के मौंटफोर्ड सुधारों द्वारा स्थापित विधायी परिषदों में प्रवेश करेंगे तथा ब्रिटिश सरकार पर भारतीय स्वशासन की मांग के लिये नैतिक दबाव डालेंगे।
लेकिन सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में एक बङे तथा शक्तिशाली वर्ग ने गांधी के उद्देश्यों एवं कार्यक्रमों से विचलित होने का विरोध किया । पहला समूह परिवर्तन का पक्षधर कहा जाने लगे तथा बाद वाला समूह परिवर्तन विरोधी कहलाने लगा।

1 जनवरी, 1923 ई. को सी.आर.दास ने कांग्रेस के अंदर एक नई पार्टी के गठन की औपचारिक घोषणा की। इसका लक्ष्य कांग्रेस के समान ही था। किन्तु स्वशासन की प्राप्ति के लिये प्रयोग की जाने वाली पद्धितयां अलग थी।
सर्वप्रथम वे उन लोगों द्वारा प्रत्यावर्ती विधेयकों तथा राष्ट्र को उसके लक्ष्य प्राप्त करने से रोकने वाले विधेयकों का विरोध करना चाहते थे। दूसरे उनकी योजना राष्ट्र की परिस्थितियों के अनुकूल संविधान सुनिश्चित करना थी। तीसरे अगर सरकार से सहयोग नहीं मिला तो उनके द्वारा परिषदों के माध्यम से सामान्य कार्यक्रम को रोका जाना था।
कांग्रेस के साथ संबंध
फरवरी, 1923 ई. के प्रारंभ में मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा विभाजित कांग्रेस के मतभेदों को समाप्त करने का प्रयास किया गया। अंततः मई में कांग्रेस कार्यकारी समिति ने स्वराज पार्टी के स्वयं चुनाव लङने की मांग का समर्थन किया। 1925 ई. के बाद गांधी द्वारा भी स्वराज पार्टी को कांग्रेस के राजनैतिक पक्ष में स्वीकार कर लिया गया।
गतिविधियां
नवंबर, 1923 ई. में स्वराजवादियों के आम चुनाव में नरमपंथियों तथा उदारवादियों को सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया। केन्द्रीय प्रांतों में उन्होंने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया, जबकि बंगाल, संयुक्त प्रांत, बंबई तथा असम में काफी सफलता मिली। केन्द्रीय विधायी परिषद में इसके 48 सदस्य चुने गए, जहां एम.ए. जिन्ना के नेतृत्व में निर्दलियों के साथ मिलकर नेशनलिस्ट पार्टी का गठन किया गया।
उन्होंने शिकायतों को स्वर दिया तथा राजनैतिक कैदियों को रिहा करने तथा असैनिक एवं सैनिक सेवाओं के भारतीयकरण की मांग की। सरकारी नीतियों का भी विरोध किया गया तथा इसके सभी कार्यों को प्रदर्शित किया गया। 1924 ई. में केन्द्रीय विधायी सभा में वित्त विधेयक अस्वीकार कर दिया गया। राष्ट्रवादियों तथा निर्दलियों को शांत करने के लिये मुद्दीमन समिति का गठन किया गया।
पतन
धीरे-धीरे स्वराजवादियों में क्रमशः मतभेद शुरू हुआ तथा सन् 1926 ई. में इसकी पकङ कमजोर हो गई। पंजाब तथा संयुक्त प्रांतों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ तथा मद्रास, बंगाल तथा आसाम में भी इसकी सामान्य से भी निम्न हो गई। अंततः1930 ई. में स्वराजवादी विधायिका का बहिष्कार कर कांग्रेस में सम्मिलित हो गये।
References : 1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी
