राजस्थान में देशी राज्य लोक परिषद
राजस्थान में देशी राज्य लोक परिषद – राजस्थान के राजनैतिक इतिहास में अजमेर का सदैव ही महत्त्व रहा है। राजस्थान के स्वाधीनता आंदोलन में भी इस नगर का महत्त्वपूर्ण था। अजमेर को तो राजस्थान का ह्रदय कहा गया है। इसीलिए इस नगर की शासन व्यवस्था अँग्रेजों ने अपने नियंत्रण में ले रखी थी। यहाँ का राजनीतिक वातावरण ब्रिटिश प्रान्तों के समान ही था। देशी रियासतों की अपेक्षा इस शहर में सभा अथवा सम्मेलन करने में आधुनिक सुविधा होती थी। इसके अतिरिक्त जब कभी राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं को उनके राज्य से निर्वासित किया जाता था, तब वे इसी क्षेत्र में आकर आश्रय लेते थे। 1927 ई. में देशी राज्य लोक परिषद के प्रथम अधिवेशन के बाद राजस्थान के कार्यकर्त्ता अत्यधिक उत्साह से वापस लौटे। वे अब इस संस्था की क्षेत्रीय परिषद का गठन करना चाहते थे ताकि राजस्थान के सभी राज्यों की गतिविधियों में समन्वय रखा जा सके। 1931 ई. में रामनारायण चौधरी ने अजमेर में इस संस्था का प्रथम प्रान्तीय अधिवेशन किया।
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना
जयनारायण व्यास ने इसी प्रकार का सम्मेलन जोधपुर में करने का प्रयास किया, किन्तु जोधपुर दरबार की दमनात्मक नीति के कारण इस सम्मेलन का आयोजन ब्यावर नगर में किया गया। लेकिन राजस्थानी राज्यों की क्षेत्रीय परिषद का गठन नहीं हो सका। 1937 ई. में इसके लिए एक और प्रयास किया गया, किन्तु राजस्थानी नेताओं के दृष्टिकोण में मतैक्य न होने के कारण, यह प्रयास भी विफल रहा। अतः राजस्थान के विभिन्न राज्यों के नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में अपने ही साधनों से आंदोलन चलाने का निश्चय किया। वस्तुतः अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थानीय इकाइयाँ, जिन्हें प्रजा मंडल अथवा प्रजा परिषद अथवा लोक परिषद के नाम से पुकारा जाता था, कुछ राज्यों में पहले से ही कार्य कर रही थी।
References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
