आधुनिक भारतइतिहास

मीर कासिम (1760-1765ई.)

मीर कासिम

मीर कासिम (Mir Qasim)

मीर कासिम अलीवर्दी के उत्तराधिकारियों में सर्वाधिक योग्य था।राज्यरोहण के तत्काल बाद उसे मुगल सम्राट शाहआलम द्वारा बिहार पर (1760-61) आक्रमण का सामना करना पङा, कंपनी की सेना ने सम्राट को परिजित कर उसकी स्थिति को दयनीय बना दिया।

नवाबी पाने के बाद कासिम ने बेंसिटार्ट को 5लाख,हॉलवेल को 2लाख,70हजार और कर्नल केलॉड को 4 लाख रुपये उपहार स्वरूप दिया।

कंपनी तथा उसके अधिकारियों को भरपूर मात्रा में धन देकर मीर कासिम अंग्रेजों के हस्तक्षेप से बचने के लिए शीघ्र ही अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर हस्तांतरित कर लिया।

मीर कासिम ने राजस्व प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने एवं आमदनी जब्त करना, सरकारी खर्च में कटौती,कर्मचारियों की छटनी, नये जमींदारों से बकाया धन की वसूली आदि।

मीर कासिम ने बिहार के नायब सूबेदार रामनारायण को उसके पद से बर्खास्त कर उसकी हत्या करवा दी क्योंकि वह बिहार के आय और व्यय का ब्यौरा देने के लिए तैयार नहीं था।

सैन्य व्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से मीर कासिम ने अपने सैनिकों की संख्या में वृद्धि की, साथ ही उन्हें यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया।इसने अपनी सेना को गुर्गिन खां नामक आर्मेनियाई के नियंत्रण में रखा।

मुंगेर में मीर कासिम ने तोपों तथा तोङेदार बंदूकों के निर्माण हेतु कारखाने की स्थापना की।

1717 में मुगल बादशाह द्वारा प्रदत्त व्यापारिक फरमान का इस समय बंगाल में दुरुपयोग देखकर नवाब मीरकासिम ने आंतरिक व्यापार पर सभी प्रकार के शुल्कों की वसूली बंद करवा दी।

1762 में मीर कासिम द्वारा समाप्त की गई व्यापारिक चुंगी और कर का लाभ अब भारतीयों को भी मिलने लगा, पहले यह लाभ 1717 के फरमान द्वारा केवल कंपनी को मिलता था, कंपनी ने नवाब के इस निर्णय को अपने विशेषाधिकार की अवहेलना के रूप में लिया। परिणामस्वरूप संघर्ष की शुरुआत हुई।

1763 में मीर कासिम को कंपनी ने बर्खास्त कर मीरजाफर को पुनः बंगाल का नवाब बनाया।

19जुलाई,1763 को मीर कासिम और एडम्स के नेतृत्व में करवा नामक स्थान पर करवा का युद्ध हुआ, जिसमें नवाब पराजित हुआ।

करवा के युद्ध के बाद और बक्सर के युद्ध से पूर्व मीर कासिम को अंग्रेजों ने तीन बार पराजित किया, परिणामस्वरूप कासिम ने मुंगेर छोङकर पटना में शरण ली।

1763 में हुए पटना हत्याकांड, जिसमें कई अंग्रेज मारे गये, से मीर कासिम प्रत्यक्ष रूप से जुङा था।

अंग्रेजों द्वारा बार-2 पराजित होने के कारण मीर कासिम ने एक सैनिक गठबंधन बनाने की दिशा में प्रयास किया। कालांतर में मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय,अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मीर कासिम ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक सैन्य गठबंधन का निर्माण किया।

बक्सर से पूर्व मीर कासिम निम्नलिखित युद्धों में पराजित हुआ-

  • करवा का युद्ध( 9जुलाई, 1763 ई.)
  • गीरिया का युद्ध (4-5 सितंबर,1763ई.)
  • उधौनला का युद्ध (1763ई.)

बक्सर का युद्ध-(1764ई.)

बक्सर जो बनारस के पूर्व में स्थित है, के मैदान में अवध के नवाब,मुगल सम्राट तथा मीर कासिम की संयुक्त सेना अक्टूंबर, 1764ई. को पहुँची।दूसरी ओर अंग्रेजी सेना हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में पहुँची।

23 अक्टूंबर,1764 ई. को निर्णायक बक्सर का युद्ध प्रारंभ हुआ।युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व ही अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना से असद खां,साहूमल (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल आब्दीन को धन का लालच देकर तोङ लिया।

शीघ्र ही हैक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने बक्सर के युद्ध को जीत लिया।

मीर कासिम का संयुक्त गठबंधन बक्सर के युद्ध में इसलिए पराजित हो गया क्योंकि उसने युद्ध के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की थी,शाहआलम गुप्त रूप से अंग्रेजों से मिला था तथा भारतीय सेना में अनेक प्रकार के दोष अंतर्निहित थे।

बक्सर के युद्ध का ऐतिहासिक दृष्टि से प्लासी के युद्ध से भी अधिक महत्व है क्योंकि इस युद्ध के परिणाम से तत्कालीन प्रमुख भारतीय शक्तियों की संयुक्त सेना के विरुद्ध अंग्रेजी सेना की श्रेष्ठता प्रमाणित होती है।

बक्सर के युद्ध ने बंगाल,बिहार और उङीसा पर कंपनी का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर दिया, साथ ही अवध अंग्रेजों का कृपापात्र बन गया।

पी.ई.राबर्ट्स ने बक्सर के युद्ध के बारे में कहा कि- प्लासी की अपेक्षा बक्सर को भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्मभूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त हो ।

यदि बक्सर के युद्ध के परिणाम को देखा जाये तो कहा जा सकता है कि जहाँ प्लासी की विजय अंग्रेजों की कूटनीति का परिणाम थी, वहीं बक्सर की विजय को इतिहासकारों ने पूर्णतः सैनिक विजय बताया।

प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों की प्रभुता बंगाल में स्थापित की परंतु बक्सर के युद्ध ने कंपनी को एक अखिल भारतीय शक्ति का रूप दे दिया।

बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद शाहआलम जहाँ पहले ही अंग्रेजों की शरण में आ गया था वहीं अवध के नवाब ने कुछ दिन तक अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिक सहायता हेतु भटकने के बाद मई 1765 ई. में अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

5 फरवरी, 1765 को मीर जाफर की मृत्यु के बाद कंपनी ने उसके पुत्र नज्मुद्दौला को अपने संरक्षण में बंगाल का नवाब बनाया।

मई, 1765 ई. में क्लाइव दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर आया, आते ही उसने शाहआलम और शुजाउद्दौला से संधि की।

12 अगस्त, 1765 ई. को क्लाइव ने मुगल बादशाह शाहआलम से इलाहाबाद की प्रथम संधि की। जिसकी शर्तें इस प्रकार थी-

  • मुगल बादशाह ने बंगाल,बिहार,उङीसा की दीवानी कंपनी को सौंप दी।
  • कंपनी ने अवध के नवाब से कङा और मानिकपुर छीनकर मुगल बादशाह को दे दिया।
  • एक फरमान द्वारा बादशाह शाहआलम ने नज्मुद्दौला को बंगाल का नवाब स्वीकार कर लिया।
  • कंपनी ने मुगल बादशाह को वार्षिक 26 लाख रुपये देना स्वीकार किया। इलाहाबाद की प्रथम संधि का सबसे बङा लाभ कंपनी को बंगाल,बिहार एवं उङीसा के वैधानिक अधिकार के रूप में मिला।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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