युवा बंगाल आंदोलन (Youth Bengal movement)के नेता कौन थे

भारत के धर्म और समाज सुधार आंदोलन के इतिहास में कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना एक महत्त्वपूर्ण घटना कही जा सकती है। वास्तव में सार्वजनिक जीवन तथा जनजागरण का इतिहास हिन्दू कॉलेज से ही आरंभ होता है। कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना जनवरी, 1817 में हुई थी। इससे पूर्व बंगाल( Bengal) में जनजीवन पर धर्म का गहरा प्रभाव था तथा राजनीति से भारतीयों का कोई संपर्क नहीं था। किन्तु हिन्दू कॉलेज की स्थापना के बाद इसमें आमूलचूल परिवर्तन आरंभ हो गया।
बंगाल में युवा आंदोलन की स्थापना किसने की
1826 में हेनरी लुई विवियन देरीजियो(Henry Louis Vivian Derecio) नामक व्यक्ति की इस कॉलेज में शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई, जिसने हिन्दू कॉलेज को जन-जागरण का केन्द्र बना दिया। देरीजियो एक स्वतंत्र विचारक था तथा 19वी. शता. की उदारवादी विचारधारा से बङा प्रभावित था। अतः वह एक ऐसा वातावरण उत्पन्न करना चाहता था जिसमें भारतीयों की राजनीति में रुचि उत्पन्न हो। अतः उसने कॉलेज के मेधावी धात्रों से निकट संपर्क स्थापित करके उन्हें यूरोप के राजनीतिक विचारकों की विचारधाराओं से परिचित कराया। अमृतलाल मित्र,कृष्णमोहन बनर्जी,रसिककृष्ण मल्लिक, दक्षिणारंजन मुखर्जी, रामगोपाल घोष आदि अनेक जागरूक एवं मेधावी छात्र उसके निकट संपर्क में थे। देरीजियो और इन मेधावी छात्रों की विचारगोष्ठियाँ आयोजित होती थी, जिनमें धर्म, राजनीति, नैतिकता और भारतीय इतिहास पर विचार-विमर्श होता था। अतः जो छात्र देरीजियो के संपर्क में आये, उन्होंने बंगाल में एक नया जागरुक वर्ग पैदा किया, जिसे युवा बंगाल (Young Bengal) कहा जाता था। युवा बंगाल के सदस्य अंधविश्वासों तथा भारतीय सामाजिक कुरीतियों के कटु आलोचक थे और सुधारों के प्रबल पक्षपाती थे। उन्होंने बंगाल में एक आंदोलन शुरू किया, जिसे युवा बंगाल आंदोलन कहा जाता है।
एकेडेमिक एसोसियेशन क्या था
देरीजियो के विचारों से प्रभावित होकर युवा बंगाल सदस्यों ने 1828 में एकेडेमिक एसोसियेशन की स्थापना की तथा देरीजियो इसका अध्यक्ष बना। इस एसोसियशन के तत्त्वाधान में समय-2पर सभाएँ होती थी, जहाँ सभी विषयों पर बहस होती थी और विचारों का आदान-प्रदान होता था। इस प्रकार की विचार-गोष्ठियों के केवल हिन्दू कॉलेज के छात्र ही नहीं वरन् कलकत्ता के शिक्षित और जागरूक लोग भी भाग लेते थे। देरीजियो और उसके ऐसोसियशन ने सुप्त भारतीयों को झकझोर दिया। छात्रों में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न हुई और वे अब प्राचीन मान्यताओं की आलोचना करने लगे थे।
अतः पुरातनपंथी भारतीयों ने इस एसोसियशन के विरुद्ध आवाज उठाई। अनेक अभिभावकों ने अपने लङकों को हिन्दू कॉलेज से वापिस बुला लिया। इस पर कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी ने आदेश प्रसासरित किया कि कॉलेज का कोई छात्र इस एसोसियशन से किसी प्रकार का संबंध न रखे। मैनेजिंग कमेटी ने देरीजियो को कॉलेज से निकालने का भी निर्णय ले लिया। अतः मार्च,1831 में देरीजियो ने स्वयं पदत्याग कर दिया और इसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी।
यद्यपि देरीजियो की मृत्यु हो गयी थी, तथापि उसकी भावना जीवित रही। उसके अनुयायी बंगाल में उसके बताये हुए मार्ग पर चलते रहे और बंगाल में जनजारण का कार्य करते रहे। बंगाल में सार्वजनिक संगठनों की स्थापना का प्रारंभ हम देरीजियो के युवा बंगाल तथा एकेडेमिक एसोसियशन से मान सकते हैं। उसने बंगाल में और अंततः संपूर्ण भारत में सर्वप्रथम जनजारण की बुनियाद रखी। वस्तुओं को तर्क के आधार पर परखने, अंधविश्वासों तथा पुरानी मान्यताओं पर प्रबल आक्षेप करने की शुरुआत उसी ने की थी। उसि के प्रयत्नों के फलस्वरूप बंगाल में एक जागरुकता वर्ग पैदा हुआ।
Reference :https://www.indiaolddays.com/