इतिहासविश्व का इतिहाससंयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन

संयुक्त राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन – युद्धों के भय से मुक्ति के लिये अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण उपायों द्वारा समाधान के लिये तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना मानव इतिहा की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।

इसके चार्टर में अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की उन सभी बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया, जिनके कारण राष्ट्रसंघ असफल हो गया था।

इस संगठन का मूल्यांकन करने से पूर्व हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम निष्पक्ष रूप से इसकी कार्यवाहियों का पर्यवेक्षण करेंगे। न तो हम उन्हें हीन दृष्टि से देखें और न अतिशयोक्ति द्वारा तिल का पहाङ बनाएँ। यह व्यवहार अनिवार्य है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का मूल्यांकन

सर्वप्रथम हम यह देखते हैं कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना के बाद विश्व में तीन प्रधान विकास हुए हैं

  1. पाँच बङी शक्तियों में विरोध
  2. परमाणु शक्ति का विकास
  3. औपनिवेशिक प्रणाली का क्रमशः विसर्जन

इस प्रगति को देखते हुए यह एक सफल संस्था है। उपर्युक्त नवीन परिस्थितियों के उत्पन्न हो जाने पर भी यह संगठन पर्याप्त रूप से सफल हुआ है।

सन् 1946 में ईरान विवाद में मध्यस्थ बनकर रूस की सेनाएँ वापस बुलवाई। हिन्देशिया में सहायता पहुँचाकर उसे स्वतंत्रता दिलवाने में सहायता की और संयुक्त राष्ट्रसंघ का सदस्य बनाया। इजराइल और अरब राज्यों के आपसी विरोध को रोककर विराम संधि पर हस्ताक्षर करवाए।

इसी संगठन ने कश्मीर में युद्ध विराम समझौता करवाया। यूनान की सीमा पर आयोग भेजकर शांति स्थापित की। 20 जून, 1950 को जब उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण करने लगा तब अन्तर्राष्ट्रीय सेना की व्यवस्था के लिये कार्यवाही पर शांति बनाए रखी।

1954 में इंग्लैण्ड व फ्रांस ने जब मिस्र पर आक्रमण किया तो संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेना ने ही विदेशी सेनाओं से वह प्रदेश रिक्त करवाया । सीरिया और लेबनान, बर्लिन अर्थ प्रतिबंध तथा हिन्द-चीन भी संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रयत्न किये गये। अबीसीनिया की स्वतंत्रता तथा इरीट्रिया का अबीसीनिया के साथ योग, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

इटालियन सोमालीलैण्ड, बेल्जियम-कांगो, यूगाण्डा तथा अन्य अफ्रीका देश अभी हाल ही में स्वतंत्र बना दिया गया। मोरक्को एवं ट्यूनिशिया, जिसे फ्रांस नहीं छोङना चाहता था और संयुक्त राष्ट्र सेघ के समक्ष कई बार विवाद का विषय रहा, अंत में स्वतंत्र हो गए। इसी प्रकार घाना, मलाया आदि देश भी स्वतंत्र हुए हैं। इस प्रकार यह एक सफल संस्था है।

किन्तु अभावोंं की दृष्टि से देखा जाय तो कई ऐसे स्थल हैं जहाँ यह संघ असफल रहा है। ईरान का तेल विवाद, दक्षिणी अफ्रीका संघ तथा कश्मीर मुख्य रूप से गिने जा सकते हैं। तेल विवाद में यह संस्था इंग्लैण्ड और अमेरिका के हितों को सुरक्षित बनाए रख सकी, वहाँ की जनता के हितों को नहीं बचा सकी।

दक्षिणी अफ्रीका संघ ने भारत और पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार का समझौता करने से इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि यह उसका घरेलू प्रश्न है और संयुक्त राष्ट्रसंघ भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कश्मीर के प्रश्न पर तो संघ बहुत अधिक असफल रहा।

इसी प्रकार हंगरी और चेकोस्लोवाकिया पर साम्यवादी आक्रमण के समय भी यह संगठन कुछ न कर सका। हंगरी पर आक्रमण के समय जब विश्व लोकमत जाँच के लिये उत्सुक हुआ तो यह प्रस्ताव किया गया कि महामंत्री श्री हेमरशोल्ड उसी स्थान पर जाकर जाँच करें, किन्तु रूस द्वारा प्रेरित हंगरी ने आवश्यक अनुमति नहीं दी।

बाद में महासभा ने प्रिंसवान पैथेको की नियुक्ति एक सदस्यीय आयोग के रूप में की और वहाँ जाकर जाँच करने के बाद प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया। इस आयोग ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया कि यह आयोग सहयोग के अभाव में पूर्ण असफल रहा है। इसी प्रकार लाल चीन की सदस्यता का मामला था।

अमेरिका के षड्यंत्र के कारण विशाल शक्तिशाली साम्यवादी चीन काफी लंबे समय तक संयुक्त राष्ट्रसंघ की सदस्यता प्राप्त नहीं कर सका था।

इस प्रकार विश्व में जगह-जगह घाव नजर आ रहे थे, जिनकी चिकित्सा करने में संयुक्त राष्ट्रसंघ असफल रहा है। सुरक्षा परिषद की अपनी कोई सेना नहीं बनाई जा सकी है। निःशस्रीकरण के संबंध में भी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। परमाणु शक्ति से अणु बम और उद्जन बम तथा कृत्रिम उपग्रहों के बनाने के प्रयास जारी हैं और उनके परीक्षण जारी हैं।

संयुक्त राष्ट्रसंघ अणु-शस्रों के नियंत्रण और उनके विनाशकारी परीक्षण रोकने में भी अभी तक कुछ नहीं कर सका है, बल्कि संरक्षण परिषद के अन्तर्गत प्रशांत महासागर स्थित मार्शल द्वीपों के निवासियों की प्रार्थना को ठुकराकर अमेरिका को उन द्वीपों में अणु-शस्रों के परीक्षण की छूट दे दी गई है।

संघ के चार्टर की ओट में उत्तर अटलांटिक संधि, दक्षिणी पूर्व एशिया संधि, बगदाद समझौता (अब सेण्टो) आदि क्षेत्रीय सैनिक संगठन बन रहे हैं और इन संगठनों के कारण शांति को खतरा उत्पन्न हो गया है, किन्तु शक्ति की शतरंज के खेल में वह मृत राष्ट्रसंघ की भाँति ही एक दर्शक की भाँति तमाशा देख रहा है, कुछ कर भी तो नहीं सकता।

संयुक्त राष्ट्रसंघ केवल राजनैतिक क्षेत्र में ही काम नहीं करता अपितु सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी गतिशील है, इसलिये संयुक्त राष्ट्रसंघ की सफलता पर विचार करते समय हमें चित्र के दूसरे पहलू पर भी नजर डालनी चाहिये। दूसरे क्षेत्र में संघ की विशिष्ट समितियों द्वारा किया गया काम सराहनीय है और इसकी सफलता में किसी प्रकार का संदेह करना भारी भूल होगी।

दोनों पक्षों का अध्ययन करने पर यह कहा जा सकता है कि अब संयुकत् राष्ट्रसंघ की स्थिति कैसी है। बङी शक्तियाँ किसी भी विवाद को सत्यता के आधार पर न देखकर, राजनैतिक दृष्टि से देखती हैं। अपनी राष्ट्रीय भावनाओं के प्रसार के लिये यत्न करती हैं, इसलिए ये बङी शक्तियाँ स्वयं ही आदेश-पत्र का उल्लंघन करती हैं और विश्व-शांति को क्षति पहुँचाती हैं।

दलबंदी विशेष हो गई है और नाटो, सीटो, बगदाद-पैक्ट द्वारा शांत युद्ध को विकसित कर रही हैं, फिर भी इन सब बुराइयों को दबाते हुये यह संगठन बराबर आगे बढ रहा है। प्रत्येक स्थान पर संघर्षों को स्थानीय बना देना एक बङी भारी बात है। यह संगठन अब तक बहुत बङी नैतिक सत्ता को प्राप्त कर चुका है, जिसके साथ विश्व का ठोस लोकमत है।

अतः कोई भी राष्ट्र सरलता से इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता।यहाँ तक कि बङी शक्तियाँ जो प्रादेशिक संधियों और समझौते में सम्मिलित हैं, अपने को संधियाँ संबंधी कार्य संघ के विधान के अन्तर्गत मानती हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ समस्त विपरीत परिस्थितियों और बङी शक्तियों के स्वार्थी व्यवहार के होते हुये भी सफल हो रहा है और होगा, क्योंकि विश्व का बहुमत वास्तव में शांति चाहता है और इस संगठन का आदर्श भी शांति स्थापना है।

बङी शक्तियाँ भले ही अपनै दौङ में लगी हुई हों, परंतु वास्तव में वे भी युद्ध नहीं चाहती हैं। इसलिए वह शांति जो सभी राष्ट्रों की आकांक्षा है, उसकी पूर्ति इसी संगठन से होगी। ऐसी आशा है कि विश्व युद्ध की भीषण विभीषिका से उस समय तक बचा रहेगा जब तक मानव में मानवता का बाहुल्य रहेगा।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : संयुक्त राष्ट्रसंघ

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