फ्रांस में 1848 की क्रांति
फ्रांस में 1848 की क्रांति की पृष्ठभूमि
फ्रांस में 1848 की क्रांति – नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के बाद वियना सम्मेलन के निर्णयानुसार फ्रांस में पुनः बुर्बो वंश के निरंकुश शासन की स्थापना की गयी और लुई सोलहवें के बाद लुई अठारहवें को फ्रांस के सिंहासन पर बैठाया गया।

लुई इस तथ्य से सुपरिचित था, कि क्रांतिजनित नवीन प्रवृत्तियों, जिनकी जङें गहराई तक पहुँच चुकी थी, को नष्ट नहीं किया जा सकता।इसलिये उसने नवीन प्रवृत्तियों से समझौता करना ही उचित समझा।
अतः उसने कट्टर राज सत्तावादी दल की सलाह पर अधिक ध्यान नहीं दिया। 1821 ई. के बाद कट्टर राज सत्तावादी विलेल को फ्रांस का नया प्रधानमंत्री बनाया गया।
उसने घोर प्रतिक्रियावादी नीति का अवलंबन किया। उसने निर्वाचन नियमों में ऐसा संशोधन करवाया कि फरवरी मार्च, 1824 के चुनावों में उदारवादियों को केवल 17 स्थान प्राप्त हो सके।
फ्रांस में 1848 की क्रांति

फ्रांस में 1848 की क्रांति : 1830 की क्रांति
15 सितंबर, 1824 को लुई 18 वें की मृत्यु के बाद उसका भाई काउण्ट आर्तुआ, चार्ल्स दशम के नाम से गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी आयु 67 वर्ष की थी। वह क्रांति का कट्टर विरोधी एवं राजा के दैवी अधिकारों का प्रबल समर्थक था।
सम्राट और संसद का सहयोग प्राप्त होने पर प्रधानमंत्री विलेल उत्साह के साथ प्रतिक्रियावादी नीति का अवलंबन करने लगा।जिसके परिणामस्वरूप राजा तथा उसकी सरकार के विरुद्ध विरोध बढता गया।
इस पर विलेल को त्याग पत्र देना पङा। उसके बाद विकाम्टे-डि मार्टिगनेक ने नया मंत्रिमंडल बनाया। उसने कट्टर राजसत्तावादियों एवं कट्टर उदारवादियों के बीच समझौतेवादी नीति को अपनाया, किन्तु उसकी नीति असफल रही और अप्रैल, 1829 में उसे भी त्याग पत्र देना पङा।
मार्टिगनेक के बाद चार्ल्स दशम ने घोर प्रतिक्रियावादी तथा कट्टर कैथोलिक प्रिन्स जूल्स-डि-पोलिगनेक को प्रधानमंत्री बनाया। मार्च, 1830 में संसद का अधिवेशन शुरू हुआ, जिसमें चार्ल्स दशम ने विरोधियों को चेतावनी दी कि यदि षङ्यंत्रों एवं विद्रोहों द्वारा प्रशासन के कार्यों में बाधाएं जाली गयी तो वह उनके विरुद्ध सख्त कदम उठाएगा।
उसने संसदीय प्रणाली को चुनौती दी। विरोधी दलों ने तत्काल पोलिगनेक के विरुद्ध अविश्वास-प्रस्ताव पारित कर दिया। सम्राट ने सदन को भंग कर जुलाई, 1830 में नए चुनाव कराए। जिसके परिणामस्वरूप विरोधियों की संख्या 221 से बढकर 274 हो गई।
फ्रांस में 1848 की क्रांति : चार्ल्स दशम के चार अध्यादेश
- समाचार पत्रों की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया
- नव निर्वाचित सदन को भंग कर दिया गया
- निर्वाचन कानून में ऐसा संशोधन किया गया कि लगभग 75 प्रतिशत व्यक्ति मताधिकार से वंचित हो गये।
- नए कानून के अंतर्गत सितंबर में नए चुनाव कराने की घोषणा की गयी।
इन अध्यादेशों से जनअसंतोष अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। सभी राजनैतिक दलों ने अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर संगठित रूप से सम्राट की निरंकुशता का विरोध करने का निश्चय किया। सङकों पर भीङ जमा होने लगी।
26 जुलाई, 1830 को रातभर पेरिस नगर क्रांति के नारों एवं स्वाधीनता की जय-जयकार से गूंजता रहा। संपूर्ण फ्रांस में विद्रोह की आग भङक उठी। 27 जुलाई को चार्ल्स दशम के सैनिकों एवं क्रांतिकारियों में सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया। ऐसी परिस्थिति में 30 जुलाई को चार्ल्स पोलगनेक को पदच्युत करने तथा अध्यादेशों को वापस लेने को तैयार हो गया।
31 जुलाई को चार्ल्स ने अपने पौत्र ड्यूक ऑफ बोद्रो के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया और स्वयं इंग्लैण्ड भाग गया, परंतु आंदोलनकारियों को ड्यूक ऑफ बोद्रो पसंद नहीं था। वे आर्लियाँ के ड्यूक लुई फिलिप को शासक बनाना चाहते थे। अंत में सभी पक्षों ने लुई फिलिप को शासक बनाना स्वीकार कर लिया।
31 जुलाई, 1830 को सदन के सदस्यों ने फ्रांस की जनता की ओर से लुई फिलिप को शासन के सभी अधिकार सौंपने का निर्णय किया तथा 7 अगस्त को सदन ने उसे विधिवत फ्रांसीसी जनता का राजा घोषिक किया। इस प्रकार फ्रांस में बुर्बो वंश की सत्ता समाप्त हो गयी और उसके स्थान पर आर्लियाँ वंश को प्रतिष्ठित किया गया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा
Online References
Wikipedia : French Revolution of 1848