फ्रांस में कादूदाल षङ्यंत्र क्या था
नेपोलियन बोनापार्ट के समय फ्रांस में राजतंत्र के समर्थक पुनः सक्रिय हो उठे थे और उनमें से कुछ साहसी लोगों ने नेपोलियन को समाप्त करने का षङ्यंत्र रचा। मारेंगो के युद्ध के छोङे दिनों बाद ही नेपोलियन पर अचानक धावा बोल दिया गया। नेपोलियन के बहुत से सैनिक मारे गये, परंतु वह स्वयं बच गया। इसके कुछ समय बाद लंदन में इससे भी खतरनाक षङ्यंत्र रचा गया। इसका ध्येय लुई सोलहवें के भाई आर्त्वा को काउण्ट का पुनः राजा बनाना था। इस षङ्यंत्र के मुख्य नेता थे – जार्ज कादूदाल और पीशेग्रू। कादूदाल और उसके साथियों को गिरफ्तार करके गोली से उङा दिया गया। पीशेग्रू कारावास में ही मर गया।
इस घटना से नेपोलियन के मन में सम्राट बनने की महत्वाकांक्षा जाग उठी। उसने पुनः ढोंग रचाया। सर्वप्रथम, ट्रिब्यूनेट में प्रजातंत्र को समाप्त करने तथा नेपोलियन को सम्राट बनाने का प्रस्ताव रखा गया। इसके बाद सीनेट ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुये उसे सम्राट घोषित कर दिया। सीनेट की घोषणा में कहा गया था, कि यह परिवर्तन फ्रांसीसी जनता के हितों को ध्यान में रखकर किया गया है। इसके बाद इस प्रस्ताव को जनमत के लिये जनता के सामने रखा गया। 35 लाख मतों के बहुमत से जनता ने नेपोलियन को सम्राट बनाना स्वीकार कर लिया, क्योंकि फ्रांसीसियों को राजतंत्र अब भी पसंद था। परंतु नेपोलियन ने पुरानी परंपरा के अनुसार पोप के हाथों से राजमुकुट नहीं पहना अपितु स्वयं अपने हाथों से अपने सिर पर रखा, यद्यपि पोप स्वयं उपस्थित था।
नेपोलियन का कहना था, मुझे फ्रांस का राजमुकुट धरती पर पङा मिला और तलवार की नोंक से मैंने उसे उठा लिया।
इस प्रकार, फ्रांस में एक बार फिर से राजतंत्र कायम हो गया। वह राजतंत्र जिसको उखाङ फेंकने के लिये महान क्रांति हुई थी।
अब यहां पर प्रश्न यह उत्पन्न होता है, कि फ्रांस की जनता ने नेपोलियन को सम्राट बनाना क्यों स्वीकार किया ? फ्रांसीसी जनता ने जान-बूझकर क्रांति द्वारा स्थापित गणराज्य का गला क्यों घोंट दिया ? इसके लिये निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे
- नेपोलियन द्वारा प्रदत्त सामाजिक समानता
- उसकी सफल धार्मिक नीति
- उसका योग्य शासन प्रबंध
- उसकी शानदार विजयें
- उसका स्वयं का प्रभावशाली व्यक्तित्व
2 दिसंबर, 1804 ई. को नेपोलियन का राज्याभिषेक धूम-धाम के साथ संपन्न हुआ। इसके बाद का उसका शासनकाल प्रथम साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा