प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर प्रभाव (Impact of First World War on India)
प्रथम विश्व युद्ध तथा भारत
भारत ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे विशाल तथा महत्त्वपूर्ण उपनिवेश था। ब्रिटेन के साम्राज्य निर्माण का प्रारंभ यहीं से हुआ था। ब्रिटिश उपनिवेशों में भारत ही सर्वाधिक उपजाऊ, विकसित तथा धनधान्य पूर्ण था। ब्रिटेन की संपन्नता तथा औद्योगिक साम्राज्य का आधार भारत था।

भारत का योगदान
प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होते ही ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को भी उसमें सम्मिलित कर लिया गया। यद्यपि भारतीयों का इस संघर्ष से सीधा संबंध नहीं था। यह युद्ध ब्रिटिश स्वार्थों का युद्ध था।
भारत की शोषित जनता ने अपने समस्त संसाधनों के साथ ब्रिटेन की सबसे संकटपूर्ण स्थिति में सहायता की। युद्ध प्रारंभ होते ही मित्र राष्ट्रों ने घोषणा की थी कि वह विश्व में लोकतंत्र की सुरक्षा के लिये युद्ध कर रहे हैं। इससे भारतीयों को आशा बंधी कि इस युद्ध के बाद उन्हें राजनीतिक अधिकार अवश्य दिए जायेंगे।
20 अगस्त, 1917 ई. को ब्रिटिश हाउस ऑफ कामंस में विदेश मंत्री एडविन मांटेग्यू ने घोषणा की कि महामहिम की सरकार की नीति, जिससे भारत सरकार पूरी तरह सहमत है, यह है कि प्रशासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों की भागीदारी बढे और ब्रिटिश साम्राज्य के अभिन्न अंग के रूप में एक उत्तरदायी भारत सरकार के निर्माण के लिए, स्वायत्तशासी संस्थाओं का चरणबद्ध विकास किया जावे।
तुर्की का सुल्तान संपूर्ण इस्लामी जगत का धार्मिक नेता (खलीफा) माना जाता था। तुर्की प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के साथ ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध कर रहा था। भारत में मुसलमान बङी संख्या में थे। उन्हें आशंका थी कि यदि टर्की पराजित हुआ तो उसका विभाजन करके खलीफा को अपदस्थ कर दिया जाएगा।
मुसलमानों का सहयोग पाने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉयर्ड जॉर्ज ने 5 जनवरी 1918 ई. को आश्वासन दिया कि टर्की साम्राज्य को भंग नहीं किया जायेगा तथा खलीफा की प्रतिष्ठा को क्षति नहीं पहुँचाई जाएगी। इन तथ्यों के प्रकाश में यह भली प्रकार स्पष्ट है कि इस युद्ध में भारत के संसाधनों का कितना महत्त्व था। इसलिए 8 जुलाई, 1918 ई. को मोन्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा भारतीयों को पुनः आश्वस्त किया गया।
प्रथम विश्व युद्ध में विभिन्न मोर्चों पर लङने के लिए भारत में लगभग 80 लाख सैनिक भर्ती किए गए। हथियार गोला बारूद सामग्री के अलावा बङी मात्रा में गेहूँ, चावल, चाय, कपास, जूट, रबङ, कोयला, लोहा तथा इस्पात भेजा गया था। भारत की देशी रियासतों ने भी भरपूर आर्थिक तथा सैनिक सहायता भेजी। यही नहीं, अनेक देशी राजाओं ने युद्ध के मोर्चों पर अपनी सेना के साथ युद्ध किया। भारत ने इस युद्ध के लिए 10 करोङ पौण्ड युद्ध कोष में दिए थे। यही नहीं अपने सेनाओं पर 30 करोङ पौण्ड प्रतिवर्ष खर्च किए। इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन की प्रतिष्ठा का यह युद्ध भारत की जनता की कीमत पर लङा गया तथा जीता गया।
प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर प्रभाव
लेकिन विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारतीयों के साथ विश्वासघात किया गया। भारत में फरवरी, 1919 ई. में रोलेट एक्ट लागू कर दिया गया। इसके अनुसार किसी भी भारतीय को मात्र संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था और बिना मुकदमा चलाए बंदी रखा जा सकता था अथवा गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर दंडित किया जा सकता था।
जबकि इस समय युद्ध समाप्त हो चुका था तथा देश में भी क्रांतिकारी गतिविधियाँ शिथिल थी। इसका विरोध देशव्यापी होना स्वाभाविक था। लेकिन अंग्रेजों ने अपना उत्तर जलियाँवाला बाग हत्याकांड के द्वारा दिया। 1919 का भारत सरकार अधिनियम भारतीयों की आशाओं पर भीषण प्रहार था। यह अधिनियम उन्हें स्वशासन देने में असफल रहा।
यही नहीं युद्ध के बाद सेर्वे की संधि (10 अगस्त, 1919 ई.) के द्वारा टर्की साम्राज्य को विभाजित कर दिया। खलीफा को अपदस्थ कर कुस्तुन्तुनियां में नजर बंद कर दिया गया। भारतीय मुसलमानों में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। उन्होंने खिलाफत आंदोलन द्वारा इस विश्वासघात का विरोध किया। महात्मा गांधी को समर्थन प्रदान कर दिया। गाँधी जी के परामर्श से अंग्रेजों से दीर्घकालीन संघर्ष हेतु खिलाफत आंदोलन को 20 मई 1920 ई. को असहयोग आंदोलन में परिणत कर दिया गया।
इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने भारतीयों को प्रथम विश्व युद्ध के बलिदानों के प्रत्युत्तर में दमन एवं विश्वासघात ही दिया। लेकिन इससे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समर्थन में वृद्धि अवश्य हुई।
