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वर्साय की संधि की प्रमुख शर्तें

वर्साय की संधि की प्रमुख शर्तें (Key Terms of the Treaty of Versailles)

लगभग चार माह के वाद-विवाद के बाद मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के साथ संपन्न होने वाली संधि का प्रारूप तैयार किया। 7 मई, 1919 को यह प्रारूप जर्मनी प्रतिनिधियों के सामने विचारार्थ प्रस्तुत किया गया। इसके बाद जर्मनी सरकार ने प्रारूप की शर्तों में संशोधन और सुधार करने के लिए कुछ सुझाव दिए।

मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के विरोध-प्रस्तावों पर विचार करने के बाद संधि में कुछ छोटे-मोटे परिवर्तन किये और जर्मनी से पाँच दिनों में संशोधित संधि पर हस्ताक्षर करने को कहा। जर्मनी को यह चेतावनी भी दी गयी कि यदि उसने संधि को निर्धारित तिथि तक स्वीकार नहीं किया तो मित्र राष्ट्रों की सेना जर्मनी पर आक्रमण कर देगी। किन्तु जर्मनी की गणतंत्रीय सरकार की राष्ट्रीय सभा ने संधि की शर्तों को स्वीकार करने की सहमति प्रदान कर दी।

इस प्रकार 28 जून, 1919 को जर्मनी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर कर दिये। इसके बाद अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी हस्ताक्षर करके अपनी स्वीकृति दे दी।

वर्साय की संधि की प्रमुख शर्तें

पेरिस सम्मेलन में संपन्न हुई सभी संधियों में वर्साय संधि सबसे अधिक बङी और सर्वप्रमुख थी। इस संधि के अन्तर्गत 15 अध्याय, 439 धारायें तथा 80,000 शब्द थे। इसे अंग्रेज और फ्रेंच भाषाओं में लिखा गया था।

वर्साय की संधि की मुख्य धारायें निम्नलिखित थी-

  • प्रादेशिक व्यवस्था संबंधी शर्तें
  • जर्मनी की सैनिक शक्ति का विनाश
  • क्षतिपूर्ति संबंधी शर्तें।

प्रादेशिक व्यवस्था संबंधी शर्तें

वर्साय की संधि के अन्तर्गत प्रादेशिक व्यवस्था संबंधी निम्न शर्तें थी-

  • अल्सास और लारेन के प्रदेश जर्मनी से छीनकर फ्रांस को दे दिये गये।
  • यूपेन तथा मालमेडी का क्षेत्र, जिस पर जर्मनी का अधिकार था, बेल्जियम को दे दिया गया।
  • पोसेन का प्रदेश, पश्चिमी प्रशा का अधिकांश भाग तथा ऊपरी साइलेशिया का कुछ भाग पोलैण्ड को सौंप दिया गया।
  • जनमत के आधार पर लिये गये निर्णय के अनुसार श्लेसविग राज्य के उत्तर भाग पर डेनमार्ग का अधिकार स्वीकार किया गया, जबकि इस राज्य का दक्षिणी भाग जर्मनी के अधिकार में बना रहा।
  • जर्मनी ने मेमेल का प्रदेश लिथुआनिया को दे दिया।
  • पोलैण्ड के जिन क्षेत्रों पर जर्मनी, आस्ट्रिया या रूस का अधिकार था, उन क्षेत्रों को पोलैण्ड को पुनः दे दिया। पोलैण्ड को बाल्टिक समुद्र तक पहुँचने के लिए एक गलियारा भी दिया गया।
  • डेजिंग बंदरगाह से जर्मनी का अधिकार समाप्त करके इसे राष्ट्र संघ के संरक्षण में दे दिया गया।
  • युद्ध की अवधि में जर्मनी ने फ्रांस के उत्तरी भाग में स्थित कोयले की खानों को नष्ट कर दिया था। इसलिए फ्रांस जर्मनी से सार प्रदेश को लेने का इच्छुक था। अतः फ्रांस की क्षति को पूरा करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया कि सार प्रदेश की कोयले की खानों का प्रयोग करने का अधिकार फ्रांस को प्राप्त होगा। किन्तु यह क्षेत्र 15 वर्ष तक राष्ट्र संघ के संरक्षण में रहेगा। इस अवधि के समाप्त होने के बाद जनमत के आधार पर इस क्षेत्र के राजनीतिक भविष्य का निर्णय किया जायेगा।
  • शान्तुंग के प्रश्न पर पेरिस सम्मेलन में मतभेद उत्पन्न हो गया। 1898 की संधि के अनुसार शान्तुंग पर आस्ट्रिया का नियंत्रण था तथा इससे पहले चीन का अधिकार था। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में जापान मित्रराष्ट्रों के पक्ष में इस शर्त के साथ सम्मिलित हुआ था कि युद्ध के बाद शान्तुंग प्रदेश जापान को दे दिया जायेगा और इसी उद्देश्य से जापान के प्रतिनिधि पेरिस सम्मेलन में आये थे। दूसरी ओर चीन भी शान्तुंग प्रदेश को प्राप्त करने का इच्छुक था, अतः उसने भी माँग की। चूँकि विल्सन ने आत्मनिर्णय के सिद्धांत के आधार पर चीन की माँग को स्वीकार कर लिया, इसलिए जापान के प्रतिनिधि सम्मेलन छोङकर चले गये। अन्ततः संकटमय स्थिति को देखते हुए मित्र राष्ट्रों ने यह निर्णय लिया कि शान्तुंग के आर्थिक अधिकार जापान को प्रदान किये जायेंगे, जबकि राजनीतिक अधिकारों पर चीन का आधिपत्य होगा।
  • जर्मनी ने बेल्जियम, पोलैण्ड तथा चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्र राष्ट्रीयता को सदैव के लिए स्वीकार किया।
  • चीन, टर्की, मिस्त्र, मोरक्को और बल्गेरिया में जर्मनी के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
  • जर्मनी के सभी उपनिवेश छीन लिए गए तथा मेंडेट व्यवस्था के आधार पर मित्र राष्ट्रों के मध्य उनका वितरण कर दिया गया।

सैनिक शर्तें

जर्मनी की सैनिक शक्ति को प्रथम विश्व युद्द का प्रमुख कारण माना गया। इसीलिए मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को सैनिक दृष्टि से पंगु बनाने का निश्चय किया। इस उद्देश्य से वर्साय की संधि में निम्नलिखित मुख्य शर्तें निर्धारित की गयी थी-

  • जर्मनी की अधिकतम सैनिक संख्या एक लाख निश्चित कर दी गयी जिसमें चार हजार अधिकारी भी शामिल थे।
  • सार्वजनिक अनिवार्य सैनिक सेवाएँ बंद कर दी गयी।
  • जर्मनी के जनरल स्टॉफ को भंग कर दिया गया।
  • जर्मनी को हेलिगोलैण्ड बंदरगाह की किलेबंदी का परित्याग करना पङा तथा उसने भविष्य में इस क्षेत्र में किलेबंदी न करने का आश्वासन दिया।
  • राइन नदी के बायें किनारे पर तथा दाहिने किनारे पर पचास किलोमीटर चौङाई के क्षेत्र में जर्मनी को किलेबंदी करने से रोक दिया।
  • आधुनिक युग के अस्त्र-शस्त्रों एवं अन्य युद्ध उपकरणों को रखने के संबंध में जर्मनी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • जर्मनी को अपना जहाजी बेङा मित्र-राष्ट्रों को समर्पित करना पङा।

आर्थिक शर्तें

वर्साय की संधि के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति के संबंध में निम्नलिखित शर्तें रखी गयी थी-

  • युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जर्मनी से अधिकतम राशि (नकद या वस्तु के रूप में) वसूल करनी चाहिए।
  • क्षतिपूर्ति की धनराशि को निश्चित करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि जर्मनी में एक क्षतिपूर्ति आयोग का गठन किया जायेगा जो अपना कार्य 1 मई, 1921 तक समाप्त कर देगा। इससे पूर्व तक की अवधि के लिए यह निश्चित हुआ कि जर्मनी मित्र राष्ट्रों को 5 अरब डालर स्वर्ण मुद्रा या सामान के रूप में देगा।
  • जर्मनी क्षतिपूर्ति की धनराशि का भुगतान वस्तुओं के रूप में कर सकता है। इस निर्णय के अनुसार जर्मनी ने अपने सभी व्यापारिक जहाज तथा बङी संख्या में गायें, बैल, भेंङें, घोङे, कोयला आदि मित्र राष्ट्रों को सौंप दिए।
  • क्षतिपूर्ति की राशि को वसूल करने के लिए राष्ट्रों को आवश्यकता पङने पर बल प्रयोग करने का अधिकार दिया गया।
  • जर्मनी 10 वर्षों तक 70 लाख टन कोयला फ्रांस को, 80 लाख टन कोयला इंग्लैण्ड को और उतना ही कोयला बेल्जियम को देता रहेगा।
  • मोरक्को, मिस्त्र, चीन आदि में जर्मनी को प्राप्त व्यापारिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
  • जर्मनी अपने 1600 अथवा इससे अधिक टन के सभी व्यापारिक जहाज मित्र राष्ट्रों को सौंप देगा।

कानूनी व्यवस्थाएँ

वर्सीय की संधि में जर्मनी को युद्ध का प्रारंभ करने का दोषी ठहराया गया। जर्मनी के सम्राट विलियम द्वितीय पर मुकदमा चलाने के लिए एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया, परंतु विलियम द्वितीय पर मुकदमा नहीं चलाया जा सका, क्योंकि उसने हॉलैण्ड में शरण ले ली थी। केवल 12 व्यक्तियों पर ही जर्मन न्यायालयों में मुकदमे चलाये गये तथा उनमें से कुछ व्यक्तियों को साधारण सजाएँ दी गयी।

अन्य शर्तें

i.) जर्मनी की प्रमुख नदियों – एल्ब, ओडर, नीमन तथा डैन्यूब को अन्तर्राष्ट्रीय घोषित कर दिया गया।

ii.) चेकोस्लोवाकिया को जर्मनी के दो बंदरगाहों – हैम्बर्ग तथा स्टैफिन के उपयोग की स्वतंत्रता दी गयी।

iii.) जर्मनी से कहा गया कि 1870 के युद्ध में जर्मनी फ्रांस से जो विजय चिह्न झंडा तथा कलात्मक वस्तुएँ लाया था, वे सब फ्रांस को लौटा दी जायें।

iv.) रूस और जर्मनी के बीच की गयी ब्रेस्टलिटोवास्क की संधि को मान्य घोषित किया गया।

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