सिंधु सभ्यता का महत्वपूर्ण बंदरगाह – लोथल

लोथल (lothal)- यह नगर सिंधु सभ्यता का मुख्य बंदरगाह था। यह नगर गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित था , इस स्थल की खोज डा. एस. आर.राव.ने 1957 में की थी। यह स्थल पश्चिमी एशिया से व्यापार करने का प्रमुख बंदरगाह था। यहां से फारस की खाङी प्रकार की एक मुहर मिली है।
यहां से प्राप्त कुछ मुहरों पर कपङे के छाप के चिन्ह प्राप्त हुए हैं। यहां से भी धातुकर्मियों , सीप, आभूषण बनाने वालों तथा मनका बनाने वालों की दुकानें प्राप्त हुई हैं।
चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य लोथल से ही मिला है। इस स्थल के अलावा एक और ऐसा स्थल जहां से चावल के साक्ष्य मिले हैं वह स्थल रंगपुर है।
उत्खननों में लोथल की जो नगर योजना तथा अन्य भौतिक वस्तुएं प्राप्त हुई हैं उनसे लोथल लघु हङप्पा या मोहनजोदङो नगर जैसा प्रतीत होता है। फारस की मुद्रा तथा पक्के रंग में रंगे हुए पात्रों की प्राप्ति से लगता है कि लोथल हङप्पा सभ्यता का सामुद्रिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था।
एक ही कब्र में दो लोगों के शव के पाए जाने से जहां युगल शवाधान की रीति की पुष्टि होती है। यहां से अग्निवेदियों के साक्ष्य भी मिले हैं।यहां से एक तराजू भी प्राप्त हुआ है। लोथल से एक ऐसा शव प्राप्त हुआ है,जो कब्र करवट लिए हुए लिटाया गया है, शव का सिर पूरब तथा पैर पश्चिम दिशा में हैं। लोथल से घोङे की मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
लोथल से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण अवशेष – चावल तथा बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, तीन युगल समाधियां, बंदरगाह, घोङे की मृण्मूर्तियां, उपकरण, बाट तथा माप और पत्थर के उपकरण आदि प्राप्त हुए हैं।
लोथल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पक्की ईंटों का बना हुआ एक घेरा है जिसे राव ने जहाजों की गोदी (Dock-Yard)कहा है। गोदीबाङा की प्राप्ति से इस नगर के प्रसिद्द बंदरगाह होने का पता चलता है। यह विश्व का प्राचीनतम ज्ञात बंदरगाह था। यहां मिस्र तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक जहाज आते – जाते थे। तथा लोथल का मोहनजोदङो से घनिष्ठ संबंध था।