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दजला-फरात घाटी के पूर्वी भाग की सभ्यता (मेसोपोटामिया की सभ्यता)

दजला-फरात घाटी के पूर्वी भाग की सभ्यता

प्राचीन मेसोपोटामिया नगर दो नदियों दजला-फरात, जिनका स्त्रोत एशिया माइनर में स्थित पर्वत है, तथा जो दक्षिण – पूर्व दिशा में बहती हुई फरात की खाङी में गिरती हैं, की घाटी के बीच स्थित है। इस घाटी के उत्तर में काला-सागर एवं कैस्पियन सागर हैं। दक्षिण में फारस की खाङी के पार हिन्द महासागर है।

इसके दक्षिण-पूर्व में अरब भूखंड है, जो पश्चिम में लाल सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर तक फैला हुआ था। आज जहां इराक और सीरिया जैसे देश स्थित हैं, उसी धरती पर कभी मेसोपोटामिया सभ्यता(Mesopotamian Civilization) हुआ करती थी। यह प्राचीन सभ्यता उत्तरी असीरिया और दक्षिणी बेबीलोनिया में विभाजित थी। फिर इसे निचले स्तर पर भी कई प्रांतों में बाँटा गया था।

मेसोपोटामिया प्राचीन सभ्यता से जुङा एक महत्त्वपूर्ण इलाका है।

यह एक कांस्ययुगीन सभ्यता थी। मेसोपोटामिया के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। मेसोपोटामिया का यूनानी अर्थ है, दो नदियों के बीच।

मेसोपोटामिया सभ्यता के तीन प्रमुख केन्द्र थे-

  1. सुमेरिया,
  2. बेबीलोनिया,
  3. असीरिया

मेसोपोटामिया का अर्थ

दजला-फरात मेसोपोटामिया सभ्यता को परिभाषित करने वाली दो नदियों का समुच्चय है। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक मेसोपोटामिया सभ्यता इन्हीं दो नदियों की घाटियों में पनपी थी। दजला मेसोपोटामिया की पूर्वी और फरात पश्चिमी ओर से बहने वाली नदी थी। मेसोपोटामिया वर्तमान में इराक में स्थित है। इन दोनों नदियों में बाढ आ जाया करती थी।

जिसके कारण इन नदियों के किनारे पर मिट्टी और गाद जमा हो जाती थी। इससे यहां की मिट्टी उपजाऊ बन जाती थी। इससे यहां के लोग खेती का कार्य करते थे, तथा उनको उपज भी अत्यधिक मिलती थी। इसी बढोतरी से यहां लोहार, कुम्हार, मिस्त्री, बुनकर और बुनाईकार जैसे अनेक दस्तकार थे।ये लोग अनेक वस्तुयें बनाते थे, तथा बेचते थे। और अपने रोजमर्रा के जीवन को चलाते थे। यहां के लोग अन्य देशों से जमीन व पानी दोनों मार्गों से व्यापार करते थे।

आधुनिक समय में इस घाटी की एक ओर सीरिया और अरब सागर के मरुद्यान हैं तथा दूसरी ओर आर्मीनिया की उच्च भूमि। इस प्रदेश को बाइबिल पूर्वार्द्ध (ओल्ड टेस्टामेंट) में गार्डन ऑफ इडेन भी कहा गया है।

इन नदियों के मुहाने पर सुमेरिया बीच में बेबीलोनिया तथा उत्तर में असीरिया सभ्यता का विकास हुआ इन सभ्यताओं के विषय में यह कहावत प्रचालित है सुमेरिया ने सभ्यता को जन्म दिया बेबीलोनिया ने उसे उत्पत्ति के चरम शिखर तक पहुँचाया और असीरिया ने उसे आत्मसात किया दूसरे शब्दों में सुमेरिया, बेबीलोनिया और असीरिया इन तीनो सभ्यताओ के सम्मिलित से जो सभ्यता विकसित हुई उसे मेसोपोटामिया की सभ्यता(Mesopotamian Civilization)कहा गया।

सुमेरियन सभ्यता (3500 ई.पू.-2340 ई.पू.)

सुमेरियन जाति के मानव इस घाटी में नवीन पाषाण युग में जिस समय प्रविष्ट हुये थे, उनको कृषि का ज्ञान हो चुका था।

इन लोगों का जीवन धर्म से निर्देशित होता था। प्रत्येक शहर में एक मंदिर और इस मंदिर का एक पुरोहित होता था। पुरोहित ही शासन व्यवस्था का मुखिया होता था। यहाँ के लोग पुरोहित की आज्ञा का पालन करते थे तथा उसे भगवान का प्रतिनिधि समझते थे।

बेबीलोनियन सभ्यता

इस जाति के शासकों ने बेबीलोन नगर का निर्माण किया, जो आधुनिक समय में काशगर के मैदान के नाम से जाना जाता है।

इन्हें बाबल लोग भी कहा जाता है। इनको एवं इनकी सभ्यता को सभ्यता के इतिहास में इसी नाम से जाना जाता है।

बेबीलोनियन सभ्यता के शासकों में हम्बूरावी (2123 ई.पू. से 2081 ई.पू.) शक्तिशाली एवं योग्य शासक ता। उसने संपूर्ण मेसोपोटामिया को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। वह पूर्णतः निरंकुश शासक था। संपूर्ण प्रजा उसकी दया पर आश्रेतच थी। वह अपने को पृथ्वी पर दैवी अवतार मानता था।

असीरियन सभ्यता

बेबीलोन नगर के उत्तर में 200 मील दूर आसुर नगर में असीरियन जाति के मानव उस समय शासन कर रहे थे, जबकि बेबीलोनियन सभ्यता उन्नति की पराकाष्ठा पर थी।

असीरियन जाति के व्यक्ति युद्धप्रिय थे। युद्ध इनकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्त्रोत था। धर्म का इनके जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान था। असीरियन बहुदेव पूजक थे और सूर्य इनके प्रमुख देवता थे।

इश्तर देवी की भी असीरियन समाज में पूजा की जाती थी। वह प्रजनन शक्ति की देवी थी। इसी जाति के शासकों ने सर्वप्रथम 11 वीं सदी ई.पू. में बेबीलोन नगर पर आक्रमण कर उसे विजित करने का प्रयत्न किया, परंतु बेबीलोनियावासियों ने उनके आक्रमण को न केवल असफल किया, बल्कि भविष्य में दो शताब्दियों तक अपने राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा की।

मेसोपोटामिया सभ्यता से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • चाक का प्रयोग सबसे पहले इस सभ्यता के लोगों ने ही किया था। चाक का प्रयोग करके इन लोगों ने मिट्टी के बर्तन बनाना प्रारंभ कर दिया था।
  • यहाँ के लोग खगोल विद्या के बारे में भी जानते थे। इस सभ्यता के लोगों ने दिन और रात की लंबाई की गणना की तथा सूर्य और चंद्रमा के उदय व अस्त होने के समय की गणना की।
  • मेसोपोटामिया की सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं
  • सामाजिक जीवन
  • समाज तीन वर्गों में विभाजित था, उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग।
  • कानून का निर्माण एवं कानून का संग्रह
  • बेबीलोनिया के शासक हम्मूराबी को प्रथम कानून निर्माता की संज्ञा दी गयी है। हम्मूराबी ने सर्वप्रथम कानूनों का निर्माण करवाया और इसके साथ ही साथ उसने इन कानूनों का संग्रह भी किया। कानूनों के निर्माण एवं संग्रह को हम्मूराबी की विधि संहिता कहा जाता है। हम्मूराबी की इस विधि संहिता में सभी वर्गों के लोगों के लिये समान अधिकारों की व्यवस्था की गयी थी।

लेखन कला एवं साहित्य का विकास

कृषि एवं व्यापार के अलावा मेसोपोटामिया की सभ्यता में लेखन एवं साहित्य का विकास भी हुआ था। इस सभ्यता के लोगों ने जिस लिपि का विकास किया, उसे कीलाकार लिपि के नाम से जाना जाता है। लेखन कला का आविष्कार इस सभ्यता में ही हुआ था। मेसोपोटामिया के लोगों ने लेखन की कला का भी विकास कर लिया था। इन लोगों की वर्णमाला संकेत चिह्नों या चित्रों का समूह होती थी। इस लेखन की कला शैली को चित्रलिपि कहते थे। बाद में यहां के लोग फान जैसी लकीरें खींचने लगे तथा इस लिपि को किलाक्षर लिपि कहा गया। मेसोपोटामिया में शासक वर्ग में पुरोहित, राजा तथा कुलीन शामिल थे। इनके अलावा सौदागर, आमलोग तथा गुलाम थे।

धार्मिक जीवन

इन लोगों का धार्मिक जीवन बहुत ही उच्च कोटि का था तथा इस समाज के लोगों का अनेक देवी देवताओं में विश्वास था। मेसोपोटामिया की सभ्यता के प्रमुख देवता शमाश (सूर्य देवता), एनलिल (वायु देवता), नन्नार (चंद्र देवता), अनु (आकाश देवता) आदि थे।

यहाँ पर हर शहर का एक संरक्षक देवता होता था। यहाँ पर अनेक मंदिरों के साक्ष्य भी मिलते हैं।

इस सभ्यता के दो प्रमुख देवता शमाश एवं अनु थे।

प्रत्येक नगर में एक प्रधान मंदिर होता था, उस मंदिर के देवता को नगर का संरक्षक माना जाता था। इस सभ्यता के लोग अंधविश्वासी होते थे। इस सभ्यता के लोग भूत, प्रेत, जादू-टोना, ज्योतिष एवं भविष्यवाणियों पर विश्वास करते थे।

जिगुरत

मेसोपोटामिया की सभ्यता में नगर के संरक्षक देवता के लिये नगर में किसी ऊंचे स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया जाता था। इस मंदिर को जिगुरत कहा जाता था। यहाँ के लोग अपने देवी-देवताओं को खुश रखने के लिये पशुओं की बलि देते थे।

यहां के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। कृषि के अलावा पशुपालन का भी कार्य करते थे।

इस सभ्यता के लोग धातु, लकङी हाथी के दांत, मिट्टी आदि की कलात्मक वस्तुएं बनाते थे। और इन वस्तुओं का व्यापार वे लोग अन्य देशों के साथ करते थे। यहां के लोग व्यापारिक लेन-देन के लिये नापतोल के बाटों एवं सिक्कों का भी निर्माण करते थे। यहां के लोगों ने कृषि, व्यापार एवं लेखन कला के अलावा खगोल शास्त्र, ज्योतिष, गणित एवं विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति की थी।

मेसोपोटामिया की सभ्यता का अंत

सिकंदर महान ने 331 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया की सभ्यता को नष्ट कर दिया और वहां ग्रीक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। इसी के साथ मेसोपोटामियाई परंपराएं और जीवन दर्शन खो गया। फिर उसे हजार साल बाद फिर से खोद कर निकाला गया और अब इसे लूवरे म्युजियम में सहेजकर रखा गया है।

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