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सुमेरियन सभ्यता का इतिहास

सुमेरियन सभ्यता का इतिहास

सुमेरिया की सभ्यता (History of Sumerian Civilization)की खोज 19 वीं शता. में हुई थी। काले पत्थर से निर्मित शिलालेख सूसा से 1901 ई. में मिला था। जिस पर बेबीलोनियन भाषा में कानूनी संहिता लिपिबद्ध थी। सर लियोनार्ड वूली ने ईरान के एक पुराने नगर में खुदाई का कार्य प्रारंभ करवाया।

जिसमें मिट्टी की तख्तियां, इमारतों के खंडहर और कई कलात्मक वस्तुएं और राजाओं की समाधियां प्राप्त हुई। इन सभी स्त्रोतों का अध्ययन करने के बाद पता चला, कि मेसोपोटामिया की सभ्यता ही पारदर्श हुई है।

अतः हम कह सकते हैं, कि सुमेरिया सभ्यता का जन्म तथा विकास दजला-फरात नदियों की घाटी में हुआ था। प्राचीन काल में इसे मेसोपोटामिया कहा जाता था, जो आज का आधुनिक ईराक है।

सुमेरियन सभ्यता का सामाजिक जीवन

सुमेरियन सभ्यता तीन प्रकार के वर्गों में बँटी हुई थी, जो निम्नलिखित हैं

  1. उच्च वर्ग – इस वर्ग में राजा, पुरोहित तथा राज्य के अन्य अधिकारी होते थे।
  2. मध्यम वर्ग – इस वर्ग में कृषक, व्यापारी।
  3. दास वर्ग – इस वर्ग में दास, छोटे दर्जे के कृषक।

समाज में दास प्रथा भी प्रचलित थी। स्त्रियों की दशा अच्छी थी, उनको अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार था। स्त्रियाँ व्यापार भी कर सकती थी।

राजनैतिक जीवन

सुमेरिया में केन्द्रीय शासन था। उर, उरूक, निपुर, उमा आदि मुख्य नगर थे। यहाँ का शासन धर्म पर आधारित था। राजा को ईश्वर के प्रतीक माना जाता था। शारगोन प्रथम इस सभ्यता का शक्तिशाली शासक था। सुमेरिया प्राचीन काल में छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था। इन लोगों के जीवन व्यापन के लिये कृषि तथा पशुपालन मुख्य था। दजला एवं फरात नदियों के होने के कारण यहां की मिट्टी उपजाऊ थी। यहां पर गेहूँ, जौ, दाल तथा विभिन्न प्रकार के अनाज मुख्य रूप से यहां पर होते थे। यहां के लोग गाय, बैल, बकरी, कुत्ता तथा गधा जैसे पशु भी पालते थे।

यहां से खुदाई से पहिया प्राप्त हुआ है, जो रथ के अवशेष से प्राप्त हुये हैं, जो विश्व में सबसे प्राचीन पहिये के अवशेष हैं।

लेखन, कला एवं शिक्षा

सुमेरियन लोगों ने 3000 ई.पू. में लिपि का आविष्कार कर लिया था। यहां के लोगों का गणित की जानकारी भी थी। ये लोग रसायन, वनस्पति विज्ञान के बारे में भी जानते थे। इन लोगों को भौगोलिक ज्ञान भी था। यहां के लोगों को विभिन्न कलाओं का भी ज्ञान था। यहां की खुदाई में बर्तन, मूर्तियां, मोहर,गुंबद, देवालय तथा कई प्रकार के उपकरण मिले हैं। देवताओं तथा राजाओं की मूर्तियों के भी साक्ष्य मिले हैं।

धार्मिक जीवन

प्रारंभ में यहां के लोग एकेश्वरवादी थे। किन्तु बाद में यहां के लोगों के बहुदेववादी होने के साक्ष्य भी मिलते हैं। प्रत्येक नगर में अलग-अलग देवताओं की पूजा की जाती थी। यहां के लोग अंधविश्वासी भी थे।

सुमेरियाई लोग मंदिरों को ऊंचे स्थानों पर बनाते थे। मंदिर धार्मिक कार्यों के अलावा सामाजिक जीवन का भी केंद्र थे। इन मंदिरों में जिन देवताओं की पूजा होती थी, वे पहले लोक देवता थे। देवताओं का प्रभाव क्षेत्र स्थानीय होता था। इस तरह हर शहर के अलग-अलग देवता थे।

उन्होंने अपने देवताओं पर मानवीय प्रकृति, चरित्र और गुणों का समावेश किया था। प्राचीन शहर उरुक में पूजित ‘अनु’ नाम का देवता आकाश का देवता माना जाता था। समय के साथ वह सर्वश्रेष्ट देवता बन गया। दूसरा प्रधान देवता ‘एनलिल’ था। एनलिल की पूजा निपुर नाम के शहर में होती थी। यह तूफानों का देवता था।

बाद में ‘मारडूक’ नाम के देवता को सर्वोच्च देवता माना गया। इनका तीसरा स्थान था। चौथा स्थान ‘एनकी’ नाम के देवता का था। वह पहले देवता ‘अनु’ का पुत्र था। इसे जल देवता माना जाता था।

छोटे देवताओं के रूप में पृथ्वी माता की कई रूपों में पूजा होती थी। इन सभी देवी और देवताओं में ‘इन्ने की’ नाम की देवी काफी लोकप्रिय थीं, वह उर्वरता की देवी मानी जाती थी। सुमेलिया के लोग इस देवी की पूजा ‘इश्तर’ नाम की देवी के रूप में भी करते थे।

इश्तर से संबंध रखने वाला देवता था ‘तम्मुज’। तम्मुज के बारे में अलग अलग धर्म ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन मिलता है। कहीं उसे इश्तर का भाई तो कहीं लड़का तो कहीं प्रेमी बताया गया है।

तम्मुज फल, अनाज और वनस्पति का देवता माना जाता था। सुमेरिया के लोग ग्रहों की पूजा भी करते थे। उनमें ‘सिन’ और ‘शमश’ मुख्य थे। जो क्रमशः चंद्र और सूर्य के पर्यावाची शब्द हैं।

इन सभी देवी और देवताओं की पत्नी और बच्चों के बारे में भी उल्लेख मिलता है। सुमेरिया के लोगों ने ‘शियोल‘ नाम से एक काल्पनिक लोक की कल्पना की थी जहां मृत्यु के बाद आत्माएं जाती हैं।

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