महारानी विक्टोरिया की घोषणा –
1 नवम्बर, 1858 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा की – हमने उन समस्त भारतीय प्रदेशों को अपने अधिकार में लेने का निर्णय कर लिया है जो इसके पूर्व कंपनी के पास थे और जिन पर वह हमारी ओर से कार्य कर रही थी। हम इन प्रदेशों में रहने वाली प्रजा से अपने देशवासियों एवं उत्तराधिकारियों के प्रति राजभक्ति की आशा करते हैं।

हम लार्ड केनिंग को अपने भारतीय प्रदेशों का प्रथम वायसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त करते हैं। हम उन समस्त संधियों को जो कंपनी ने भारतीय राजाओं के साथ की हैं, प्रसन्नता से स्वीकार करते हैं और उन्हें पूर्ण विश्वास दिलाते हैं कि हम उनके प्रदेशों एवं अधिकारों पर छापा मारने का अधिकार नहीं देंगे। हम अपने अधिकारों, प्रतिष्ठा और सम्मान जैसा ही भारतीय नरेशों के अधिकारों, प्रतिष्ठा और सम्मान का आदर करेंगे।
हम अपनी प्रजा के सदस्य पर भी अपने धार्मिक विचारों को नहीं थोपेंगे और न ही हम प्रजा के धार्मिक जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करेंगे। सब के साथ समान तथा निष्पक्ष न्याय किया जायेगा। नौकरियों के विषय में भर्ती का आधार एकमात्र योग्यता होगी। जाति या संप्रदाय को किसी प्रकार का महत्त्व नहीं दिया जायेगा।अपराधियों और विद्रोहियों को बिना शर्त क्षमा दी जाती है।
हमारी यह प्रबल इच्छा है कि शांतिप्रद व्यवसायों को प्रोत्साहन दिया जाये, उपयोगिता के कार्यों में वृद्धि की जाए और कृषि प्रदेशों में रहने वाली प्रजा के हितों को ध्यान में रखते हुए शासन किया जाये। प्रजा की समृद्धि में हमारी सुरक्षा है और उसकी कृज्ञता में ही हमारा गौरव है।
महारानी विक्टोरिया की घोषणा का महत्त्व
महारानी विक्टोरिया की यह घोषणा 1947 तक भारत में ब्रिटिश नीति का आधार रही। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में, यह घोषणा भारतीय जनता के लिए वरदान सिद्ध हुई। इसने भारतीयों को शांति, समृद्धि, स्वतंत्रता, समान व्यवहार और योग्यता के आधार पर पद प्रदान करने का वचन दिया।
1857 के विद्रोह के कारणों और भारतीय नरेशों के असंतोष को बहुत सीमा तक इस घोषणा ने दूर कर दिया।
