इतिहासतुर्क आक्रमणमध्यकालीन भारत

गोरी राजवंश का इतिहास

गोरी राजवंश – 12वीं शताब्दी के मध्य में गोरी वंश का उदय हुआ। गोरी-साम्राज्य का आधार उत्तर-पश्चिमी अफगानिस्तान था। यह राजवंश मध्यकालीन भारत के समय में भारत आया था। आरंभ में गोरी, गजनी के अधीनस्थ थे, पर शीघ्र ही उन्होंने यह बोझ फेंक दिया। गोर में जो वंश प्रधान था, उसका नाम था शंसबानीमोहम्मद गोरी के समय में यह वंश महत्त्वपूर्ण हो गया और अपने आपको उसी वंश ने गजनी में प्रतिष्ठित किया। गजनी को अपना मुख्य स्थान बनाकर उसने भारत पर कई बार आक्रमण किए और दिल्ली सल्तनत की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। गोरी के राजनीतिक संगठन के विषय में चर्चा करते हुए मुहम्मद हबीब लिखते हैं, गोर के भारतीय राज्य के पीछे साम्राज्य का विचार नहीं था और न कोई सरकार का रूप था। यदि हम उसके राज्य के विस्तार के बारे में ध्यान न दें, तो जिस संस्था के समान वह था वह भारतीय संयुक्त परिवार प्रथा के बहुत निकट था।
मुहम्मद गौरी का इतिहास

शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई. में हुआ और सन् 1205 ई. तक वह बराबर साम्राज्य विस्तार अथवा पूर्वविजित राज्य की रक्षा के लिये भारत पर चढाई करता रहा। उसने 1175-1176ई. में मुल्तान और उच्छ पर आक्रमण किया, 1178 ई. में गुजरात पर आक्रमण और 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान के साथ तराइन की लङाई लङी। इस युद्ध में शिहाबुद्दीन की सेना के दोनों पार्श्व परास्त हो गए। यह केवल उसकी सेना की ही हार नहीं थी, बल्कि साथ-साथ उसकी योजना की हार थी – अर्थात् भारतीय साम्राज्य स्थापित करने का संकल्प। तराइन के दूसरे युद्ध (1192 ई.) में पृथ्वीराज की हार हुई और उसके साथ ही एक केंद्रीय राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हुई, जो बाद तक कायम रही। 1192 ई. में गोरी ने कन्नौज के राजा रायचंद को चंदावर के युद्ध में हराया। शिहाबुद्दीन की तराइन विजय केवल एकाकी राजनीतिक घटना न थी, बल्कि एक शक्तिशाली विजेता की लगातार विजयों में एक सुगठित विजय थी। इस विजय का लक्ष्य था भारत में मुस्लिम-तुर्की राज्य बनाना। इस विजय के द्वारा तुर्की विजयों का सैनिक पक्ष समाप्त हुआ और दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक नींव डालने का मार्ग प्रशस्त हो गया। चौहानों की शक्ति टूटने के कारण शिहाबुद्दीन का प्रभाव जमता चला गया। अतः इस युद्ध में विजय मिलते ही शिहाबुद्दीन का भारत में साम्राज्य स्थापित करने संकल्प पूरा होना निश्चित हो गया।

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