इतिहासएशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवादविश्व का इतिहास

अफ्रीका में साम्राज्यवाद की विशेषताएँ

अफ्रीका में साम्राज्यवाद की विशेषताएँ

अफ्रीका में साम्राज्यवाद : 1850 ई. से पूर्व यूरोप में अफ्रीका के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं थी और उसे अन्धकारमय महाद्वीप कहा जाता था। यूरोपीय राज्यों ने केवल उसके तटवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार जमा रखा था। अफ्रीका के 90 प्रतिशत भाग पर यूरोप का आधिपत्य नहीं था, किन्तु 1850 से 1890 के बीच साहसी खोजकर्त्ताओं ने अफ्रीका के आंतरिक प्रदेशों की जानकारी प्राप्त कर ली।

अफ्रीका का विशाल महाद्वीप यूरोप के अत्यंत समीप होने के बाद भी यूरोपवासी इसके संबंध में कोई ज्ञान नहीं रखते थे और यदि कोई देश अफ्रीका के संबंध में कुछ जानकारी रखते भी थे तो वह न के बराबर ही थी। इस समय तक लोग अफ्रीका महाद्वीप की आंतरिक समृद्धि से अवगत नहीं थे। व्यापारी-वर्ग भी इस महाद्वीप के संबंध में केवल इतना ही जानते थे कि वे यहां से हब्शियों को पकड़कर ले जाते थे और दासों के रूप में उन्हें अमेरिकी किसानों को बेच देते थे।

फलस्वरूप फ्रांस, पुर्तगाल, इटली, ब्रिटेन, जर्मनी, बेल्जियम आदि देश अफ्रीका के विभिन्न भागों में छीना-झपटी में शामिल हो गए। चालीस वर्ष की अवधि में अबीसीनिया और लाइबेरिया को छोङकर संपूर्ण अफ्रीका यूरोपीय राज्यों द्वारा आपस में बाँट लिया गया।

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अफ्रीका में साम्राज्यवाद

अफ्रीका में साम्राज्यवाद

अफ्रीका के इस बँटवारे में इसकी कुछ विशिष्टताएँ परिलक्षित होती हैं –

अफ्रीका में साम्राज्यवाद
  • सर्वप्रथम तो अफ्रीका का बँटवारा बिना किसी संघर्ष के हो गया।
  • यद्यपि बँटवारे को लेकर विभिन्न राष्ट्रों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ था तथा संघर्ष की संभावना भी दिखाई दी, किन्तु समस्त संकटों का समाधान कूटनीति से हो गया और संघर्ष का खतरा टल गया। फिर भी यह बँटवारा अत्यन्त शीघ्रता से हुआ।
  • केवल 25-30 वर्षों की अवधि में इतना बङा और महत्त्वपूर्ण काम सम्पन्न हो गया। इसका प्रमुख कारण यह था कि इस समय जर्मनी और इटली जैसे नवोदित राज्य साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा के मैदान में कूद पङे थे, जो शीघ्रताशीघ्र अपने लिए साम्राज्य स्थापित कर लेना चाहते थे।
  • इन नवोदित राज्यों को देखकर ब्रिटेन और फ्रांस जैसी साम्राज्यवादी शक्तियाँ चौकन्नी हो उठी। वे भी जल्दी से अधिक से अधिक प्रदेश हथियाने का प्रयत्न करने लगे। इस कारण अफ्रीका का बँटवारा तेजी से सम्पन्न हो सका।
  • इसके अलावा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह थी, कि इस बँटवारे का वहां के स्थानीय शासकों या सरदारों ने विरोध नहीं किया। इसलिये यूरोपीय देशों ने वहाँ बङी आसानी से अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।
  • अफ्रीका के आदिवासियों के सरदार अशिक्षित होने के साथ-साथ इतने सीधे और भोले थे, कि वे संधि-समझौतों का महत्त्व ही नहीं समझते थे। शराब की कुछ बोतलों या चमकते हुए कुछ भङकीले उपहारों के बदले वे अपनी भूमि यूरोपियनों के हाथों सौंपने को तैयार हो जाते थे। वे ऐसी संधि पर हस्ताक्षर कर देते थे, जिसे वे स्वयं भी नहीं समझते थे। वास्तव में वे इतने असहाय और शक्तिहीन थे, कि पेरिस या लंदन में बैठकर साम्राज्यवादी उनके प्रदेशों को मानचित्र में ही बाँट लेते थे और उन्हें इसका पता तक नहीं चल पाता था।

इस प्रकार जो अफ्रीका कुछ साल पहले तक अज्ञात था, वह अब भूखे साम्राज्यवादियों का शिकार बन गया। 1890 ई. तक आते-आते यूरोप के तथाकथित सभ्य देशों ने अफ्रीका को आपस में बाँट लिया। विश्व राजनीति के रंगमंच पर नया साम्राज्यवाद अपने नग्न रूप में उपस्थित हुआ।

अफ्रीका का विभाजन यूरोप के इतिहास की एक अत्यंत रोमांचक घटना मानी गयी है। विभाजन के महत्वपूर्ण कार्य को अत्यंत शीघ्रता से संपादित किया गया। यद्यपि विभाजनकर्ता विभिन्न राष्ट्रों में आपस में अनेक मतान्तर थे किन्तु फिर भी बिना कोई युद्ध लड़े इस कार्य को शांतिपूर्ण ढंग से पूर्ण कर लिया गया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : अफ्रीका में साम्राज्यवाद

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