इतिहासविश्व का इतिहाससंयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्र संघ : उद्देश्य और सिद्धांत

संयुक्त राष्ट्र संघ : उद्देश्य और सिद्धांत

संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य एवं सिद्धांत

संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर राष्ट्रसंघ के प्रतिज्ञा-पत्र की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। इसमें 10,000 शब्द, 111 धाराएँ और 19 अध्याय हैं। इसके आरंभ में ही इसके उद्देश्यों का वर्णन है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा-पत्र में कहा गया है कि युद्ध के भय को सदा के लिये समाप्त करने, मानव के मौलिक अधिकार, प्रतिष्ठा, योग्यता, स्री व पुरुष तथा छोटे-बङे समस्त राष्ट्रों के समानाधिकार की रक्षा करने, न्याय की स्थापना करने एवं सामाजिक उन्नति और जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई।

संयुक्त राष्ट्र संघ

घोषणा-पत्र में संयुक्त राष्ट्रसंघ के निम्नलिखित उद्देश्य बताए गए हैं-

  • मानव जाति की भावी सन्ततियों को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति प्रदान करना, अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना और इसके लिये शांति को संकट में डालने वाले सभी कार्यों के विरोध के लिये सामूहिक उपायों को ग्रहण करना तथा शांति को भंग करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय झगङों को अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के आधार पर शांतिपूर्ण उपायों को हल करना।
  • विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच परस्पर मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढाना, इसका आधार सभी लोगों को समानाधिकार और आत्म निर्णय का अधिकार होना चाहिये।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या मानवतावादी समस्याओं को हल करने में सभी देशों का सहयोग प्राप्त करना।
  • मानव के मूल अधिकारों के प्रति सम्मान में वृद्धि करना तथा जाति, लिंग, भाषा या धर्म का भेदभाव किए बिना सभी को मौलिक स्वतंत्रताएँ प्राप्त कराना।
  • संयुक्त राष्ट्रसंघ को ऐसा केन्द्र बनाना जो इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये विभिन्न राष्ट्रों द्वारा किए जाने वाले कार्यों में साम्य स्थापित कर सके।

इस प्रकार संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों को संक्षेप में चार शब्दों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है – सुरक्षा, न्याय, कल्याण, मानव अधिकार। किन्तु इसके साथ ही यह भी स्वीकार किया गया है, कि जब तक कोई सदस्य-राष्ट्र चार्टर के अन्तर्गत आचरण करता है, उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये यह आवश्यक था कि इसके लिये कुछ सिद्धांतों को अपनाया जाय। इसलिये निम्नलिखित कुछ सिद्धांत स्पष्ट रूप से चार्टर की दूसरी धारा में दिए गए हैं-

  • सदस्य राष्ट्रों की सार्वभौमिकता और समानता अक्षुण्ण है। उदाहरणार्थ, इसमें रूस और अमेरिका जैसे बङे राज्यों का तथा घाना जैसे हाल ही में स्वतंत्र हुए राज्यों का दर्जा समान माना जाता है, उन्हें बराबर संख्या में प्रतिनिधि भेजने, इसकी सभी कार्यवाहियों में भाग लेने और वोट देने का अधिकार समान है।
  • सदस्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर के अनुसार उन पर लागू होने वाले सभी दायित्वों का पालन पूरी ईमानदारी से करेगा।
  • सदस्य राष्ट्र आपसी विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिये वचनबद्ध हैं।
  • सदस्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों के प्रतिकूल कोई कार्य नहीं करेंगे। वे एक-दूसरे के विरुद्ध न युद्ध करेंगे और न युद्ध की धमकी देंगे।
  • कोई भी सदस्य संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर के प्रतिकूल कार्य करने वाले राष्ट्र की सहायता नहीं करेंगे और संघ की कार्यवाही में प्रत्येक प्रकार से सहयोग देंगे।
  • शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ ऐसी व्यवस्था करेगा के जो देश सदस्य नहीं है, वे भी चार्टर के सिद्धांतों के अनुसार आचरण करें।
  • शांति की रक्षा के लिये जब तक आवश्यकता नहीं, संयुक्त राष्ट्रसंघ किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

ये सभी सिद्धांत आदर्श के रूप में बहुत ही उपयुक्त हैं, किन्तु व्यवहार में बङी कठिनाई उपस्थित करते हैं। उदाहरण के लिये संयुक्त राष्ट्रसंघ दक्षिणी अफ्रीका की रंगभेद नीति का विरोधी है, किन्तु दक्षिणी अफ्रीका गैर श्वेत लोगों पर अमानवीय अत्याचार कर रहा है और जब इस मामले को संघ में ले जाया गया तो उसने इसे अपना आंतरिक मामला बताया।

इसी प्रकार यद्यपि संयुकत राष्ट्र संघ का चार्टर ऐसे विषयों में हस्तक्षेप का अधिकार देता है, जो विश्व शांति के लिये घातक हों या शांति भंग होने की संभावना हो, किन्तु यह कठिन प्रतीत होता है क्योंकि संबंधित राष्ट्र की स्वीकृति के बिना ऐसा कोई प्रयत्न सफल नहीं हो सका है।

इस प्रकार ये सभी सिद्धांत आदर्श रूप में होते हुए भी कार्यकूप में पूर्ण सफल व प्रभावशाली नहीं हो पा रहे हैं।

सदस्यता

संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र इसके आरंभिक सदस्य थे। नए सदस्य के लिये सर्वप्रथम प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में किया जाता है।

सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों सहित बहुमत से सदस्य बनाने की सिफारिश महासभा को की जाती है। जब महासभा अपने दो-तिहाई बहुमत से सुरक्षा परिषद की सिफारिश स्वीकार कर लेती है तब कोई राष्ट्र सदस्य बन जाता है।

सदस्य बनने के लिये किसी राष्ट्र का शांतिप्रिय होना, चार्टर में उल्लेखित उद्देश्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करना तथा उन्हें पूरा करने के लिये समर्थ होना आवश्यक है। सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से कोई भी नए सदस्य को अपनी वीटो (निषेधाधिकार) से संघ में प्रविष्ट होने से रोक सकता है।

इसके सभी सदस्यों के अधिकार समान समझे जाते हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे चार्टर के अनुसार अपने दायित्वों और कर्त्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी से करेंगे। यद्यपि इसका सदस्य न बनने वाले राष्ट्रों पर चार्टर के दायित्व लागू नहीं होते, फिर भी यदि वे शांति भंग करते हैं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ उनके विरुद्ध भी कार्यवाही कर सकता है।

गैर-सदस्यों को भी अपने अन्तर्राष्ट्रीय विवाद सुरक्षा परिषद के सामने ले जाने का अधिकार होता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क में है, जो 1952 में बनकर पूरा हुआ था। अक्टूबर, सन् 1952 में वहाँ सर्वप्रथम महासभा की बैठक हुई थी। इस भवन में 29 मंजिलें हैं और लभगभग 3,500 अधिकारी इसमें कार्य करते हैं।

इस कार्यालय के बनने के पूरा्व इसका अस्थायी कार्यालय लाग द्वीप के लेक सक्सेस में था। अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, रूसी तथा स्पेनिश भाषाएँ संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्वीकृत भाषाएँ हैं, किन्तु अधिकांश कार्य अंग्रेजी तथा फ्रेंच भाषा में ही होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग

संयुक्त राष्ट्र संघ में मुख्य रूप से छः अंग संगठित किए गए हैं, जो क्रमशः निम्नलिखित हैं

  1. महासभा
  2. सुरक्षा परिषद
  3. आर्थिक व सामाजिक परिषद
  4. संरक्षण परिषद
  5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय
  6. सचिवालय।
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : संयुक्त राष्ट्रसंघ

Related Articles

error: Content is protected !!