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राष्ट्र संघ की स्थापना

राष्ट्र संघ की स्थापना

राष्ट्रसंघ की स्थापना

भूमिका

राष्ट्रसंघ की स्थापना पेरिस शांति सम्मेलन का एक महत्त्वपूर्ण रचनात्मक कार्य था। इसे एक अच्छे विश्व संगठन की प्रगति की दिशा में एक सफल कदम कहा जा सकता है। यह पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन था जिसके पास वैधानिक अस्तित्व था। इसकी स्थापना को विश्व इतिहास का एक क्रांतिकारी मोङ बिन्दु कहा जा सकता है।

राज्यों के मध्य, राजनीतिक संबंधों के क्षेत्र में, मानव कल्याण के लिये और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की प्रणाली को विकसित करने के लिये अब तक किए गए प्रयासों में सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी प्रयास था।

यह ठीक है कि प्राचीन काल से लेकर महायुद्ध के पूर्व तक अनेक विचारकों तथा राजनीतिज्ञों ने अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को उन्नत करने का प्रयास किया था, परंतु अन्तर्राष्ट्रीयतावाद को विकसित करने की दृष्टि से एक विश्वव्यापी संगठन के निर्माण की दिशा में किसी प्रकार का सक्रिय प्रयास नहीं किया गया था।

अवधारणा

प्रथम महायुद्ध ने अनेक देशों के असंख्य राजनीतिज्ञों एवं विचारों को विक्षुब्ध कर दिया था और संपूर्ण विश्व, युद्ध की विभीषिका से उत्पन्न परिणामों की पीङा से कराह रहा था।

युद्धोपरांत मानव समाज सोचने लगा कि क्या धुरी राष्ट्रों के विरुद्ध सामूहिक सहयोग से कार्य करने वाली शक्तियों का विश्व शांति की स्थापना के लिये उपयोग नहीं किया जा सकता? प्रत्येक देश में इन विचारों की अभिव्यक्ति हुई और वह व्यर्थ नहीं रही। वर्साय की संधि में समाविष्ट, राष्ट्रसंघ का प्रतिश्रव इसी अभिव्यक्ति का द्योतक था।

विश्वयुद्ध के सूत्रपात के तुरंत बाद ही इंग्लैण्ड और अमेरिका में विश्व संगठन की संभावना के संबंध में, विश्व शांति की स्थापना के लिये, आशावादी और शांतिवादी आंदोलन की झलक देखने में आने लगी थी।

युद्धकाल में इस विचारधारा को और बल मिला। अमेरिका में भूतपूर्व राष्ट्रपति टैफ्ट के नेतृत्व में “शांति स्थापित करने वाले संघ” की स्थापना की गई।

संघ के लिये चार-सूत्री कार्यक्रम के सामने रखना, संघ के निर्णय का उल्लंघन करने वाले राष्ट्र के विरुद्ध सैनिक तथा आर्थिक कार्यवाही करना और विश्वशांति की स्थापना के लिये सदस्यों का समय-समय पर एक स्थान पर मिलते रहना, तैयार किया गया। इस योजना को लोकप्रिय समर्थन मिला।

संयुक्त राज्य अमेरिका का तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की अन्तर्राष्ट्रीयतावाद का प्रमुख समर्थक था। 22 जनवरी, 1917 को विल्सन ने अमेरिकी सीनेट को संबोधित करते हुये, “शांति के लिये विश्वसंघ” की चर्चा की। 8 जनवरी, 1918 को युद्ध-विराम के संबंध में विल्सन ने अपने चौदह बिन्दुओं की घोषणा की, जिसमें अंतिम बिन्दु एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना से संबंधित था। इंग्लैण्ड में शांति आंदोलन का नेतृत्व गैर-सरकारी नेताओं ने किया।

फरवरी, 1915 ई. में लॉर्ड ब्राइस के नेतृत्व में कुछ वर्गों के लोगों ने “युद्ध को टालने के लिये प्रस्ताव” नामक लेख प्रकाशित करवाया और जनमत का विचार जानने के लिये इस लेख की प्रतियाँ वितरित की गयी।1917 में इसी समूह ने “भावी युद्धों को रोकने के लिये प्रस्ताव” नामक लेख प्रकासित करवाया। लॉर्ड राबर्ट सेसिल ने भी शांतिवादियों की कार्यवाहियों में गहरी रुचि ली।

1918 के आरंभ में ब्रिटेन के विदेशमंत्री बालफोर ने सर फिलीमोर की अध्यक्षता में राष्ट्रसंघ की योजना पर विचार करने के लिये एक समिति नियुक्त की। इसने भी विश्व संगठन की स्थापना के संबंध में महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए। फ्रांस में लियो बुजिओस इस दिशा में प्रचार कर रहा था।

दक्षिण अफ्रीका संघ के प्रधानमंत्री जनरल स्मट्स ने भी इन कार्यों की सराहना की और अपनी तरफ से महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए। इस प्रकार, पेरिस शांति सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रसंघ जैसी संस्था की स्थापना के विचार अपना स्थान बना चुके थे।

राष्ट्रसंघ का जन्म

राष्ट्रसंघ की स्थापना में अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। विल्सन राष्ट्रसंघ की स्थापना का दृढ संकल्प लेकर अमेरिका से रवाना हुआ था। वह संघ के प्रतिश्रव (संविधान)को शांति संधियों का प्रथम भाग बनाने का निश्चय कर चुका था।

इसके विपरीत इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि मित्र राष्ट्र पहले शांति संधियों की धाराओं को निर्धारित करना चाहते थे और इसके बाद राष्ट्रसंघ के मामले को हाथ में लेना चाहते थे। विल्सन अपने विचार पर डटा रहा और उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही राष्ट्रसंघ की योजना को प्राथमिकता प्राप्त हो सकी।

जनवरी, 1919 में पेरिस में शांति सम्मेलन शुरू हुआ। इस समय तक विभागीय और गैर-विभागीय दोनों ही क्षेत्रों से संघ के निर्माण संबंधी अनेक योजनाएँ प्रस्तुत की जा चुकी थी। मार्च, 1918 में ब्रिटिश वेदश विभाग द्वारा निर्देशित एवं लॉर्ड फिलोमोर की अध्यक्षता में नियुक्त एक कमेटी ने राष्ट्रसंघ की योजना का एक प्रारूप तैयार किया था।

इसके तीन मास बाद, विल्सन के प्रमुख सलाहकार कर्नल हाऊस ने विल्सन के आदर्शों के अनुकूल एक पृथक प्रारूप तैयार किया। जुलाई, 1918 में विल्सन ने अपने प्रथम प्रारूप को अंतिम रूप दिया। दिसंबर, 1918 में दक्षिण अफ्रीका के जनरल स्मट्स ने कौंसिल और मेंडेट-पद्धति को सम्मिलित करके एक नया प्रारूप तैयार किया।

10 जनवरी, 1919 को विल्सन ने अपना दूसरा प्रारूप तैयार किया और दस दिन बाद ही तीसरा प्रारूप तैयार किया। इसी बीच ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल ने सेसिल और स्मट्स के प्रारूपों को मिलाकर एक नया प्रारूप तैयार किया।शांति सम्मेलन में राष्ट्रपति विल्सन के अंतिम प्रारूप और ब्रिटेन द्वारा प्रस्तावित अंतिम प्रारूप को मौलिक माना गया।

परंतु चूँकि दोनों में काफी भन्नता थी, इसलिये ब्रिटिश प्रतिनिधि मंडल के कानूनी सलाहकार सेसिल हर्स्ट और अमेरिकन सलाहकार डेविड हण्टर मिलर को संशोधन का कार्य सौंपा गया। दोनों से मिलकर एक नया प्रारूप तैयार किया जिसे 3 फरवरी, 1919 को शांति सम्मेलन के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।

शांति सम्मेलन ने इस नवीन प्रारूप का अध्ययन करने के लिये 19 सदस्यों का एक आयोग नियुक्त किया और विल्सन को इस आयोग का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। आयोग ने अपना काम पूरा करके 14 फरवरी को संपूर्ण धाराओं सहित प्रारूप को शांति सम्मेलन के आगे रखा।

इस अवसर पर विल्सन ने कहा था कि “एक जीवित वस्तु पैदा हुई है।” सम्मेलन ने राष्ट्रसंघ प्रतिश्रव में कुछ संसोधनों को स्वीकार किया और 28 अप्रैल, 1919 को संशोधित प्रारूप सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। वर्साय संधि की प्रथम 26 धाराओं में राष्ट्रसंघ के प्रतिश्रव की व्याख्या है। अन्य शांति समझौतों में भी राष्ट्रसंघ के प्रतिश्रव को सम्मिलित किया गया। 10 जनवरी, 1920 ई. को राष्ट्रसंघ ने वैधानिक दृष्टि से अपने अस्तत्व को प्राप्त किया।

श्री गेथोर्न हार्डी ने राष्ट्रसंघ के प्रतिश्रव की व्याख्या करते हुये लिखा है, कि “यह संलेख उस प्रयत्न का एक प्रशंसनीय नमूना था, जो राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रीयतावाद में सामंजस्य लाने के लिये किया गया था।”

सर ए. जिमर्न के शब्दों में, “राष्ट्रसंघ हर सूरत में दो पृथक विचारधाराओं के आगमन से उत्पन्न हुआ था।”

राष्ट्रसंघ के उद्देश्य

राष्ट्रसंघ के प्रतिश्रव की प्रस्तावना में राष्ट्रसंघ के उद्देश्यों की व्याख्या भी सम्मिलित है। इसके अनुसार मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्राप्त करना था। परंतु इसकी पूर्ति तभी संभव थी, जबकि सभी राष्ट्र यह मान लें कि ये युद्ध को हमेशा के लिये तिरस्कृत कर देंगे।

उनके मध्य स्पष्ट, उचित एवं प्रतिष्ठानपूर्ण संबंध बने रहेंगे, सभी सरकारें अपने वास्तविक आचरण में अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं न्याय का पालन करेंगी और सभी संगठित राष्ट्र एक दूसरे के साथ अपने व्यवहार में संधि की शर्तों का विवेकपूर्ण पालन करेंगे।

राष्ट्रसंघ के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे

आपसी विवादों को सुलझाकर सुरक्षा की व्यवस्था करना और राज्यों की यथास्थिति को बनाए रखकर अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को कायम रखना, संसार के सभी राष्ट्रों के मध्य भौतिक एवं मानसिक सहयोग को प्रोत्साहन देना, पेरिस शांति समझौतों द्वारा सौंपे गए कर्त्तव्यों को पूरा करना।

स्थिति

राष्ट्रसंघ की स्थिति की व्याख्या करना कठिन कार्य है। असंख्य लोगों ने संघ के संबंध में ऐसा संबोधन किया है, जैसे कि वह एक अति राष्ट्रीय लोकसभा हो। परंतु वह ऐसी नहीं थी, वह कभी भी अतिराष्ट्रीय या अतिराज्य नहीं हो सकती थी, क्योंकि उसके सदस्य राष्ट्र सार्वभौम राज्य बने रहे और वे अपने अलावा किसी अन्य सत्ता के आदेश को मानने के लिये कभी तैयार नहीं थे। अतः यह एक लोकसभा नहीं हो सकती थी।

यह न तो राज्य ही था और न अतिराज्य ही। यह संधि के द्वारा निर्मित संगठित राज्यों का एक ऐसा संघ था जो विश्वव्यापी था, जिसे कानूनी व्यक्तित्व प्राप्त था और जिसके पास कुछ सम्पत्ति भी थी। परंतु इसके पास न तो अपनी भूमि थी और न कोई सेना। यह एक नम्र संगठन था।

यह अपने सदस्य राष्ट्रों के सहयोग पर आश्रित था, अर्थात् इसका जीवन पराश्रित था। फिर भी, संघ ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति जीवन को एक नया स्वरूप दिया और क्रियात्मक राजनीति को सूत्रबद्ध करने का प्रयास किया।

राष्ट्र संघ की स्थापना

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग

राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग थे – असेम्बली, कौंसिल और सचिवालय। इसके दो स्वायत्त अंग थे – अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय और अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन…अधिक जानकारी

राष्ट्रसंघ के कार्य

राष्ट्रसंघ का मुख्य कार्य विश्व शांति को बनाए रखना तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि करना था। अपने इस मूल कार्य की पूर्ति के संबंध में राष्ट्रसंघ को जो विभिन्न कार्य करने पङते थे, वे इस प्रकार थे…अधिक जानकारी

राष्ट्रसंघ की असफलता के कारण

  • राष्ट्रसंघ की कमजोरियाँ
  • राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन
  • संवैधानिक निर्बलता
  • उत्तरदायित्व का अभाव…अधिक जानकारी
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : राष्ट्रसंघ

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