अलाउद्दीन खिलजीइतिहासखिलजी वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

अलाउद्दीन खिलजी की प्रांतीय व्यवस्था कैसी थी?

अलाउद्दीन खिलजी की प्रांतीय व्यवस्था – विभिन्न प्रांतों में केंद्र से मिलती-जुलती शासन व्यवस्था थी। यहाँ पर प्रांतपति नियुक्त किए जाते थे। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन के राज्य में केंद्र तथा प्रदेशों (खालसा) के अतिरिक्त निम्नलिखित ग्यारह प्रांत थे – 1.) गुजरात, 2.) मुल्तान और सिविस्तान, 3.) दिपालपुर, 4.) समान और सुनाम, 5.) धार और उज्जैन, 6.) झाइन, 7.) चित्तौङ, 8.) दिपालपुर, 9.) बदायूँ, कोल और कर्क (संभवतः कटेहर), 10.) अवध 11.) कङा।

अलाउद्दीन खिलजी की प्रशासनिक व्यवस्था

अलाउद्दीन खिलजी की प्रांतीय व्यवस्था

प्रांतपति एक प्रकार का लघु सुल्तान था। वह प्रांत की मुख्य कार्यपालिका तथा न्यायपालिका का प्रधान होता था। उसके पास स्वयं की प्रांतीय सेना होती थी और एक आवश्यकता पङने पर वह निश्चित संख्या में सैनिक सुल्तान को भेजता था। वह प्रांतीय दरबार लगाता था, न्याय करता था और प्रशासन सँभालता था। वह संपूर्ण प्रांत का लगान एकत्र करता था और अपनी नियत राशि काटकर शेष धन शाही कोष में भेजता था। मध्यकालीन भारतीय इतिहासकार प्रांतपति के लिये बली या मुक्ता शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो एक विलायत या अक्ता का अधिकारी होता था।

सामान्यतः मुक्ता अपने प्रांत में रहता था। कुछ मुक्ता शाही दरबार में भी रहते थे और अपने अधिकारियों के जरिए प्रांत का प्रशासन करते थे। जब तक वह निष्ठावान रहता था, उसके प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था। परंतु यदि वह उद्दंड होता था तो उसके साथ कठोरता का व्यवहार किया जाता था। वह सुल्तान द्वारा नियुक्त, स्थानांतरित और पदच्युत किया जा सकता था। यह प्रांतीय राजस्व के लिये दीवान-ए-वजारत के प्रति उत्तरदायी होता था, जहाँ उनका नियमित रूप से लेखा परीक्षण होता था। उसकी सेना की संख्या भी केंद्रीय सरकार द्वारा तय की जाती थी और वह उसमें परिवर्तन नहीं कर सकता था। उसकी सेना की संख्या भी केंद्रीय सरकार द्वारा तय की जाती थी और वह उसमें परिवर्तन नहीं कर सकता था। बरीद सुल्तान को मुक्तियों के कार्यों की पूरी सूचना देते थे। नियंत्रण संबंधी इन प्रतिबंधों को छोङकर प्रांतपति पर्याप्त रूप से स्वतंत्र होते थे। गाजी मलिक, मलिक काफूर और अलप खाँ जैसे अनुभवी सेनानायकों ने अलाउद्दीन के शासन की लंबे समय तक निष्ठापूर्वक सेवा की थी जिसे अलाउद्दीन की शक्ति व सजगता का प्रमाण कहा जा सकता है।

अलाउद्दीन के समय अनेक अधीनस्थ शासक थे जैसे देवगिरि का रामदेव और दक्षिण भारत के अन्य राजा। वे प्रांतपतियों की उपेक्षा अधिक स्वतंत्र होते थे। जब तक वे वार्षिक कर, जिसमें लगान का एक अंश सम्मिलित रहता था, नियमित रूप से देते रहते थे तब तक वे सुल्तान के कृपापात्र रहते थे। अपने सिक्कों पर उन्हें सुल्तान का नाम अंकित करना पङता था और उसके आदेशों का पालन करना पङता था। परंतु अपने राज्य का लगान निश्चित करने, उसे एकत्र करने, न्याय करने व धार्मिक रिवाजों का पालन करने में वे स्वतंत्र थे।

विशाल प्रांतों के अतिरिक्त खालसा या रक्षित प्रदेशों प्रदेश होते थे जिनका प्रशासन केंद्र द्वारा किया जाता था। इनमें नगर और जिले होते थे। इन पर मुक्ताओं का शासन नहीं होता था बल्कि अमीर और शहना इनका शासन सँभालते थे। दिल्ली के आसपास के प्रदेश इस पद्धति के अंतर्गत थे।

प्रशासनिक उपलब्धियों में अलाउद्दीन का स्थान उतना ही उच्च है जितना सैनिक उपलब्धियों में। उसने अनेक आंतरिक व बाह्य संकटों के होते हुए भी कुशल शासन प्रणाली की स्थापना की थी।

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