इतिहासमध्यकालीन भारत

अलाउद्दीन हसन बहमनशाह कौन था | Alauddeen hasan bahamanashaah | Alauddin Hasan Bahmanshah

बहमनी साम्राज्य – मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण करते हुए दक्षिण के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया था। उसने दक्षिण की विजय ही नहीं की, वरन वहाँ एख सुदृढ प्रशासन करने का भी प्रयास किया। उसके द्वारा संस्थापित प्रशासनिक अंगों में अमीरान-ए-सदह (जो अनुमानतः सौ ग्रामों के समूह पर नियुक्त अधिकारी थे) बहुत महत्त्वपूर्ण थे। ये अधिकारी सादी भी कहलाते थे और इसकी स्थिति सल्तनत के अमीरों की ही भाँति थी। ये सादी न केवल राजस्व वसूल करते थे, वरन स्थानीय सैनिक टुकङियों के भी प्रधान थे। ऐसी स्थिति के कारण जनता उन्हें ही शासन का वास्तविक कर्णधार मानती थी। इनके हाथों में सेना और राजस्व दोनों के केन्द्रीभूत होने के कारण ये बहुत अधिक शाक्तिशाली थे।

जब तुगलक शासन के विरुद्ध सर्वत्र विद्रोह प्रारंभ हुए तो इन सादी अमीरों ने भी इसका लाभ उठाया। गुजरात के सादी अमीरों के विद्रोह के साथ विद्रोह की चिनगारी का प्रारंभ हुआ। इस विद्रोह का दमन करने के लिये सुल्तान स्वयं भङौंच आया और उसने दक्षिण के अपने वाइसराय अमीर-उल-मुल्क के दौलताबाद के अमीरान-ए-सदा के प्रतिनिधियों को भङौंच भेजने का आदेश दिया। उन्होंने भङौंच जाने के स्थान पर रात्रि में गुप्त सम्मेलन किया और तुगलक शासन के विद्रोह सर्वत्र विद्रोह व अशांति की स्थिति का लाभ उठाने का निश्चय किया। तीन दिन के इस विद्रोह में दौलताबाद में नियुक्त तुगलक वाइसराय को पूर्णतः पराजित कर दिया गया और इस्माइल (जो दौलताबाद का सबसे वरिष्ठ अमीर था) को इन अमीरों ने अपना नेता चुना। इस्माइल ने अमीरों के इस संघ के प्रमुख व्यक्ति हसन को अमीर-उल-उमरा और जफर खाँ की उपाधियों से विभूषित किया। परंतु पूर्वोक्त दौलताबाद के विद्रोह की सफलता ही पर्याप्त नहीं थी, क्योंकि गुलबर्गा, कल्याणी और सागर अभी भी तुगलक सेनाओं के नियंत्रण में थे। अतः जफर खाँ ने सागर और गुलबर्गा पर अधिकार कर लिया। इस स्थिति से आशंकित होकर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक इस विद्रोह का दमन करने के लिये दौलताबाद आया। इस पर अमीरान-ए-सादह ने अपनी सारी सेना दौलताबाद के किले में बंद कर ली। मुहम्मद बिन तुगलक ने किले का घेरा डाला, परंतु गुजरात के विद्रोहों के कारण उसे वापस लौटना पङा। इस समय जफर खाँ (जो दौलताबाद के बाहर था) शीघ्र ही दौलताबाद की ओर बढा और दौलताबाद के किले में घिरे इस्माइल शाह को मुक्त किया। अपनी शक्ति एवं सफलताओं के कारण जफर खां इतना लोकप्रिय हो गया कि इस्माइल शाह ने उसके पक्ष में सत्ता समर्पित कर दी। सेना तथा दौलताबाद में एकत्रित लोगों के समूह ने इसका स्वागत किया और 1346 ई. में जफर खाँ ने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि धारण की और वह नवीन बहमनी वंश का संस्थापक बना।

अलाउद्दीन हसन बहमनशाह (1347-1358 ई.) –

बहमनी साम्राज्य के वास्तविक संस्थापक अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उत्पत्ति के संबंध में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार यह ईरान से संबंधित था। उसने तुगलक सेना को तो आसानी से पराजित कर दिया किंतु वह समस्त भूतपूर्व तुगलक प्रदेशों को अपने एकछत्र शासन के अंतर्गत लाना चाहता था। उसने गंधार, कोट्टगिरि, कल्याणी और बीदर को अपने अधिकार क्षेत्र में लाने के लिये सैनिक अभियान भेजे, जिनमें सर्वत्र सफलता मिली। वारंगल के कपाय नायक ने भी उसकी ओर मित्रता का हाथ बढाया। इसके बाद उसने गुलबर्गा में पोचा रेड्डी (जो अब तक तुगलकों का समर्थन कर रहा था) का दमन किया परंतु सागर में मुहम्मद बिन आलम के विद्रोह का सामना करने के लिये उसे स्वयं जाना पङा। अपने शासन के अंतिम दिनों में उसने दाबुल पर अधिकार किया, जो पश्चिमी समुद्र तट पर बहमनी साम्राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था। अलाउद्दीन हसन बहमनशाह एक बहुत उदार शासक था। दया, करुणा और न्यायप्रियता उसके शासन के मूलमंत्र थे। उसने हिंदुओं से जजिया न लेने का आदेश दिया और इस प्रकार बहमनी शासन की लोकप्रियता की नींव डाली।

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