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उदारवाद का प्रतीक लार्ड रिपन(Lord Ripon)

लार्ड लिटन (Lord Lytton)की प्रतिक्रियावादी नीतियों की इंग्लैण्ड में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। अतः 1880 ई. के चुनावों में इंग्लैण्ड में डिजरैली के अनुदार दल की भारी पराजय हुई तथा उदार दल की सरकार बनी और ग्लेडस्टोन प्रधानमंत्री बना।

ग्लेडस्टोन के लिए यह आवश्यक हो गया था कि भारत में अब ऐसे व्यक्ति को गवर्नर-जनरल के पद पर नियुक्त किया जाय जो उदार व शांतिप्रिय हो, भारत के जनमत की सहानुभूति प्राप्त कर सके तथा भारत में ब्रिटिश प्रशासन के प्रति लोगों में विश्वास पैदा कर सके।

अतः ग्लेडस्टोन ने लार्ड रिपन(1880-1884) को, जो भारत सचिव के पद पर कार्य कर चुका था, भारत का गवर्नर जनरल(Governor General) नियुक्त किया। रिपन ने 8 जून, 1880 को अपने पद का कार्यभार संभाल लिया। भारत में नियु्क्त हुए गवर्नर-जनरलों में रिपन जितना लोकप्रिय हुआ, उससे अधिक न तो इससे पूर्व और न बाद में किसी गवर्नर-जनरल ने लोकप्रियता प्राप्त की।

रिपन की नियुक्ति से अंग्रेजों की नीति में परिवर्तन अनिवार्य दिखाई दे रहा था। रिपन ने न केवल भारतीय नरेशो, जमींदारों, व ताल्लुकेदारों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न किया बल्कि नये शिक्षित वर्ग को भी ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठावान बनाने का प्रयत्न किया।

रिपन इस बात को जानता था कि भारत में नया शिक्षित वर्ग शीघ्र ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला है और इसलिए साम्राज्य की सुरक्षा के लिए इस वर्ग की अब उपेक्षा नहीं की जा सकती। रिपन की दृढ मान्यता थी कि इस वर्ग को प्रशासन से संबंद्ध करके ही साम्राज्य को दृढ किया जा सकता है। नया शिक्षित वर्ग बी अंग्रेजों से सहयोग करने को तैयार था, क्योंकि यह वर्ग अंग्रेजों की न्यायप्रियता एवं निष्पक्षता में विश्वास करता था। रिपन ने इस वर्ग को साम्राज्य की ओर आकर्षित किया।

रिपन द्वारा किये गये कार्य

स्थानीय स्वशासन की स्थापना(Establishment of local self-government)

1882 ई. में रिपन ने स्थानीय स्वशासन की स्थापना का प्रस्ताव रखा। जिसमें इस बात पर बल दिया गया कि स्थानीय लोगों में कई योग्य व्यक्ति प्रशासन के कार्यों से दूर हैं, अतः उन्हें प्रशासन में लाने हेतु स्थानीय स्वशासन की स्थापना आवश्यक है।

वित्तीय विकेन्द्रीकरण(Financial decentralization)

लार्ड मेयो ने वित्तीय विकेन्द्रीकरण की नीति को जन्म दिया था। लार्ड रिपन ने इस नीति का विकास कर उसे स्थायित्व प्रदान किया। रिपन ने स्थानीय संस्थाओं को आर्थिक क्षेत्र में स्वावलंबी बनाने का प्रयत्न किया। अपने वित्त सचिव मेजर वेरिंग की सहायता से रिपन ने 1882 में एक प्रस्ताव द्वारा आय के स्रोतों को तीन भागों में विभाजित तिया-

  1. इम्पीरियल- इसमें नमक,आबकारी,तट कर और अफीम कर रखे गये।
  2. प्रांतीय- इसमें शिक्षा व जन-कल्याण संबंधी कार्य रखे गये।
  3. विभक्त पद- इसमें भू-लगान,वन तथा स्टांप आदि रखे गये।

रिपन ने आयकर में तथा नमक-कर में भी कमी कर दी। रिपन के आने से पहले लार्ड मेयो ने कृषि विभाग की स्थापना की थी, किन्तु लार्ड रिपन ने उसे समाप्त कर दिया था। रिपन ने उसके महत्त्व को समझते हुए कृषि विभाग की पुनः स्थापना कर दी।

किसानों की जमींदारों से रक्षा करने के उद्देश्य से उसने बंगाल लगान अधिनियम तैयार किया , किन्तु गृह सरकार जमींदारों के हितों की समर्थक थी, अतः यह अधिनियम अपने मूल रूप में पारित न हो सका।

शिक्षा संबंधी सुधार(Education reform)

रिपन ने शिक्षा में सुधार की आवश्यकता अनुभव कर एक शिक्षा आयोग गठित करने का निर्णय लिया तथा सर विलियम हंटर को शिक्षा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। इस आयोग में अध्यक्ष सहित 21 सदस्य थे, जिनमें 8 भारतीय थे। इस आयोग को 1857 के वुड्स डिस्पेच के कार्यों का मूल्यांकन कर अपने सुझाव देने को कहा गया । हंटर आयोग ने 1883 में अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट की समाप्ति(Termination of the Varnacular Press Act)

प्रतिक्रियावादी कार्यों की समाप्ति का प्रयत्न

लार्ड लिटन ने शस्त्र अधिनियम पारित किया था, जो सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी था। रिपन चाहता था कि किसानों व निर्धन व्यक्तियों को जिन्हं जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करनी पङती थी, उन्हें बिना लाइसेंस के और लाइसेंस प्राप्त कर सभी अधिकारियों को शस्त्र रखने का अधिकार दे दिया था। रिपन ने 1882 में इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित कर भारत सचिव की स्वीकृति के लिए भेजा।

इल्बर्ट बिल विवाद(Albert Bill Controversy)

रिपन उदारवाद का प्रतीक था। अतः 1882 ई. में उसने भारत सचिव के निर्देशानुसार रुङकी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढे हुए भारतीयों को ही सरकारी सेवा में लेने की व्यवस्था की। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्याय़ाधीशों को समान वेतन देना निश्चित किया तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय(Calcutta High Court) के मुख्य न्यायाधीश गार्थ के अवकाश पर जाने पर रमेशचंद्र मित्तर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया। रिपन के इन कार्यों से भारत में रहने वाले अंग्रेजों में असंतोष उत्पन्न होने लगा। इस असंतोष का विस्फोट इल्बर्ट बिल ने कर दिया।

आर्थिक सुधार(Economic recovery)

आर्थिक सुधारों में रिपन ने ब्रिटिश हितों का समर्थन किया। उसने इंग्लैण्ड में बने हुए कपङे पर भारत में लगे आयात -कर को समाप्त कर दिया तथा भारत को मुक्त व्यापार का क्षेत्र बना दिया। चूँकि इसी समय रिपन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त करके भारतीयों की सद्भावना प्राप्त कर ली थी, अतः आयात-कर समाप्त का भारत में कोई विशेष विरोध नहीं हुआ।

वस्तुतः भारत में ऐसे लोग थे ही नहीं, जो यह समझ सकें कि इस आयात-कर को समाप्त कर देने से भारत के आर्थिक हितों को मेनटेस्टर के हितों के लिए त्याग दिया गया है। इस बात को स्वयं रिपन ने भी स्वीकार किया था।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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