इतिहासराजस्थान का इतिहास

करौली में जन आंदोलन

करौली में जन आंदोलन – राजनैतिक गतिविधियों की दृष्टि से करौली राज्य काफी पिछङा हुआ था। करौली में राजनीतिक जागृति की शुरूआत 1938 ई. में प्रजा मंडल की स्थापना से हुई। प्रजा मंडल की स्थापना स्थानीय शिकायतों को दूर करने तथा राज्य में आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से की गयी। प्रजा मंडल के प्रमुख नेता थे त्रिलोकचंद माथुर, चिरंजीलाल शर्मा, मानसिंह आदि। अन्य रियासतों की भाँति करौली के महाराजा ने भी प्रजा मंडल की गतिविधियों को कुचलने का प्रयास किया। आरंभ में प्रजा मंडल की गतिविधियाँ राज्य के विरुद्ध नहीं थी और न ही उत्तरदायी शासन की माँग प्रस्तुत की गयी थी, फिर भी दमन नीति अपनायी गयी और उन सभी लोगों को जो प्रजा मंडल से संबंधित थे, उन्हें हर तरह से परेशान किया जाता रहा। अप्रैल, 1939 ई. में प्रजा मंडल ने माँग की कि एक प्रशासनिक जाँच समिति नियुक्त की जाय, जिसमें तीन सदस्य जनता के प्रतिनिधि हों। प्रजा मंडल स्थानीय स्वशासन की स्थापना और बेगार समाप्त करवाना चाहता था। लेकिन राज्य सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। नवम्बर, 1946 ई. में करौली में पङौसी राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें पहली बार करौली में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की माँग की गयी। जुलाई, 1947 ई. में करौली के महाराजा ने संवैधानिक परिवर्तनों के बारे में सुझाव देने के लिये एक 11 सदस्यों की समिति नियुक्त की। प्रजा मंडल ने इस समिति में कुछ जनप्रतिनिधियों को भी सम्मिलित करने का सुझाव दिया। लेकिन महाराजा ने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया। कुछ समय बाद मत्स्य संघ का निर्माण हो गया और समस्या स्वतः ही हल हो गयी।
धौलपुर में जन आंदोलन

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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