इतिहासतुगलक वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

गयासुद्दीन तुगलक के प्रशासनिक एवं आर्थिक सुधार

गयासुद्दीन तुगलक – गयासुद्दीन ने सारी स्थिति का जायजा लेकर कुछ प्रशासनिक तथा आर्थिक सुधार किए। बरनी के अनुसार सुल्तान ने वह कार्य कुछ दिनों में कर दिखाया जो दूसरे सुल्तानों ने वर्षों में किया था। इन सुधारों से राजनीतिक प्रतिष्ठा, शांति तथा समृद्धि की भावना फिर जाग उठी। लोगों को ऐसा लगने लगा जैसे अलाउद्दीन खिलजी वापस आ गया हो। सुल्तान गयासुद्दीन ने उन सबसे उस धन राशि को वापस खजाने में जमा कराने के लिये कहा जो खुसरो खाँ ने मनमाने रूप से उन्हें दी थी। यहाँ तक कि दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को भी पैसा लौटाने के लिये कहा गया जो उन्हें धार्मिक अनुदान के रूप में खुसरो खाँ के समय में दिया गया था। उस घटना के कारण सूफी संत तथा सुल्तान में काफी मन मुटाव चलता रहा। कुछ समय बाद गयासुद्दीन को बंगाल में विद्रोह को दबाने के लिए लखनौती जाना पङा। वापसी पर यह प्रश्न दुबारा उठ सकता था किंतु इससे पहले ही सुल्तान के लिए दिल्ली दूर हो गयी थी। गयासुद्दीन अलाउद्दीन खिलजी द्वारा लागू की गयी भूमि लगान तथा मंडी संबंधी नीति के पक्ष में नहीं था। इस दृष्टि से वह बलबन के सिद्धांतों के करीब था। सुल्तान की आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती और नर्मी के बीच संतुलन (रस्म-ए-मियाना) स्थापित करना था। मध्यवर्ती जमींदारों, विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए गए तथा उनको वही स्थिति प्रदान की गयी जो उन्हें बलबन के समय प्राप्त थी। उनको लगान वसूली के लिए उचित जमींदाराना शुल्क दिया गया तथा उन्हें निश्चित लगान से अधिक उपज के लिये प्रोत्साहन दें ताकि अधिक लगान मिल सके और सरकार की आर्थिक स्थिति भी सुधर सके। लगान निश्चित करने में बटाई का प्रयोग फिर से प्रारंभ कर दिया गया। किसानों का ध्यान रखते हुए लगान में कटौती की गयी। बटाई द्वारा किसान को उपज पर लगान देना पङता था इससे फसल के बरबाद होने पर अथवा अकाल या बाढ आने पर उसे अधिक हानि नहीं उठानी पङती थी। इस समय में लगान की कितनी दर निश्चित की गयी थी इस पर पर्याप्त विवाद जारी है। बरनी के अनुसार सुल्तान ने आज्ञा दी थी कि दीवानी अफसर उपज का 1/10 या 1/11 हिस्सा लगान के लिये निश्चित करे। परंपरागत दर 1/5 चल रही थी जो अलाउद्दीन के समय में 1/2 हो गयी थी तथा जिसे मुबारकशाह ने कम करके शायद फिर 1/5 कर दिया था। यह विश्वास करना कठिन है कि गयासुद्दीन 1/10 या 1/11 दर से कैसे आर्थिक संकट दूर कर सकता था। बरनी एक और स्थान पर बताता है कि 1/10 या 1/11 दर से कैसे आर्थिक संकट दूर कर सकता था। बरनी एक और स्थान पर बताता है कि 1/10 या 1/11 दर चालू लगान पर बढोतरी के रूप में थी जो उचित प्रतीत होती है। ऐसा भी हो सकता है कि कृषि संबंधी सुधारों में जहाँ-जहाँ उपज बढती हो उसके अनरूप लगान में थोङी-थोङी बढोतरी कर दी जाती हो ताकि सरकार की आय बढ सके तथा इसके साथ-साथ किसान पर भी अधिक बोझ न पङे। सुल्तान ने एक नियमावली भी जारी की जिसके अनुसार मुक्ताओं अथवा गवर्नरों को लगान वसूली में किसानों पर अत्याचार नहीं करने देना चाहिए। परिणाम यह हुआ कि इस संतुलित नीति से अक्तादारों, जमींदारों तथा किसानों में समन्वय स्थापित होता गया।

सुल्तान ने अमीरों द्वारा कृषि के लगान की इजारेदारी की भर्त्सना की। प्रत्येक अक्तादार अमीर (जिसको सेना रखने के बदले में अक्ते के लगान से वेतन मिलता था) अपने खर्चे निकालकर फालतू लगान के 1/10 से 1/15 तक के अंतर को माफ कर दिया किंतु अधिक अंतर होने पर उन्हें सजा मिलने लगी। अमीरों को पद देने में खानदान के साथ-साथ योग्यता को भी आधार बनाया गया इसी वर्ग से गवर्नरों को चुना जाने लगा ताकि इजारेदारी को समाप्त किया जा सके। उसके हिसाब-किताब पर दीवान-ए-वजारत का नियंत्रण रखा गया। किंतु यहाँ भी बीच वाली नीति अपनाई गयी जिसके अनुसार इजारेदारी के लालच में प्रांतीय गवर्नर जमींदारों तथा किसानों से अधिक न माँग सकें और दीवानी महकमा भी गवर्नरों के प्रति मनमानी न कर सके।

सुल्तान गयासुद्दीन ने सैनिकों को आर्थिक दृष्टि से संतुष्ट रखने के लिये अलाउद्दीन खिलजी की तरह कोई मंडी संबंधी सुधार नहीं किया। बल्कि उनके हितों की रक्षा के लिये अक्तादारों को निर्देश दिए कि वे किसी सैनिक के उचित वेतन तथा भत्ते का दुरुपयोग न करें। बरनी लिखता है कि सुल्तान सैनिकों को अपने बेटों की तरह प्यार करता था। घोङों की सरकारी खर्चे पर देखभाल की गयी। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चलाई गयी दाग तथा चेहरा प्रथा को प्रभावशाली ढंग तथा उत्साह से लागू किया गया। दो वर्षों के भीतर सेना इस प्रकार सुसंगठित हो गयी कि सुल्तान ने दक्षिण में सैनिक अभियान भेजने की योजना बना ली।

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