इतिहासमध्यकालीन भारतविजयनगर साम्राज्य

ताजुद्दीन फिरोज शाह कौन था

ताजुद्दीन फिरोज शाह – यह बहमनी का शासक था। इसने 1397 से 1422 ई. तक शासन किया था। सुल्तान फिरोज के शासनकाल में क्रमशः अफाकियों का प्रभाव पहले से अधिक बढने लगा और नए सुल्तान ने इस नवागंतुक विदेशियों के आगमन को प्रश्रय देना प्रारंभ किया। इससे दक्खिनियों और अफाकियों के मध्य विद्वेष पहले से अधिक बढ गया। इस दलगत राजनीति को संतुलित करने के लिये सुल्तान फिरोज ने हिन्दुओं की ओर विशेष झुकाव प्रदर्शित किया।

सुल्तान फिरोज बहमनी वंश के सर्वाधिक विद्वान सुल्तानों में से एक था। वह विद्या एवं ज्ञान की विभिन्न शाखाओं तथा अनेक भाषाओं में पारंगत था। उसने विदेशों से अनेक प्रसिद्ध विद्वानों को दक्षिण में आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। स्थापत्य के क्षेत्र में भी उसने हिंदू-मुस्लिम मिश्रित स्थापत्य को प्रश्रय दिया। उसने अकबर के फतेहपुर सीकरी की भाँति भीमा नदी के किनारे फिरोजाबाद नगर की नींव डाली। इस नवीन नगर के भवन की तकनीक, योजना और मिश्रित स्थापत्य दोनों दृष्टियों से विलक्षण है।

परंतु इन सांस्कृतिक उपलब्धियों के बीच फिरोज को अनेक विद्रोहों एवं विजयनगर के साथ लंबे संघर्ष का सामना करना पङा। उत्तर में सागर के सामंत शासक ने बहमनी सेनाओं को अपने किले से निष्कासित कर दिया, जब कि उत्तर में ही खेर्ला के राजा नरसिंह ने मांडू के सुल्तान के साथ मिलकर माहूर तक बहमनी साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। परंतु विजयनगर के साथ लंबे संघर्ष से मुक्त होने के बाद उसने खेर्ला का दमन किया। परंतु इसी बीच बहमनियों द्वारा संरक्षित वेलम शासक के विरुद्ध विजयनगर वेम शासक को भङका रहा था। फिरोज ने तेलंगाना के इस संघर्ष में हस्तक्षेप किया, परंतु इस संघर्ष के संबंध में कुछ कहना कठिन है। फिरोज के शासन के अंतिम दिनों में वेम शासक पेड कोगती वेम भी बहमनी सुल्तान से जा मिला और इन दोनों की संयुक्त सेनाओं ने उङीसा तक आक्रमण किया। फिरोज के अंतिम वर्षों में उसे भयंकर आंतरिक अशांति और विजयनगर के सैनिक दबाव दोनों का सामना करना पङा। आंतरिक षङयंत्र के परिणामस्वरूप सुल्तान अपने द्वारा मनोनीत अपने पुत्र को सिंहासनारूढ न करा सका और अफाकी दल के नेता खलाफ हसन ने सुल्तान के भाई अहमद को समर्थन देना प्रारंभ कर दिया। अंततः विवशतावश फिरोज ने अहमद को अपना उत्तराधिकारी स्वीकार किया। फिरोज गुलबर्गा युग के सुल्तानों में अंतिम सुल्तान था, क्योंकि उसके बाद गुलबर्गा के स्थान पर बीदर बहमनी साम्राज्य की नवीन राजधानी बन गयी।

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