इतिहासप्राचीन भारतमौर्योत्तर काल

मौर्योत्तर काल (184 ई.पू.-319ई.)महत्त्वपूर्ण तथ्य

मौर्य साम्राज्य की लड़खड़ाती हुई दीवार

मौर्य साम्राज्य की लड़खड़ाती हुई दीवार ई. पू. 187 में ढह गई और मौर्य साम्राज्य के अंत के साथ ही भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता कुछ समय के लिए खंडित हो गई।

अब हिन्दुकुश से लेकर कर्नाटक एवं बंगाल तक एक ही राजवंश का आधिपत्य नहीं रहा। देश के उत्तर पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में अपने अपने राज्य स्थापित कर लिए। दक्षिण में स्थानीय शासक वंश स्वतंत्र हो उठे। कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश का सिंधु घाटी एवं गोदावरी क्षेत्र से सम्बन्ध टूट गया और मगध के वैभव का स्थान साकल, विदिशा, प्रतिष्ठान, आदि कई नगरों ने ले लिया।

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शुंग वंश (184ई.पू.-75ई.पू.)

अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या करके, उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई.पू.में शुंग राजवंश की स्थापना की थी।

शुंगों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों के अलग-2 मत हैं। शुंग वंश के राजा अपने नाम के अंत में मित्र शब्द का प्रयोग करते थे। अतः कुछ विद्वान शुंगों को मिथ्र (सूर्य) का उपासक मानते हैं।

पुष्यमित्र शुंग ने 184 ई.पू. से 151 ई.पू. तक राज्य किया।

मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप ह्रास को प्राप्त हुए हिन्दू धर्म का पुष्यमित्र शुंग ने पुनरुत्थान किया। भरहुत स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया था।

शुंग काल में ही भागवत धर्म का उदय और विकास हुआ तथा वासुदेव विष्णु की उपासना प्रारंभ हुई। शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या उसके मंत्री वासुदेव ने 75 ई.पू. में करके कण्व राजवंश की नींव डाली।

कण्व वंश (75 ई.पू.-30 ई.पू.)

वासुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। कण्ववंशी शासक शुंगों के उत्तराधिकारी थे। वासुदेव ब्राह्मण था, जो अंतिम शुंग शासक देवभूति का मंत्री था। वासुदेव द्वारा प्रवर्तित राजवंश के कुल चार शासक हुए – वासुदेव – इसने नौ वर्ष तक शासन किया, उसके बाद उसका पुत्र भूमिमित्र, उसके बाद उसका पुत्र नारायण और अंत में सुशर्मा, जिसे सातवाहन वंश के प्रवर्तक सिमुक ने पदच्युत कर दिया था।

इंडो-ग्रीक(हिन्द-यवन) शासकों का इतिहास

उत्तर-पश्चिम से पश्चिमी विदेशियों के आक्रमण मौर्योत्तर काल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी।इनमें सबसे पहले आक्रमणकारी बैक्ट्रिया के ग्रीक (यूनानी) थे, जिन्हें यवन के नाम से जाना जाता है।

मौर्योत्तर काल में भारतीय सीमा में सर्वप्रथम प्रवेश कारने का श्रेय डेमेट्रियस प्रथम को है, उसने 183 ई.पू. में पंजाब के कुछ क्षेत्रों को विजित कर साकल को अपनी राजधानी बनाया था।

डेमेट्रियस प्रथम के बाद यूक्रेटाइड्रस ने भारत के कुछ क्षेत्रों को विजित कर तक्षशिला को अपनी राजाधानी बनाया था।

मीनांडर (160 ई.पू.-120 ई.पू.) सर्वाधिक प्रसिद्ध यवन शासक था, जिसने भारत में यूनानी सत्ता को स्थापित किया था। हिन्द-यूनानियों ने सोने के सिक्के चलाए थे।

पार्थिया तथा बैक्ट्रिया सेल्युकस के साम्राज्य के दो प्रांत थे। सेल्युकस के उत्तराधिकारी अंतियोकस प्रथम (281-261 ईसा.पूर्व) के काल तक ये दोनों प्रदेश सेल्युकसी साम्राज्य के अंग बने रहे। परंतु अंतियोकस द्वितीय (261-246ईसा पूर्व) के शासन काल में 250 ईसा पूर्व के लगभग पार्थिया तथा बैक्ट्रिया के प्रदेश स्वतंत्र हो गये…अधिक जानकारी

शक

भारतीय स्त्रोत शकों को सीथियन नाम देते हैं। यवन शासकों के बाद शक भारत में आये।चीनी लेखक शकों को सई लिखते हैं। शकों ने कंधार तथा बलूचिस्तान में होकर सिन्धु की घाटी में प्रवेश किया और उस प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इसलिए सिन्धु प्रदेश आगे चलकर शक-द्वीप के नाम से विख्यात हुआ।

शक पाँच शाखाओं में विभाजित थे – प्रथम काबुल में, द्वितीय तक्षशिला में, तृतीय मथुरा में, चतुर्थ शाखा उज्जियिनी में तथा पंचम शाखा नासिक में अपना प्रभुत्व स्थापित किये हुए थी। भारत में शक शासक क्षत्रप कहलाते थे, शक शासकों की दो शाखाएँ भारत में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी – प्रथम उत्तर क्षत्रप जो तक्षशिला व मथुरा में थे, द्वितीय पश्चिमी क्षत्रप जो नासिक एवं उज्जयिनी क्षेत्र में थे।

उज्जयिनी में कादर्मक वंश शकों का प्रतिष्ठित राजवंश था, इसका सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक श्रत्रप रुद्रदामन था। क्षत्रप रुद्रदामन ने 130 ई.पू. से 150 ई.पू. के मध्य शासन किया था। इस वंश का अंतिम शासक रुद्रसिंह तृतीय था। इसे गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने परास्त कर पश्चिमी क्षत्रपों के राज्यों को अपने साम्राज्यों में विलीन कर लिया था, इस प्रकार शकों की सत्ता का अंत हो गया।

शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था। इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि ‘सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे’, यानि ‘शक’ स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों का जाति नाम था…अधिक जानकारी

पार्थियन (पह्रलव)

पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ। पार्थियाई लोगों का मूल निवास स्थान ईरान था। भारतीय साहित्य में इन्हें पल्लव कहा गया है। पल्लव वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक गोन्दोफार्निस था। इस पल्लव शासक की राजधानी तक्षशिला थी। गोन्दोफार्निस के शासनकाल में सेण्ट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिये भारत आया था। पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक मिथेडेस प्रथम था। पल्लवों का अंत शकों ने किया था।

पल्लवों तथा शकों का इतिहास एक-दूसरे से अत्यधिक उलझा हुआ है। अंततः उसे अलग-2 करना एक कठिन कार्य है। पल्लव पार्थिया के निवासी थे।

पार्थिया, बैक्ट्रिया के पश्चिम की ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित सेल्युकसी साम्राज्य का सीमावर्ती प्रांत था।तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य बैक्ट्रिया के साथ ही पार्थिया के यवन क्षत्रप ने भी अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। परंतु शीघ्र ही पूर्व की ओर से आने वाले कुछ व्यक्तियों ने यवन शासक की हत्या कर दी तथा उन्होंने जिस साम्राज्य की नींव डाली वह पार्थियन नाम से विख्यात हुआ…अधिक जानकारी

कुषाण वंश

पल्लवों के बाद कुषाणों का भारत में आगमन हुआ। अधिकांश आधुनिक विद्वान कुषाणों का पश्चिमी चीन में गोबी प्रदेश में रहने वाली यू-ची जाति से संबंध मानते हैं। कुषाणों का प्रथम प्रमुख शासक कुजुल कैडफिसस था, जिसे कैडफिसस प्रथम भी कहा जाता है।

कुजुल कैडफिसस प्रथम के बाद उसका पुत्र येन-काओ-चेन सिंहासन पर बैठा। विम कैडफिसस अथवा कैडफिसस द्वितीय के नाम से विख्यात है। कैडफिसस द्वितीय ने तक्षशिला पर अधिकार करके कुषाण सत्ता को भारत में दृढता से स्थापित किया था।

विम कैडफिसस ने सिक्के ढलवाए। जिसमें उसे माहेश्वर कहा गया है। कैडफिसस द्वितीय की मृत्यु के बाद दो दशक के बाद 78 ई. में कनिष्क कुषाण साम्राज्य का शासक बना।

कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक था। उसने 78 ई. से 106 ई. तक शासन किया। कनिष्क ने अपने शासन काल में गांधार, कश्मीर, सिन्ध एवं पंजाब पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। कनिष्क ने 78 ई. में एक सम्वत् प्रचलित किया था, जो शक-सम्वत् के नाम से जाना जाता है। कनिष्क ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था। इसके समय में कश्मीर में कुण्डन वन में वसुमित्र की अध्यक्षता में चतुर्थ बौद्ध संगीति आयोजित की गई थी।

कनिष्क ने अपने साम्राज्य की प्रथम राजधानी पुरुषपुर (पेशावर)को तथा द्वितीय राजधानी मथुरा को बनाया था। कनिष्क ने महायान धर्म को राजधर्म माना है। कनिष्क ने काश्गर यारकंद, खोतान आदि को विजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। कनिष्क के उत्तराधिकारी हुविष्क (106 ई.-138ई.)के समय में कुषाण सत्ता का प्रमुख केन्द्र पेशावर से हटकर मथुरा पहुंच गया था। कनिष्क के कुल का अंतिम महान शासक वासुदेव था।


कुषाण वंश के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें मुख्यतः चीनी स्रोतों पर निर्भर रहना पङता है। चीनी ग्रंथों में पान-कु कृत सिएन-हान-शू तथा फान-ए कृत हाऊ-हान-शू महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

पान-कू के ग्रंथ से यू-ची जाति के हूण, शक तथा पार्थियन राजाओं के साथ संघर्ष का विवरण मिलता है। इस विवरण के साथ ही यह ज्ञात होता है, कि यू-ची जाति का पाँच कबिलों में विभक्त थी। फान-ए के ग्रंथ हाऊ-हान-शू से 25 ईस्वी से लेकर 125 ईस्वी तक यू-ची जाति के इतिहास का पता चलता है…अधिक जानकारी

आंध्र-सातवाहन वंश

आंध्र-सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने की थी। सातवाहन वंश के शासकों को दक्षिणाधिपति कहा जाता था, तथा इनके द्वारा शासित प्रदेशों को दक्षिणापथ कहा जाता था। सातवाहनों का मूल निवास महाराष्ट्र का प्रतिष्ठान (पैठान) नगर था, जो सातवाहन शासकों की राजधानी थी।

सिमुक के उपरांत उसका भाई कृष्ण और कृष्ण के बाद उसका पुत्र शातकर्णी प्रथम शासक हुआ।

सातवाहन वंश का तीसरा शासक शातकर्णी प्रथम ही सातवाहन वंश की शक्ति एवं सत्ता का मूल संस्थापक माना जाता है।

उसने अपने शासनकाल में अश्वमेघ यज्ञ किया और समस्त दक्षिण भारत पर अपनी सार्वभौम सत्ता स्थापित की। उसने गोदावरी तट पर स्थित प्रतिष्ठान नगर को अपनी राजधानी बनाया था। शातकर्णी प्रथम की मृत्यु के बाद शकों के आक्रमणों के फलस्वरूप सातवाहनों की शक्ति में कमी होने लगी और महाराष्ट्र में शक-क्षत्रप वंश का शासन आरंभ हुआ, परंतु सातवाहन वंश के 23 वें शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने शक-क्षत्रप की शक्ति को नष्ट करके पुनः सातवाहन वंश की शक्ति, दक्षिण भारत में स्थापित की।

गौतमी पुत्र शातकर्णी का साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक विस्तृत था। गौतमी पुत्र शातकर्णी के बाद उसका पुत्र वासिष्ठी पुत्र पुलुमावी शासक बना। यज्ञश्री शातकर्णी सातवाहन वंश का अंतिम महान शासक था। इस वंश के सभी शासक हिन्दू धर्म के कट्टर अनुयायी थे। उन्होंने वैदिक यज्ञों और समाज में वर्णाश्रम व्यवस्था को प्रतिष्ठित किया।

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