प्राचीन भारतइतिहासपुष्यमित्र शुंगशुंग वंश

शुंग कालीन साहित्यिक स्रोत

जिस महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने 184 ईसा.पूर्व में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या की वह इतिहास में पुष्यमित्र के नाम से विख्यात हुआ। बृहद्रथ ने जिस राजवंश की स्थापना की वह शुंग नाम से जाना जाता है।

शुंग काल के इतिहास को जानने के साधन-

शुंगों का इतिहास जानने के लिये साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनों ही साधन महत्त्वपूर्ण हैं।

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शुंग कालीन साहित्यिक स्रोत-

पुराण-

पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्राह्मंड विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। पुराणों से पता चलता है, कि पुष्यमित्र शुंग वंश का संस्थापक था।

हर्षचरित-

हर्षचरित की रचना महाकवि बाणभट्ट ने की थी। इससे पता चलता है, कि पुष्यमित्र ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया। हर्षचरित उसे अनार्य तथा निम्न उत्पत्ति का बताता है।

पतंजलि का महाभाष्य-

पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। उनके महाभाष्य में यवन आक्रमण की चर्चा हुई है। इस चर्चा में बताया गया है,कि यवनों ने साकेत तथा माध्यमिका को रौंद डाला था।

गार्गी संहिता(मौर्योत्तर काल), महाभाष्य (मौर्योत्तर काल), मालविकाग्निमित्रम्(गुप्तकाल)

इन तीनों ग्रंथों से पता चलता है, कि पुष्यमित्र शुंग के समय में यवन आक्रमण हुआ था।गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है। इसके युग-पुराण खंड में यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है, जहाँ बताया गया है,कि यवन आक्रांता साकेत, पंचाल, मथुरा को जीतते हुए कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) के निकट तक जा पहुँचे।

मालविकाग्निमित्र-

मालविकाग्निमित्र नामक नाटक की रचना महाकवि कालीदास ने की थी। इससे शुंगकालीन राजनैतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है। पता चलता है, कि पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था, तथा उसने विदर्भ को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया था। कालिदास यवन-आक्रमण का भी उल्लेख करता है। जिसके अनुसार अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु सरिता के दाहिने किनारे पर यवनों को पराजित किया था।

थेरावली-

थेरावली की रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने की थी। इस ग्रंथ में उज्जयिनी के शासकों की वंशावली दी गयी है। यहां पुष्यमित्र का भी उल्लेख मिलता है। तथा बताया गया है, कि उसने 30 वर्षों तक राज्य किया। मेरुतुंग का समय 14वी. शता. का है।

हरिवंश-

हरिवंश में पुष्यमित्र की ओर परोक्ष रूप से संकेत किया गया है। हरिवंश में पुष्यमित्र को औद्भिज्ज (अचानक उठने वाला) कहा गया है। पुष्यमित्र ने कलियुग में चिरकाल से परित्यक्त अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया था। इसमें इस व्यक्ति को सेनानी तथा काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण कहा गया है। के.पी. जायसवाल इसकी पहचान पुष्यमित्र से करते हैं।

अयोध्या का लेख-

यह पुष्यमित्र के अयोध्या के राज्यपाल धनदेव का है। इससे पता चलता है, कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेघ यज्ञ किये थे।

दिव्यावदान –

यह एक बौद्ध ग्रंथ है। इसमें पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अंतिम शासक बताया गया है। तथा उसका चित्रण बौद्ध धर्म के संहारक के रूप में हुआ है।

बेसनगर का लेख-

यह यवन राजदूत हेलियोडोरस का है तथा गरुङ-स्तंभ के ऊपर खुदा हुआ है। इससे मध्य भारत के भागवत धर्म की लोकप्रियता का पता चलता है।

भरहुत का लेख-

यह भरहुत स्तूप की एक वेष्टिनी पर खुदा हुआ है, इससे पता चलता है, कि यह स्तूप शुंकालीन रचना है।

इन सभी लेखों के अलावा सांची, बेसनगर, बोधगया आदि से प्राप्त स्तूप एवं स्मारक शुंगकालीन कला एवं स्थापत्य की उत्कृष्टता के बारे में बताते हैं। शुंगकाल की कुछ मुद्रायें कौशांबी, अयोध्या, अहिच्छत्र तथा मथुरा से प्राप्त होती हैं। ये सभी स्रोत शुंगकालीन इतिहास एवं संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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