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क्षेत्रीय शक्तियों का उदय कैसे हुआ ?

क्षेत्रीय शक्तियों का उदय

क्षेत्रीय शक्तियों का उदय (Rise of regional powers)

क्षेत्रीय शक्तियों का उदय (kshetriya shaktiyon ka uday) – राजनीति का यह सामान्य सिद्धांत है कि जब केन्द्रीय सत्ता शिथिल या पतनोन्मुख होती है, तब क्षेत्रीय शक्तियों का उदय होता है। 1565 ई. में दब दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य का विघटन हुआ तब वाडियार वंश ने मैसूर में अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। इसी प्रकार मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया, तब अनेक क्षेत्रीय शक्तियाँ केन्द्र के नियंत्रण से मुक्त हो गयी।

सर्वप्रथम मुगल बादशाह मुहम्मदशाह (1719-1748 ) के काल में 1722 ई. में अवध के सूबेदार सादतखाँ ने अवध में अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली, हालाँकि वह मुगल बादशाह का नाममात्र का स्वामित्व भी स्वीकार करता रहा। इसी प्रकार 1724 ई. में दक्षिण के सूबेदार निजाम-उल-मुल्क आसफजहाँ ने हैदराबाद के स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली।

1727 ई. में पूर्वी भारत के समृद्ध सूबे बंगाल, बिहार और उङीसा भी केन्द्रीय सत्ता के नियंत्रण से मुक्त हो गये और शुजाउद्दौला ने वहाँ अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। पंजाब में मुगल सूबेदारों के अत्याचार से त्रस्त सिक्खों ने अपनी सैनिक शक्ति संगठित कर ली।

इन क्षेत्रीय शक्तियों में मैसूर, पंजाब और अवध ने अपने-अपने प्रदेशों की स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए अंग्रेजों से निरंतर संघर्ष किया, लेकिन अंत में ये तीनों शक्तियाँ अंग्रेजों के हाथों पराजित हुई और उनका ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया।

18वीं शताब्दी में स्वायत्त और स्वतंत्र राज्य के रूप में बंगाल और अवध का उदय अपने आप में अकेली घटना नहीं थी। अवध बंगाल, हैदराबाद, मैसूर और अन्य क्षेत्रीय राज्यों का उदय 18वीं शताब्दी की राजनीतिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। मुगल साम्राज्य के पतन पर लागातार चल रहे शोध से यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रशासनिक कृषीय, सामाजिक आदि संकटों के कारण मुगल साम्राज्यी व्यवस्था भरभरा कर गिर गयी। मुगल साम्राज्य का पतन

इतिहासकारों के बीच इन विभिन्न कारकों के स्वरूप और सापेक्षा महत्व पर अभी भी बहस चल रही है।  इस इकाई में हमारे लिए अठारहवीं शताब्दी के दौरान मुगान प्रांतीय राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी जरूरी है, इसे जानने के बाद ही हम बंगाल और अवध में नयी शासन प्रणाली के उदय की प्रक्रिया को समझ सकेंगे।

हैदरअली का उत्कर्ष

हैदरअली का जन्म (haidaralee ka janm parichay) मैसूर के कोलार जिले में बुदीकोट नामक स्थान पर सन 1722 ई. में हुआ था। उसके पूर्वज दिल्ली से गुलबर्गा आये थे तथा कृषि करते थे। जब हैदरअली केवल सात वर्ष का था, उसके पिता फतहमुहम्मद का देहांत हो गया। बहुत कठिनाई से उसको मैसूर के राजा कृष्णराज की सेना में एक साधारण पद पर नियुक्ति मिली।

हैदरअली का उत्कर्ष केवल मैसूर के इतिहास में ही नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है। हैदरअली अपनी योग्यता और साहस के बल पर उन्नति की ओर बढा था। हैदरअली की योग्यता तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर मैसूर के प्रधानमंत्री नंदराज ने उसे फौजदार का पद प्रदान किया। थोङे ही दिनों में उसने अपनी सैनिक शक्ति काफी बढा ली। उसने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टम पर आक्रमण करके प्रधानमंत्री नंदराज को बंदी बना लिया और शासन सत्ता पर अधिकार कर लिया।

1761 ई. तक उसने मैसूर राज्य की समस्त शक्ति अपने हाथ में केन्द्रित कर ली। 1776 में जब मैसूर के राजा की मृत्यु हो गयी, तब हैदरअली ने स्वयं को मैसूर का शासक घोषित कर दिया, लेकिन दक्षिण की अन्य तीन प्रमुख शक्तियाँ – मराठे, निजाम तथा अंग्रेज हैदरअली के इस उत्कर्ष के प्रति उदासीन नहीं थे। शीघ्र ही हैदरअली का इन तीन शक्तियों से संघर्ष हो गया…अधिक जानकारी

हैदरअली तथा आंग्ल-मैसूर युद्ध

प्रथम मैसूर युद्ध (1767-69ई.) – त्रिगुट के दो सदस्यों मराठों और निजाम को संतुष्ट कर अब हैदरअली को केवल अंग्रेजों से ही लङना शेष रह गया। सन 1767 में दोनों पक्षों में युद्ध छिङ गया। प्रारंभ में अंग्रेजों ने हैदरअली तथा निजाम की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर दिया। अतः निराश होकर निजाम ने हैदरअली का साथ छोङ दिया और अंग्रेजों से संधि कर ली। परंतु हैदरअली ने अँग्रेजों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। उसने अंग्रेजों को पराजित करके मंगलौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद हैदरअली मार्च, 1769 में मद्रास के निकट पहुँच गया।

अंग्रेजों से भयभीत होकर 1769 में हैदरअली से एक संधि कर ली, जिसे मद्रास की संधि कहते हैं। इस संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के प्रदेश लौटा दिए, अंग्रेजों ने हैदरअली को हर्जाने के तौर पर बहुत सा धन दिया तथा दोनों ने भविष्य में एक दूसरे को आक्रमण होने पर सहायता देने का वचन दिया।

इस युद्ध में सफलता पाने पर हैदरअली की शक्ति और प्रतिष्ठा बहुत बढ गयी, लेकिन अंग्रेज इस संधि के प्रति निष्ठावान नहीं रहे। जब मराठों ने सन 1771-72 में हैदरअली पर आक्रमण किया, तो अंग्रेजों ने उसकी सहायता नहीं की। इस विश्वासघात के कारण हैदरअली जीवनपर्यंत अंग्रेजों से घृणा करता रहा…अधिक जानकार
हैदरअली(hyder ali) कहाँ का शासक था

पंजाब विजेता के रूप में रणजीतसिंह

काबुल के शासक जमनशाह (अब्दाली का पुत्र) ने रणजीत सिंह को उसकी महत्त्वपूर्ण सैन्य सेवाओं के लिए 1798 में राजा की उपाधि प्रदान की और लाहौर की सूबेदारी सौंपी।

1799 से 1805 के बीच रणजीत सिंह ने भंगी मिसल के अधिकार से लाहौर और अमृतसर को छीन कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।

1808 ई. में रणजीत सिंह ने सतलज नदी को पार कर फरीदकोट मुलेर कोटला और अंबाला पर कब्जा कर लिया…अधिक जानकारी

अंग्रेजों द्वारा अवध के ब्रिटिश साम्राज्य में विलय

11 फरवरी 1856 को अवध का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लिया गया था। 1722 ई. में मुगल सम्राट ने सादतखाँ को अवध का सूबेदार नियुक्त किया था और तभी से अवध के पृथक राज्य का आरंभ हुआ। सादत खाँ वीर, साहसी, महत्वाकांक्षी तथा अत्यंत कुशल सेनानायक था। जिसने 1739 तक अपना पद पैतृक कर लिया और एक स्वतंत्र शासक बन गया।

1739 में उसकी मृत्यु के बाद उसका पौत्र सफदरजंग गद्दी पर बैठा और उसने भारतीय राजनीति में विशेष भाग लिया। अवध का नवाब होते हुए भी वह मुगल साम्राज्य में वजीर के पद पर भी कार्य करता रहा।

1754 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी और उसका पुत्र शुजाउद्दौला नवाब बना। वह आरंभ में विलासी एवं प्रशासन में अरुचि रखने वाला था लेकिन कठिनाई तथा आपत्ति के समय परिश्रम तथा शौर्य का परिचय भी देता था। वह अवध का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली नवाब रहा। अपने समय का वह योग्यतम नेता था।

1961 ई. में शाह आलम ने शुजा को अपना वजीर घोषित कर दिया। 1762-63 ई. में शुजाउद्दौला बुन्देला सरदार हिन्दुपति के विरुद्ध संघर्ष करता रहा…अधिक जानकारी

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