इतिहासदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

दिल्ली सल्तनत एवं दक्षिण भारत का इतिहास | Delhi saltanat evan dakshin bhaarat ka itihaas | History of Delhi Sultanate and South India

दिल्ली सल्तनत एवं दक्षिण भारतअलाउद्दीन खिलजी के आक्रमणों के समय दक्षिण प्रायद्वीप चार संपन्न राज्यों में विभाजित था – 1.) देवगिरि, 2.) तेलंगाना, 3.) होयसल, 4.) पांड्य।

दिल्ली सल्तनत एवं दक्षिण भारत का इतिहास

देवगिरि

देवगिरि का राज्य उत्तर भारत और दक्षिण प्रायद्वीप के मध्य था। देवगिरि के उत्तर में विंध्याचल ऊँचे शिखर और उत्तर पश्चिम में मालवा तथा गुजरात के राज्य थे। पूर्व तथा दक्षिण में तेलंगाना और द्वारसमुद्र स्थित थे और पश्चिम में पश्चिमी घाट के पर्वत। उत्तर में विंध्य पर्वतों द्वारा सुरक्षित रहने के कारण यह राज्य 11 वीं से 13 वीं शताब्दी के मध्य होने वाले विदेशी आक्रमणों से बचा रहा। इस प्रदेश में यादव वंश का राज्य था जो अपनी धन संपन्नता, समृद्धि और विस्तार के लिए प्रसिद्ध था। अलाउद्दीन का समकालीन देवगिरि का शासक रामचंद्र देव था।

तेलंगाना

13 वीं शताब्दी में देवगिरि राज्य ने अपने दो शासकों सिंपण एवं रामचंद्र के अधीन अत्यधिक समृद्धि प्राप्त की। यादवों ने कृष्णा नदी तक का समस्त भाग अपने अधिकार में कर लिया। प्रादेशिक सीमा के विस्तार के अलावा देवगिरि राज्य उन्नतशील व्यापार से भी समृद्ध हुआ। देवगिरि राज्य के दक्षिण-पूर्व से समुद्र तट के क्षेत्र तक तेलंगाना राज्य स्थित था, जिसकी राजधानी वारंगल थी और काकतीय वंश के शासक प्रताप रुद्र देव का शासन था। विदेश व्यापार के कारण यह राज्य सोने-चाँदी से संपन्न था।

होयसल

तेलंगाना राज्य के दक्षिण-पश्चिम में और देवगिरि के दक्षिण में होयसलों का राज्य स्थित था, जिसकी राजधानी द्वारसमुद्र थी। होयसल शासक उत्तर में यादवों से तथा दक्षिण में चोलों से युद्ध में व्यस्त रहते थे। अलाउद्दीन का समकालीन होयसल शासक बल्लाल तृतीय था। यह राज्य भी अपनी धन संपत्ति और वैभव के लिए प्रसिद्ध था।

पांड्य

सुदूर दक्षिण में पांड्यों का राज्य था जिसे 12 वीं शताब्दी में आंतरिक कलह और उत्तर में चोलों और दक्षिण से सिंहली राजाओं के हस्तक्षेप के कारण बहुत हानि उठानी पङी। यहाँ की राजधानी मदुरा थी। अलाउद्दीन का समकालीन शासक कुलशेखर एक अत्यंत योग्य और प्रभावशाली व्यक्ति था। इसके दो पुत्र थे – 1.) सुंदर पांड्य (वैध पुत्र), 2.) वीर पांड्य (अवैध पुत्र)। मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार पांड्य नरेश ने वीर पांड्य को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था। सुंदर पांड्य ने अपने पिता की हत्या कर दी और राज्य गृहयुद्ध से ग्रसित हो गया। एक युद्ध में सुंदर पराजित हुआ और उसने सुल्तान से सहायता माँगी। यही मदुरा पर आक्रमण का कराण बना। इन महत्त्वपूर्ण राज्यों के अलावा कुछ छोटे-छोटे राज्य भी इनके अधीन थे। इस समय दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति दयनीय थी- जिसमें एकता, संगठन और सहयोग के अभाव के अलावा पारस्परिक ईर्ष्या, वैमनस्य और फूट व्याप्त थी। चारों प्रमुख राज्यों की सीमाएँ यादवों, होयसलों, काकतीयों और पांड्यों के निरंतर संघर्षों के कारण प्रायः बदलती रहती थी। यही कारण है कि अलाउद्दीन को इन पर आक्रमण करने में पर्याप्त सरलता हुई। इन राज्यों के आपसी युद्धों में (12 वीं 13 वीं शताब्दी) दक्षिण के विभिन्न धार्मिक संप्रदायों में उत्पन्न मतभेद भी सम्मिलित होते गए।

दक्षिण भारत की संपन्नता

दक्षिण भारत काफी समय तक विदेशी आक्रमणकारियों की लूटमार से सुरक्षित रहा और हजारों वर्षों से उस देश के राजा तथा प्रजा अपना धन एकत्रित करते चले आए, जिसे देखकर विदेशी यात्री भी चकाचौंध हो गए। बस्साफ तथा मार्कोपोलो जैसे यात्री दक्षिण की अपार संपत्ति का प्रमाण देते हैं। इन्होंने राजाओं के बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण तथा जवाहररात के बारे में विस्तार से लिखा है। बङे अनमोल मोती माबर प्रदेश में एकत्रित किए जाते थे तथा राजा की आज्ञा थी कि वहाँ के मोती विदेश न भेजे जाएँ। माबर की संपत्ति के बारे में मार्कोपोलो का कहना है कि जब राजा की मृत्यु होती है तो उसका कोई भी पुत्र उसके कोष को स्पर्श तक करने का साहस नहीं करता है, क्योंकि वे कहते हैं – जिस प्रकार हमारे पिता ने सारे कोष को एकत्रित किया है उसी प्रकार हमें अपनी ओर से एकत्र करना चाहिए। पांड्य तथा अन्य सभी राजाओं ने देवालयों तथा मंदिरों के निर्माण पर बहुत अधिक धन खर्च किया । इसी प्रकार व्यापारियों तथा यात्रियों के साथ बहुत अच्छा था। मसालिकुल अबसार के लेखक शिहाबुद्दीन अबुल अब्बास ने भी भारत की अतुल संपत्ति का उल्लेख किया है। उनके अनुसार विदेशियों का सोना हजारों वर्षों से हिंदुस्तान में आता रहा और बाहर कभी नहीं गया। अमीर खुसरो, बरनी और फरिश्ता इस मत पर सहमत हैं कि अलाउद्दीन और मलिक काफूर दक्षिण से अपरिमित धन प्राप्त हुआ था। एक बार तो केवल एक मंदिर से प्राप्त हुई लूट ही दो सौ हाथियों और कई हजार बैलों पर लादकर लाई गई थी। इतनी भारी लूट के बाद दक्षिण के बहमनी और विजयनगर साम्राज्य के पास विशाल कोष थे, जिसका उल्लेख फारस के राजदूत रज्जाक ने किया है। वह 15 वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के भ्रमण के लिये आया था। उसने लिखा है कि एक ओर समस्त देश खेती बाङी से हरा भरा है और दूसरी ओर राजाओं के तहखाने सोने के ठोस ढेरों से भरे पङे हैं। देश के सभी निवासी चाहे वे संपन्न हों या दरिद्र, सोने-चाँदी तथा रत्नजटित आभूषण पहनते हैं। फरिश्ता भी समर्थन में कहता है कि दक्षिण में गरीब से गरीब लोग सोने के आभूषण पहनते हैं और सोने – चाँदी के बर्तनों में भोजन करते हैं। दक्षिण की इस अपार धन संपत्ति ने उत्तर के सुल्तानों को इस समृद्ध भूमि पर विनाशकारी अभियान के लिये प्रेरणा दी। महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी दक्षिण की संपत्ति के बारे में अनभिज्ञ न थे। महमूद तो केवल गुजरात तक जा पाया, जबकि मुहम्मद गोरी को वहाँ से पीछे हटा दिया गया। यद्यपि दोनों विजेताओं में से कोई भी दक्षिण तक न पहुँच पाया तथापि दक्षिण को जीतना और अपार धन संपत्ति प्राप्त करना उत्तर के महत्वाकांक्षी विजेताओं के लिये अपूर्व आकर्षक का कराण बना। अलाउद्दीन खिलजी ही पहला सुल्तान था जिसने 1296 ई. में इस ओर भरपूर शक्ति से आक्रमण किया।

अलाउद्दीन खिलजी के विभिन्न सैनिक अभियान

देवगिरि पर आक्रमण (1296ई.)
देवगिरि का द्वितीय अभियान (1307ई.)
द्वारसमुद्र की विजय (1310ई.)
मदुरा या माबर विजय (1311ई.)
देवगिरि पर तीसरा आक्रमण (1312-1313ई.)

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