पूर्व वैदिककालीन कर्मकाण्ड प्रधान तथा उत्तरवैदिक कालीन ज्ञानमार्गी धर्मों का समन्वय कर महाकाव्यों के समय में एक लोकधर्म का विकास किाय गया, जो सर्वसाधारण के लिय सुलभ था। कुछ वैदिक देवताओं का महत्व घट गया, जबकि कुछ देवताओं के प्रभाव में वृद्धि कर दी गयी। देवसमूह में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव को सर्वोच्च प्रतिष्ठा दी गयी। इनमें भी विष्णु तथा शिव की लोकप्रियता अधिक थी।
अन्य देवताओं की औपचारिक मान्यता थी। इन देवताओं की कल्पना मनुष्य रूप में की गयी तथा प्रत्येक में कुछ विशिष्ट गुणों को आरोपित कर दिया गया। दैवी शक्ति से विशिष्ट होने पर भी मनुष्यों की भाँति पृथ्वी पर निवास करते तथा लीलायें किया करते थे। शीघ्र ही ब्रह्म का महत्त्व समाप्त हो गया तथा शिव और विष्णु ही महाकाव्य कालीन धर्म के प्रमुख देवता रह गये। राम तथा कृष्ण को विष्णु का महत्त्व समाप्त हो गया तथा शिव और विष्णु ही महाकाव्य कालीन धर्म के प्रमुख देवता रह गये। राम तथा कृष्ण को विष्णु का ही अवतार माना गया तथा उनमें समस्त गुणों को प्रतिष्ठित कर दिया गया । इस प्रकार अवतारवाद का विकास हुआ।
रामायण में चरित्र पर विशेष बल दिया गया है।चरित्र ही मनुष्य में सभी गुण विद्यमान है, अतः वे महामानव हैं। बाद में उन्हें देवता माना गया है। महाभारत में भी लोकधर्म की प्रतिष्ठा है तथा कृष्ण को विष्णु का अवतार बताया गया है। इन महाकाव्यों की लोकप्रियता का प्रधान कारण यह था, कि इन्होंने सामान्य जनता के मोक्ष – प्राप्ति के लिये एक सरल उपाय बताया। यह उपाय है, भक्ति अथवा उपासना का जो सभी के लिये समान रूप से सुलभ था। ईश्वर भक्ति से प्रसन्न होकर उपासक को उसके पापों से त्राण दिलाते हैं।
गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं – सभी धर्मों को छोङकर केवल मेरी शरण में जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त करूँगा, शोक मत करो।
गीता कृष्ण का चित्रण सर्वशक्तिमान ब्रह्म के रूप में करती है, जो जगत् के निर्माता एवं अधीश्वर हैं। उनमें उपनिषदों के ब्रह्म तथा लोकधर्म के वासुदेव दोनों के रूपों का समन्वय है। कृष्ण भक्ति-आंदोलन के केन्द्र-बिन्दु बन गये तथा जन मानस पर उनके व्यक्तित्व का व्यापक प्रभाव पङा। उपनिषद दर्शन अपनी गूढता के कारण सभी के लिये बोधगम्य न था तथा सामान्य जनता के लिये उपयोगी धर्म की महती आवश्यकता थी।
जनता को एक ऐसे देवता की आवश्यकता थी, जिस पर वह भरोसा कर सकती तथा जो संकट के समय उसकी सहायता कर सकता। महाकाव्यों ने ऐसा लोकधर्म प्रस्तुत कर दिया। भगवदगीता हमारे समक्ष ऐसे ईश्वर का जीवित व्यक्तित्व प्रस्तुत करती है, जो अपने भक्तों की सहायता के लिये पृथ्वी पर अवतार लेता है, धर्म की स्थापना करता है, सज्जनों की रक्षा करता है, तथा दुष्टों का विनाश करता है। गीता में औपनिषदिक ज्ञान के महत्त्व को स्वीकार करते हुये भी भक्ति को प्रमुखता प्रदान की गयी है। यही मोक्ष प्राप्त करने का सर्वसुलभ साधन है।
महाकाव्य कालीन धर्म में वैदिक तथा अवैदिक विश्वासों का समावेश दिखाई देता है। यज्ञों, शिव, कृष्ण, दुर्गा, इन्द्र आदि देवी-देवताओं की पूजा की गयी है। पर्वत, नाग, राक्षस, यक्ष पूजा का भी उल्लेख प्राप्त होता है। विभिन्न प्रकार के यज्ञों का विस्तारपूर्वक उल्लेख मिलता है। राजाओं द्वारा अश्वमेघ तथा राजसूय जैसे विशाल यज्ञ किये जाते थे। माध्यम से असत्य पर सत्य की तथा अन्याय पर न्याय की विजय प्रदर्शित की गयी है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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