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अवध का अधिग्रहण कैसे हुआ

अवध का अधिग्रहण

अवध का अधिग्रहण –

अवध का अधिग्रहण (avadh ka adhigrahan) – अवध का बङा राज्य कलकत्ता और लाहौर के बीच आवागमन में बाधा उपस्थित कर सकता था। इस कारण अवध को हङप कर संपूर्ण उत्तर भारत पर सीधे अधिकार करने की उसने योजना बनाई। अवध पर अधिकार करके कंपनी की आमदनी भी बढाई जा सकती थी।

अवध का अधिग्रहण

1849 में डलहौजी ने कर्नल स्लीमन को अवध में रेजीडेन्ट नियुक्त किया तथा अवध की स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा स्लीमैन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अवध में चारों ओर अराजकता एवं अव्यवस्था फैली हुई थी।

उसने अवध की दुर्दशा के लिए अवध के नवाब वाजिदअली शाह को दोषी ठहराया परंतु उसने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि अवध राज्य को ब्रिटिश-साम्राज्य में मिलाना उचित नहीं होगा। 1854 में डलहौजी ने जनरल औटरम को अवध में रेजीडेन्ट के पद पर नियुक्त किया।

औटरम ने अवध की स्थिति के बारे में एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह रिपोर्ट परिस्थिति का सही मूल्यांकन नहीं थी। यह एक प्रकार का आरोप-पत्र था जिसमें अवध की खराब स्थिति का वर्णन किया गया था। इस रिपोर्ट के आधार पर डलहौजी ने अवध के विषय में एक ब्यौरा तैयार किया जिसमें उसने सुझाव दिया कि राज्य में अव्यवस्था एवं कुशासन के कारण अवध का प्रशासन कंपनी को सौंप दिया जाना चाहिए। उसने यह भी सुझाव दिया कि 1801 की संधि को भंग कर दिया जाए। गृह सरकार ने डलहौजी के निर्णय को स्वीकृति प्रदान कर दी।

अतः 1856 में डलहौजी ने अवध के नवाब वाजिदअली शाह पर आरोप लगाया कि उसने शासन कार्यों की उपेक्षा करके 1801 की संधि का उल्लंघन किया है। अतः इस संधि को भंग कर दिया गया।

इसके बाद डलहौजी ने दूसरी संधि तैयार की और नवाब वाजिदअली शाह से मांग की कि वह नई संधि स्वीकार कर ले। नई संधि के अनुसार नवाब से मांग की गयी कि वह अवध का संपूर्ण प्रशासन कंपनी को सौंप दे। डलहौजी यह प्रदर्शित करना चाहता था कि अवध राज्य को हङपने की बजाय केवल प्रशासन का खर्च कंपनी अपने हाथ में ले रही है। अवध के नवाब ने इस नई संधि का विरोध किया क्योंकि वह नाममात्र का नवाब बन कर नहीं रहना चाहता था।

वह डलहौजी से मिलने कलकत्ता गया, परंतु डलहौजी ने उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। 13 फरवरी, 1856 को डलहौजी ने नवाब वाजिदअली शाह को अपदस्थ करने तथा अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी।

लार्ड डलहौजी ने घोषित किया कि ब्रिटिश सरकार ईश्वर तथा मनुष्य दोनों की दृष्टि में अपराधी होगी यदि वह ऐसी व्यवस्था को और अधिक सहयोग देगी जिसमें लाखों व्यक्तियों के लिए कष्ट भोगना निहित हो।

अवध विलय की समीक्षा

अंग्रेजों की अवध विलय की नीति का मूल्यांकन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया गया है-

स्लीमैन तथा औट्रम की रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण थी-

कर्नल स्लीमैन तथा जनरल औट्रम की रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण थी तथा बढा-चढाकर लिखी गयी थी। उन्होंने लार्ड डलहौजी के आदेशों के अनुसार ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उन्होंने अवध के कुशासन को बढा-चढा कर प्रस्तुत किया। अतः उनके प्रतिवेदनों को सत्य नहीं माना जा सकता। इन रिपोर्टों को आधार बनाकर लार्ड डलहौजी अवध राज्य को हङपना चाहता था।

अनुचित एवं अनैतिक कार्य

लार्ड डलहौजी द्वारा कुशासन का आरोप लगा कर अवध को हङपना न्यायोचित नहीं था। यद्यपि अवध के नवाब इलाहाबाद की संधि के बाद से ही अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे थे और उनकी इच्छानुसार प्रशासन का संचालन करते रहे, परंतु कृतघ्न निकले और उन्होंने कुशासन का बहाना बना कर अवध राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

अंग्रेजी सरकार ने भी विलय के बाद अवध की शासन व्यवस्था को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। अवध की जनता अपने नवाब के शासन को अंग्रेजी कंपनी के शासन से कहीं अच्छा समझती थी और इसी कारण अवध की जनता ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध खुल कर भाग लिया।

डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने ठीक लिखा है कि – अवध विलय की घटना डलहौजी की डकैती की चरम सीमा थी।

कुशासन के लिए अंग्रेज उत्तरदायी थी, न कि नवाब

अवध के कुशासन के लिए अंग्रेज उत्तरदायी थे, न कि नवाब। अवध में कुशासन के लिए अंग्रेज ही उत्तरदायी थे, क्योंकि उन्होंने शासन में सुधार करने के लिए नवाबों को कोई सहयोग नहीं दिया। अवध की शासन सत्ता वास्तव में अंग्रेजों के हाथों में ही थी, अतः अवध के शासन में तब तक कोई सुधार संभव नहीं था जब तक कि अंग्रेज नवाबों के साथ सहयोग न करें। वास्तव में अंग्रेज अवध के शासन में सुधार करने के लिए इच्छुक नहीं थे, वरन वे तो कुशासन का आरोप लगाकर अवध राज्य को हङपना चाहते थे।

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