मध्यकालीन भारतइतिहासमुगल काल

मुगलकालीन स्थापत्य,कला एवं संस्कृति

mughal art

मुगलकाल को उसकी बहुमुखी सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण भारतीय इतिहास का द्वितीय क्लासिकी युग (Second Classical Age)  कहा गया है।

मुगल कालीन स्थापत्य मध्य एशिया की इस्लामी और भारतीय कला का मिश्रित रूप है, जिसमें फारस,मध्य एशिया, तुर्की , गुजरात, बंगाल एवं जौनपुर आदि स्थानों की परंपराओं का अद्भुत मिश्रण मिलता है।

मुगलकालीन स्थापत्य की मुख्यतम विशेषता-

  • संगमरमर के पत्थरों पर हीरे-जवाहरात से की गयी जङावट पित्रादुरा () एवं महलों तथा विलास भवनों में बहते पानी का उपयोग है।

बाबर के समय में स्थापत्य कला-

मुगलकालीन स्थापत्य काल की शुरुआत बाबर के समय से होती है, उसने पानीपत के निकट काबुली-बाग में एक मस्जिद (1529ई.) में बनवायी।

इसके अतिरिक्त बाबर ने रूहेलखंड में संभल की जामी मस्जिद तथा आगरा में लोदी किले के भीतर एक मस्जिद बनवायी । एवं ज्यामितीय विधि पर आधारित एक उद्यान आगरा में लगवाया।जिसे नूर अफगान नाम दिया गया।

हुमायूँ के समय में स्थापत्य कला-

हुमायूँ ने 1533ई. में दिल्ली में दीनपनाह (विश्व का शरण स्थल) नामक एक नगर का निर्माण करवाया।जो आज पुराने किले के नाम से विख्यात है।इसके अतिरिक्त हुमायूँ ने हिसार जिले में फतेहबाद नामक स्थान पर फारसी शैली में एक मस्जिद का निर्माण करवाया।

शेरशाह-

शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करने के बाद शेरगढ य़ा दिल्ली शेरशाही नामक नये नगर की नींव डाली।यद्यपि इसके अवशेषों के रूप में अब लाल दरवाजा और खूनी दरवाजा ही देखने को मिलता है।

1542ई. में शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अंदर किला-ए-कुहना नामक मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेर मंडल नामक एक अष्टभुजाकार तीन मंजिला मंडप का निर्माण करवाया।

किन्तु शेरशाह की सबसे महत्वपूर्ण कृति बिहार के सासाराम (आधुनिक रोहतास जिला ) नामक स्थान पर झील के बीच मे ंएक ऊँचे चबूतरे पर स्थित उसका मकबरा है। जिसमें भारतीय एवं इस्लामी निर्माण कला का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है।

अकबर कालीन इमारतें-

अकबर के शासन काल में बनी पहली इमारत दिल्ली में बना हुमायूँ का मकबरा है।यद्यपि इसके निर्माण में उसका कोई हाथ नहीं था।

हुमायूँ का मकबरा-

यह मकबरा ज्यामितीय चतुर्भुज आकार के बने उद्यान के मध्य एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है।यह चार-बाग पद्धति में बना प्रथम स्थापत्य स्मारक था।

हुमायूँ के मकबरे का निर्माण 1565ई. में हुमायूँ की विधवा बेगा बेगम(हाजी बेगम) ने शुरू करवाया।

दोहरी गुंबद वाला यह भारत का पहला मकबरा है।

चार-बाग पद्धति का प्रयोग पहली बार हुमायूँ के मकबरे से हुआ वैसे भारत में पहला बाग युक्त मकबरा सिकंदर लोदी का मकबरा था।

इस मकबरे को ताजमहल का पूर्वगामी माना जाता है।

हुमायूँ के मकबरे में दफनाये गये मुगल घरानों के लोग इस प्रकार हैं-

बेगाबेगम,हमीदाबानू बेगम,हुमायूँ की छोटी बेगम, दारा शिकोह, जहांदारशाह, फर्रुखशियर, रफीउरद्दरजात,रफीउद्दौला और आलमगीर द्वितीयदिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर और उसके तीन शहजादों को अंग्रेज लेफ्टीनेंट हड्सन ने 1857ई. में हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार किया था।

इस मकबरे का निर्माण अकबर की सौतेली माँ हाजी बेगम ने फारसी वास्तुकार मीरक मिर्जा गयास की देख-रेख में करवाया था।

इस मकबरे की विशेषता-संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुंबद एवं द्विगुंबदीय प्रणाली थी।

यह मुगलकालीन एकमात्र मकबरा है जिसमें मुगलवंश के सर्वाधिक लोग दफनाये गये हैं।

इस मकबरे को ताजमहल का पूर्वगामी कहा गया है।

अकबर कालीन इमारतों में मेहराबी और शहतीरी शैली का समान अनुपात में प्रयोग मिलता है।

अकबर के काल में फारसी शैली का हिन्दू एवं बौद्ध शैलियों के साथ सम्मिश्रण हुआ।अकबर की अधिकांस इमारतों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग मिलता है।

अकबर कालीन इमारतों को सुविधानुसार दो भागों में बाँटा जा सकता है।

आगरा में निर्मित इमारतें-

  • अकबर कालीन आगरे में बनी इमारतों में बहुत थोङी बची हुई हैं जिनमें अकबरी महल और जहांगीरी महल प्रमुख हैं।
  • अकबर ने (1565-73ई.) अपनी राजधानी आगरा में एक किला बनवाया।
  • आगरे के दुर्ग में निर्मित जहाँगीरी महल की नकल ग्वालियर के मानसिंह महल से ली गयी है। इस महल में हिन्दू और इस्लामी परंपराओं का समावेश मिलता है। अकबरकालीन इमारतों में गुंबदों के प्रयोग से बचने का प्रयास किया गया है।

अकबर कालीन  फतेहपुर सीकरी में निर्मित इमारतें-

  • अकबर ने 1570-71ई. में फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ पर अनेक भवनों का निर्माण करवाया। जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
  1. धार्मिक
  2. लौकिक
  • फतेहपुर सीकरी के भवनों की मुख्य विशेषता- चापाकार एवं धरणिक शैलियों का समन्वय है।

दीवाने आम और दीवाने खास लौकिक प्रयोग के लिये बनाये गये थे।दीवाने आम एक आयताकार प्रांगण था। इसी में बादशाह का सिंहासन रखा रहता था।इसकी मुख्य विशेषता –खंभे पर निकली हुई बरामदे की छत थी।

दीवाने खास एक घनाकार आयोजन था। इसके निर्माण में बौद्ध एवं हिन्दू वास्तुकला की झलक मिलती है।

राजपूत रानी जोधाबाई का महल फतेहपुर सीकरी का सबसे बङा महल था । इस पर उत्कीर्ण अलंकरणों की प्रेरणा दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला से ली गई है। इस पर गुजराती शैली का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है।यह फतेहपुर सीकरी का सर्वोत्तम महल है।

पंचमहल या हवामहल-

यह पिरामिड के आकार का पाँच मंजिला महल था।यह नालंदा के बौद्ध विहारों की प्रेरणा पर आधारित था।

जामा मस्जिद-

फतेहपुर सीकरी की सबसे प्रभावोत्पादक इमारत थी। इसे फतेहपुर का गौरव कहा जाता था।संगमरमर की निर्मित इस मस्जिद को फर्ग्युसन ने पत्थर में रूमानी कथा के रूप में प्रशंसित किया है।

अपनी गुजरात विजय की स्मृति में अकबर ने इस मस्जिद (जामा मस्जिद) के दक्षिणी द्वार पर 134फीट ऊँचा एक बुलंद दरवाजा बनवाया । जिसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है।यह ईरान से ली गयी अर्द्ध – गुंबदीय शैली में बना है।

1585ई. में अकबर फतेहपुर सीकरी के स्थान पर लाहौर में निवास करने लगा और वहाँ पर उसने लाहौर के किले का निर्माण करवाया।

अबुलफजल ने अकबर की स्थापत्य कला में अभिरुचि की प्रशंसा करते हुए  कहा है कि – उसने आलीशान इमारतों की योजना बनाई तथा अपने मस्तिष्क एवं ह्रदय की रचना को पत्थर एवं मिट्टी की पोशाक पहनाई।

इसके अतिरिक्त अकबर ने अनेक इमारतों का निर्माण करवाया जिसमें – तुर्की-सुल्ताना का महल, खास महल, मरियम-महल, बीरबल  महल आदि प्रमुख हैं।

मरियम महल से मुगल चित्रकारी के विषय में जानकारी मिलती है।

तुर्की- सुल्ताना का महल- इतना सुंदर था कि पर्सी ब्राउन ने उसे स्थापत्य कला का मोती कहा है।

फर्ग्युसन ने ठीक ही कहा है कि- फतेहपुर सीकरी किसी महान व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है।

जहाँगीर के समय में स्थापत्य कला-

जहाँगीर ने वास्तुकला की अपेक्षा चित्रकला को अधिक प्रश्रय दिया। फलस्वरूप उसके समय में बहुत ही कम इमारतों का निर्माण हुआ।

आगरा के पास सिकंदरा में स्थित अकबर का मकबरा (जिसके निर्माण की योजना अकबर ने बनायी थी किन्तु निर्माण जहाँगीर ने 1613ई. में करवाया था।इस पाँच मंजिले पिरामिड के आकार के मकबरे की सबसे ऊपरी मंजिल पूर्णतः संगमरमर की बनी है।

इस मकबरे की उल्लेखनीय विशेषता – इसका गुंबद -विहीन होना तथा बलुआ पत्थर से बना मकबरे का दरवाजा एवं संगमरमरकी बनी चार सुंदर मीनारें हैं। जो इससे पूर्व देखने को नहीं मिलती है।यह पूरा मकबरा एक सुव्यवस्थित उद्यान के बीच विशाल चबूतरे पर स्थित है।

जहाँगीर के समय की सबसे उल्लेखनीय इमारत- आगरा में बना ऐतमादुद्दौला का मकबरा है।यह चतुर्भुजाकार मकबरा बेदाग सफेद संगमरमर का बना ऐसा पहला मकबरा है, जिसमें बङे पैमाने पर संगमरमर का प्रयोग किया गाय है, तथा अलंकरण के लिए इस्लामिक भवनों में पहली बार-पित्रा -दुरा (फूलों वाली आकृतियों में कीमती पत्थरों एवं बहुमूल्य रत्नों की जङावट) का प्रयोग मिलता है।

यद्यपि इस प्रणाली (पित्रा-दुरा) का प्रयोग इससे पूर्व ही उदयपुर (राजस्थान)  के गोल मंडल में 1600ई. में किया जा चुका था।

जहाँगीर के शासन काल की अन्य इमारत लाहौर में रावी नदी के तट पर  स्थित शहादरा में बना उसका मकबरा है। जिसके अधिकांश भाग का निर्माण जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने करवाया था।

जहाँगीर के शासन काल के अंतिम या शाहजहाँ के शासन काल के प्रारंभिक दिनों में निर्मित दिल्ली में अब्दुर्रहीम खानखाना का मकबरा जो न्यूनाधिक रूप से हूमायँ के मकबरे की प्रतिकृति है पर कुछ मामलों में इससे ताजमहल का पूर्वाआभास होता है।

जहाँगीर ने कश्मीर में प्रसिद्ध शालीमार बाग की स्थापना की और उसी ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे में लाल बलुआ पत्थऱ के स्थान पर संगमरमर लगवाया था।

शाहजहाँ के समय में स्थापत्य कला-

शाहजहाँ का काल मुगल वास्तुकला का स्वर्ण युग माना जाता है।इसके अतिरिक्त यह काल संगमरमर के प्रयोग का चरमोत्कर्ष काल माना जाता है।

इस कला में संगमरमर जोधपुर के मकराना नामक स्थान से मिलता था,जो वृत्ताकार कटाई के लिए अधिक उपयुक्त होता था।

इस काल की प्रमुख विशेषताएँ – नक्काशी युक्त या पर्णिला मेहराबें  तथा बंगाली शैली में मुङे हुए कंगूरे तथा जंगलें के खंभे आदि थी।

शाहजहाँ कालीन आगरे में निर्मित इमारतें-

आर्शिवादी लाल श्रीवास्तव ने शाहजहाँ के शासन काल को वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्ण काल कहा।

आगरे के किले में स्थित दीवाने-आम (1627ई.) संगमरमर से बनी शाहजहाँ के काल की पहली इमारत थी। इसके अतिरिक्त दीने-खास (1637ई.) तथा मोती मस्जिद (1654ई.) संगमरमर से निर्मित अन्य प्रसिद्ध इमारतें थी।

इसके अतिरिक्त शीश महल, खास महल,आगरे के किले में बने नगीना मस्जिद एवं मुसम्मन बुर्ज आदि पत्थरों से निर्मित अन्य प्रमुख इमारते हैं।

मोती मस्जिद अपनी पवित्रता एवं चारुता के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थी।यह आंगरे की सभी इमारतों में सबसे सुंदर और आकर्षक है। यह शुद्ध सफेद संगमरमर से निर्मित है।

शाहजहाँ के काल की एक अन्य इमारत आगरे की जामी मस्जिद थी जिसे- मस्जिदे-जहाँनामा कहा जाता था।इसे शाहजहाँ की बङी पुत्री जहाँआरा ने बनवाया था।

दिल्ली की इमारतें- 1638ई. में शाहजहाँ ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अपनी नयी राजधानी शाहजहाँनाबाद का निर्माण प्रारंभ किया जा 1648ई. में जाकर पूरा हुआ। और इसी समय मुगल राजधानी दिल्ली स्थानांतरित हुई।

शाहजहाँ ने अपनी नवीन राजधानी(1648ई.) दिल्ली (शाहजहाँनाबाद) में एक चतुर्भुज आकार का किला बनवाया। जो लाल-बलुआ पत्थर से निर्मित होने के कारण लाल-किले के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका निर्माण कार्य 1648ई. में पूर्ण हुआ।

1करोङ की लागत से बनने वाला लाल किला हमीद अहमद नामक शिल्पकार की देखरेख में संपन्न हुआ। इस किले के पश्चिमी द्वार का नाम- लाहौरी दरवाजा एवं दक्षिणी द्वार का नाम दिल्ली-दरवाजा है।

दिल्ली के किले में निर्मित दीवाने आाम  की विशेषता थी इसके पीछे की दीवार में बना एक कोष्ठ -जहाँ विश्व प्रसिद्ध तख्ते-ताउस रखा जाता था। कोष्ठ में बने कुछ चित्रों पर यूरोपीय शिल्पकला का प्रभाव दिखता है।इसके अतिरिक्त दीवाने-आम में स्थित रंगमहल का जाली में न्याय की तराजू में भी यूरोपीय प्रभाव दिखाई देता है।कोष्ठ में बने कुछ चित्रों का विषय फ्लोरेंस नाइटिंगेल से संबंधित है।

दीवाने-खास- दिल्ली के लाल किले में स्थित दीवाने-खास की एक विशेषता है-इसके अंदर की छत चाँदी की बनी है, तथा उस पर सोने,संगमरमर तथा बहुमूल्य पत्थर की मिली-जुली सजावट की गयी है। जो उस पर खुदे अभिलेख को चरितार्थ करती है-

अगर फिरदौस वर रूबी जमीं नस्त 

  हमी अस्त । अर्थात् अगर दुनियाँ में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है,यहीं है।( अमीर खुसरो )

शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले के पास जामा-मस्जिद (1648ई.) का निर्माण करवाया। इसमें शाहजहाँनी शैली में फूलदार अलंकरण की मेहराबें बनी है।

ताजमहल-

शाहजहाँ कालीन वास्तुकला का चरम दृष्टांत आगरे में यमुना नदी के तट पर निर्मित उसकी प्रिय पत्नी मुमताज महल का मकबरा है।(ताजमहल) जो 22 वर्षों में 9करोङ की लागत से तैयार किया गया है।इसका मुख्य स्थापत्यकार-उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ ने नादिर-उल-असरार की उपाधि प्रदान की थी।और इसका प्रधान मिस्री या निर्माता उस्ताद ईसा था।

लेनपूल ने ताजमहल के बारे में लिखा है कि ताजमहल संगमरमर के रूप में वह स्वप्न है, जिसकी योजना ईश्वर ने तैयार की तथा निर्माण स्वर्णकारों ने किया।

इसी प्रकार हावेल ने इसे – भारतीय नारीत्व की साकार प्रतिमा कहा है।उसने कहा है कि- यह एक ऐसा महान विचार है, जो स्थापत्य कला से नहीं, बल्कि मूर्तिकला से संबंधित है।

ताजमहल में फारसी एवं भारतीय शैली का अद्भुत समन्वय मिलता है।ईसी कारण स्मिथ महोदय ने इसे-यूरोपीय एवं एशियाई प्रतिभा के सम्मिश्रण की उपज बताया है। यह मकबरा दिल्ली में स्थित हुमायूँ के मकबरे से प्रेरित था।

औरंगजेब के समय में स्थापत्य कला-

औरंगजेब को ललित कलाओं में कोई रुचि नहीं थी फिर भी उसके काल में कुछ इमारतें बनी।

औरंगजेब कालीन प्रमुख इमारतों में दिल्ली के लाल किले में स्थित मोती मस्जिद (पूर्ण संगमरमर), लाहौर की बादशाही मस्जिद(1674ई.) तथा रबिया बीबी का मकबरा प्रमुख है।

औरंगजेब ने अपनी प्रिय पत्नी रबिया दुर्रानी की याद में 1678ई. में औरंगाबाद में एक मकबरा बनवाया।जो बीबी का मकबरा नाम से प्रसिद्ध है। इसे दक्षिण का ताजमहल भी कहा जाता है।

जहांआरा की कब्र-

यह कब्र शेख निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के दक्षिण में जालीदार संगमरमर के परदों सहित एक बिना छत का घेरा है।इस कब्र के खोखले ऊपरी भाग पर घास रहती है।

जहांआरा के मकबरे पर एक मर्मस्पर्शी लेख खुदा है जिसका अर्थ है- सिवाय हरी घास के मेरी कब्र को किसी भी चीज से न ढका जाए, क्योंकि केवल घास ही इस दीन की कब्र ढकने के लिए काफी है।

जहांआरा के मकबरे के समान एक छोटे अहाते में मुहम्मद शाह का मकबरा है।इसी अहाते में अकबर द्वितीय का पुत्र मिर्जा जहांगीर भी दफनाया गया है।

दरगाह कुतुब शाह –

ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी(कुतुब साहिब) की कब्र जो दिल्ली में स्थित है के पश्चिमी दीवार में औरंगजेब ने रंगीन टाइल जङवायी।इस कब्र के आस-पास का क्षेत्र कालांतर में कब्रिस्तान में परिवर्तित हो गया।कुतुब साहिब के अहाते में दफनाये गये प्रमुख लोगों में शामिल हैं- बहादुरशाह प्रथम(1707-12ई.), अकबर द्वितीय(1806-37ई.)। उल्लेखनीय बात यह है कि बहादुरशाह द्वितीय ने भी अपने लिये यहां कब्र बनवायी थी लेकिन रंगून निर्वासित हो जाने के कारण उनकी कब्र खाली ही पङी रही।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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