मध्यकालीन भारतइतिहासमुगल काल

दारा शिकोह कौन था

dara shikoh

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

दाराशिकोह का जन्म 1615ई. को शाहजहाँ की प्रिय पत्नी मुमताज महल के गर्भ से हुआ था। दारा शिकोह सूफियों की कादिरी परंपरा से बहुत प्रभावित था। कादिरी सिलसिले के प्रसिद्ध संत मुल्लाशाह उसके आध्यात्मिक गुरू थे।लेनपूल ने दारा को लघु अकबर कहा। यह शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा औरंगज़ेब का बड़ा भाई।

शाहजहाँ ने दारा को शाहबुलंद इकबाल की उपाधि से विभूषित किया था।

दारा को 1633 में युवराज बनाया गया और उसे उच्च मनसब प्रदान किया गया। 1645 में, 1647 में लाहौर और 1649 में वह गुजरात का शासक बना।

1653 में कंधार में हुई पराजय से इसकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचा। फिर भी शाहजहाँ इसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखता था, जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था।

शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर औरंगजेब और मुराद ने दारा के काफिर (धर्मद्रोही) होने का नारा लगाया। दारा दो बार, पहले आगरे के निकट सामूगढ़ में (जून, 1658) फिर अजमेर के निकट देवराई में (मार्च, 1659), पराजित हुआ। अंत में 10 सितंबर 1659 को दिल्ली में औरंगजेब ने उसकी हत्या करवा दी।

दारा का बड़ा पुत्र औरंगजेब की क्रूरता का भाजन बना और छोटा पुत्र ग्वालियर में कैद कर दिया गया।

सूफीवाद और तौहीद के जिज्ञासु दारा ने सभी हिन्दू और मुसलमान संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध हैं जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है। वह प्रतिभाशाली लेखक भी था। सफ़ीनात अल औलिया और सकीनात अल औलिया उसकी सूफी संतों के जीवनचरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं। रिसाला ए हकनुमा (1646) और “तारीकात ए हकीकत” में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन है। “अक्सीर ए आज़म” नामक उसके कविता संग्रह से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है। दाराशिकोह में धर्मऔर वैराग्य का विवेचन हुआ है। 52 उपनिषदों का अनुवादउसने ‘”सीर-ए-अकबर (सबसे बड़ा रहस्य) में किया है।

दाराशिकोह की रचनाएँ-

दाराशिकोह ने स्वयं अपनी देखरेख में संस्कृत ग्रंथ – भगवत गीता और योगवशिष्ठ का फारसी में अनुवाद करवाया।

दारा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य – वेदों का संकलन है उसने वेदों को ईश्वरीय कृति माना है।

दाराशिकोह ने एक मौलिक पुस्तक मज्म-उल-बहरीन ( दो समुद्रों का संगम ) की रचना की। जिसमें हिन्दू और इस्लाम धर्म को एक ही ईश्वर की प्राप्ति के दो मार्ग बताया गया है।

दारा ने स्वयं तथा काशी के कुछ संस्कृत के पंडितों की सहायता से बावन उपनिषदों का सिर्र-ए-अकबर नाम से फारस में अनुवाद कराया।

दाराशिकोह के सूफीमत  से संबंधित ग्रंथ-

  • सफीनत-उल-औलिया-(विभिन्न परंपराओं के सूफियों का जीवन-वृत्त)
  • सकानत-उल-औलिया-(भारत की कादिरी परंपरा के सूफियों का जीवन वृत्त)
  • हसनात-उल-औलिया-(विभिन्न संतों की वाणी का संकलन)
  • तरीकत-उल-हकीकत-(आध्यात्मिक मार्ग के विभिन्न चरण)
  • रिसालाए – हक – नुमा- ( सूफी प्रथाओं का वर्णन)

राजनीतिक परिस्थितियों वश दारा में नास्तिकवाद की ओर रुचि हुई, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। बाल्यकाल से ही उसमें अध्यात्म के प्रति लगाव था। यद्यपि कुछ कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, तथापि दारा ने इस्लाम इस की मुख्य भूमि को नहीं छोड़ा। उसे धर्मद्रोही करार दिए जाने का मुख्य कारण उसकी सर्व-धर्म-सम्मिश्रण की प्रवृत्ति थी जिससे इस्लाम की स्थिति के क्षीण होने का भय था।

2017 में दिल्ली की ‘डलहौजी रोड’ का नाम बदलकर दारा शिकोह मार्ग कर दिया गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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