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चीन-जापान युद्ध (1894-95ई.)

चीन-जापान युद्ध

चीन-जापान युद्ध –1885 ई. की संधि से न तो कोरिया में चीन के प्रभाव में कोई कमी आई और न जापान की आशंका ही समाप्त हुई। जब रूस और इंग्लैण्ड भी कोरिया में सक्रिय रुचि लेने लगे तो जापान की आशंका और भी बढ गयी, क्योंकि कोरिया पर अपने सिवाय वह अन्य किसी भी विदेशी शासन को सहन करने को तैयार नहीं था।

जापान का आधुनिकीकरण

चीन-जापान युद्ध का प्रारंभ

चीन-जापान युद्ध

1893 ई. में कोरिया को तोंग-हक नामक एक सम्प्रदाय ने विद्रोह कर दिया, जिसे दबाने के लिये चीनी सेना कोरिया पहुँच गयी। संधि के अनुसार जापान ने भी अपनी सेना कोरिया में भेज दी।विद्रोह दबा दिया गया, परंतु अब चीनी और जापानी सेनाएँ कोरिया में आमने-सामने डट गयी। एक दिन जापानी युद्धपोतों ने चीनी जहाजों पर गोलाबारी कर दी। परिणामस्वरूप चीन-जापान युद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध दो असमान पक्षों के मध्य हुआ था। विशाल चीन का मुकाबला छोटे से जापान से था।

परंतु सालभर चलने वाले चीन-जापान युद्ध में चीन को स्थल और जल, दोनों ही क्षेत्रों में जापान के हाथों बुरी तरह से पराजित होना पङा। जापानी सेनाओं ने मंचूरिया तथा फारमोसा जीत लिया और खास चीन पर धावा बोल दिया। अंत में 1895 ई. में शिमोनेसकी की संधि के द्वारा इस युद्ध का अंत हुआ।

संधि के अनुसार चीन ने कोरिया को स्वतंत्र मान लिया और उस पर अपनी प्रभुसत्ता का दावा छोङ दिया जापान को चीन से मंचूरिया में लाओतुंग प्रायद्वीप, फार्मोसा और पेस्कार्डोस प्राप्त हुये। चीन ने अपने चार नए बंदरगाह जापानी व्यापार के लिये खोल दिये। चीन ने जापान को क्षतिपूर्ति देने का भी वचन दिया और उसकी अदायगी न होने तक वे हाई वे बंदरगाह जापान के कब्जे में रहने दिया।

चीन-जापान युद्ध में चीन पर जापान की विजय एक युगांतकारी घटना थी और इस घटना ने विश्व राजनीति को भी प्रभावित किया। इससे प्रभावित होकर इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि ने 1858 की पुरानी संधियों में जापान के संशोधन की बात को मान लिया, जिससे जापान को उन अपमानजनक संधियों से मुक्ति मिल गयी, परंतु चीन में जापान की सफलता से रूस चिन्तित हो उठा, क्योंकि मंचूरिया में जापानी प्रभाव रूस के लिये खतरनाक सिद्ध हो सकता था।

अतः रूस ने फ्रांस तथा जर्मनी के साथ मिलकर हस्तक्षेप किया और जापान को चेतावनी दी गयी कि वह लाओतुंग प्रायद्वीप वापस चीन को लौटा दे।जापान तीन पश्चिमी देशों की संयुक्त माँग को ठुकराने की स्थिति में नहीं था, अतः उसे विवश होकर लाओतुंग प्रायद्वीप चीन को वापस लौटान पङा।फिर भी जापान को इससे काफी लाभ पहुँचा अब उसे कोरिया का द्वार मिल गया।

चीन-जापान युद्ध

फार्मोसा और पेस्काडोर्स की प्राप्ति से उसका साम्राज्य बढ गया। चीन से प्राप्त क्षतिपूर्ति से उसकी आर्थिक व्यवस्था मजबूत हो गयी और चीन पर प्राप्त विजय ने उसकी सैनिक श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया।

इंग्लैण्ड के साथ संधि

चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित करके लाओतुंग प्रायद्वीप प्राप्त किया था, परंतु पश्चिमी संसार की तीन बङी शक्तियों के सामूहिक विरोध के कारण उसे अपनी विजय के पुरस्कार से वंचित हो जाना पङा। जापान अपनी इस कूटनीतिक पराजय को नहीं भूल पाया और अब उसने एक शक्तिशाली मित्र की आवश्यकता का अनुभव किया ताकि भविष्य में उसे पुनः कूटनीतिक पराजय का सामना न करना पङे। उधर यूरोप में इंग्लैण्ड भी इस समय अकेला पङ गया था।

एक तरफ जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली का त्रिगुट बन गया था और दूसरी तरफ फ्रांस और रूस का गठबंधन हो गया था। इंग्लैण्ड का दोनों ही गुटों से विरोध चल रहा था, अतः उसे भी अपने अकेलेपन को समाप्त करने के लिये एक मित्र की तलाश थी।

चीन-जापान युद्ध के फलस्वरूप 1902 ई. में इंग्लैण्ड और जापान के मध्य समानता के आधार पर संधि हो गयी। इस संधि के तत्कालीन राजनीतिज्ञों को भी विस्मय में डाल दिया, क्योंकि कहाँ विश्व का एक शक्तिशाली राष्ट्र इंग्लैण्ड और कहाँ एशिया का एक छोटा सा नवोदित राष्ट्र जापान। दोनों में जमीन आसमान का अंतर था। जो भी हो, इस संधि से अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर जापान का स्थान बहुत ऊँचा हो गया और अब वह पाश्चात्य राष्ट्रों की बराबरी का दम भरने लगा। अब उसकी साम्राज्य विस्तार की लालसा भी जाग उठी।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : चीन-जापान युद्ध

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