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जापान में आधुनिकीकरण

जापान में आधुनिकीकरण

जापान में आधुनिकीकरण – शोगून की समाप्ति और मेजी पुनर्स्थापना, दोनों घटनाएँ अत्यन्त असाधारण ढंग से सम्पन्न हुई, लेकिन इन घटनाओं ने जापान को नवजीवन प्रदान किया, जिससे वह कुछ ही वर्षों में एक आधुनिक राज्य बन गया। जापान के लोगों में विदेशियों के प्रति विरोध की भावना विद्यमान थी और वे किसी तरह विदेशियों को अपने राज्य से निकाल बाहर कर देना चाहते थे।

जापान में आधुनिकीकरण

किन्तु वे चीन की हो रही दुर्दशा से भी परिचित थे और इसलिये वे अनुभव कर रहे थे, कि इन विदेशियों से अपने देश की रक्षा करने का एकमात्र उपाय उन्हीं के साधनों, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी और सैन्य संगठन को अपनाना है। जापानियों की धारणा थी, कि जापान स्वयं एक आधुनिक शक्तिशाली राज्य बनकर ही पाश्चात्य साम्राज्यवाद का मुकाबला कर सकता है। अतः जापान में देश के आधुनिकीकरण के लिये एक प्रबल आंदोलन आरंभ हो गया, जिसके फलस्वरूप देश के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन हुए और जापान का कायाकल्प हो गया।

उन्नीसवीं सदी का जापान

जापान में आधुनिकीकरण : सामंती प्रथा का अंत

जापान में आधुनिकीकरण में सामंती प्रथा का अंत भी महत्त्वपूर्ण कार्य था। मेजी पुनर्स्थापना के पूर्व जापान में सामंती प्रथा प्रचलित थी, किन्तु 1868 ई. की रक्तहीन क्रांति एवं मेजी पुनर्स्थापना के बाद इस व्यवस्था का बना रहना कठिन हो गया। नवीन परिस्थितियों में में सम्राट के समक्ष प्रमुख प्रश्न यह था, कि देश में एक व्यवस्थित और शक्तिशाली सरकार की स्थापना की जाय और संपूर्ण जापान को एक केन्द्रीय शासन के सूत्र में आबद्ध कर दिया जाय।

जापान में आधुनिकीकरण

जापान में सामंतवाद का अंत अनेक चरणों में पूरा हुआ। राष्ट्रीय भावना से अभिभूत होकर अनेक सामंत स्वयं सम्राट के समक्ष नत मस्तक होने लगे। 5 मार्च, 1869 को सातसूमा, चोशू, तोसा और हीजन के डैम्पों ने एक आवेदन-पत्र द्वारा अपनी रियासतें सम्राट को समर्पित कर दी और केन्द्रीय शासन की अधीनता स्वीकार कर ली। सम्राट ने उनकी सारी सामंती सुविधाएँ समाप्त कर दी। अन्य डैम्पों ने भी ऐसा ही किया और जो कुछ शेष रह गये थे, उन्हें 25 जुलाई को सम्राट ने ऐसा करने का आदेश दिया। यद्यपि सारी रियासतें सम्राट के अधीन हो गयी, किन्तु जागीरों पर से सामंती शासन का अंत नहीं हुआ।

रियासतों को जिले का रूप दे दिया गया और उनमें उनके डैम्पों को ही प्रशासक नियुक्त कर दिया गया तथा उन पर केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण को कङा कर दिया गया। इससे जागीरों में रहने वाली प्रजा यह अनुभव करने लगी कि सम्राट का उन पर प्रत्यक्ष शासन है। कुल आय का दसवाँ हिस्सा डैम्पो का वेतन निश्चित कर दिया गया और उनके लिये वर्ष में तीन महीने राजधानी टोक्यो में रहना अनिवार्य कर दिया गया। 29 अगस्त, 1871 ई. को सरकार ने सामंती रियासतों (जिसका नाम अब हान था) को पूरी तरह समाप्त करने का फैसला कर लिया।

संपूर्ण देश को तीन शहरी प्रदेशों – ओसाका, क्योतो और टोक्यो व 72 अन्य देशों में बाँटकर उन्हें केन्द्र द्वारा नियुक्त गवर्नरों के अधीन कर दिया। प्रदेशों (केन) को जिलों (गून), शहर (कू), कस्बा (माची) और गाँव (मूरा), इन भागों में बाँटा गया और गवर्नरों को इनके प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार दे दिया गया।

बाद में सामंतों के भत्तों में कमी कर दी गयी। 1873 ई. में सरकार ने छोटे सामंतों को कहा कि वे अपनी वार्षिक आमदनी का चार या छः गुना नकद और आधा सरकारी हुण्डियों में एक मुश्त लें। 1876 ई. में एक कानून द्वारा सभी भत्ते सरकारी हुण्डियों में इस तरह बदल दिये गये, कि ज्यादा भत्ते पाने वाले को कम और कम भत्ता पाने वाले को ज्यादा मुआवजा मिले। मिले। इस प्रकार सदियों से चली आ रही सामंती प्रथा का अंत हो गया और संपूर्ण देश एकता के सूत्र में बंध गया। यह एक महान क्रांति थी।

जापान में आधुनिकीकरण : सैनिक सुधार

जापान में आधुनिकीकरण में सैनिक सुधारों का भी महत्त्वपूर्ण हाथ था। जापान की सैनिक व्यवस्था सामंती प्रथा पर आधारित थी, लेकिन जब जापान में सामंती व्यवस्था का अंत कर दिया गया तब सेना के संगठन में भी परिवर्तन करना अनिवार्य हो गया। अब तक जापानी सेना का निर्माण सामूराई लोगों द्वारा होता आया था।

सामूराई लोग सामंतों की सेवा में रहकर सैनिक सेवा प्रदान करते थे। सेना में प्रवेश केवल इसी वर्ग तक सीमित था अर्थात् सेना में प्रवेश केवल सामूराई वर्ग को ही दिया जाता था, जन साधारण को सैनिक सेवा करने का कोई अवसर उपलब्ध नहीं होता था, लेकिन जब सामंती प्रथा का अंत हो गया तब सामूराई वर्ग के इस एकाधिकार का भी अंत हो गया। जापान के सभी वर्गों के लिये सेना में भर्ती के लिये दरवाजा खोल दिया गया। इस परिवर्तन के कारण अब जापानी सेना का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया।

1872 ई. में सैन्य संगठन के संबंध में दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया गया। इस वर्ष एक राज्याज्ञा द्वारा जापान में सैनिक सेवा को अनिवार्य घोषित कर दिया गया। अब जापान के नागरिकों के लिये सैनिक शिक्षा प्राप्त करना तथा निश्चित समय तक सैनिक सेवा करना अनिवार्य हो गया। इस परिवर्तन का जापान के राष्ट्रीय जीवन पर दूरगामी प्रभाव पङा। इस परिवर्तन के कारण ही जापान में सैनिकवाद की उन्नति हुी और जापान साम्राज्यवादी युद्धों में उलझ गया।

जापान में आधुनिकीकरण : कानूनी समानता की स्थापना

जापान में आधुनिकीकरण में कानूनी समानता की स्थापना करना भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।मेजी पुनर्स्थापना के बाद सामंती प्रथा की समाप्ति के साथ ही सामंतों को जन सामान्य की स्थिति में लाना अनिवार्य हो गया था, क्योंकि विशेषाधिकारों की स्थिति अधिक दिनों तक नहीं चल सकती।

1869 ई. में सरकारी और व्यावसायिक नौकरियों पर से वर्ग विषयक पाबंदियाँ हटा ली गयी।1870 ई. में सामान्य जनता को पारिवारिक नाम धारण करने का अधिकार मिल गया जो पहले केवल सामंतों तक ही सीमित था। 1871 ई. में सरकार ने अपनी एक राज्याज्ञा जारी कर कहा, कि जो सामंत या सामूराई इन तलवारों को छोङना चाहें वे ऐसा कर सकते हैं।

1876 ई. में एक कानून पारित कर तलवार रखने पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे सामंती प्रतिष्ठा और पृथकता का दिखावटी चिह्न समाप्त हो गया। अब ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं रहा, जो सामंतों को प्राप्त हो और सामान्य जनता को प्राप्त न हो। इस प्रकार जापान में कानूनी समानता की स्थापना कर दी गयी।

जापान में आधुनिकीकरण के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य
जापान में आधुनिकीकरण – नई जीवन शैली का विकास

शिक्षा के पश्चिमीकरण, पत्रकारिता का विकास तथा विदेशों से आवागमन के कारण जापान की जीवन शैली एवं संस्कृति के क्षेत्र में क्रांतिकारिी परिवर्तन दिखाई देने लगे। विदेशी व्यापार में लगे जापानी लोग विदेशी पोशाक पहनने लगे। तिनकों का टोप लगाए, सफेद सूती दस्ताने, हाथ में बेंत लिये और एङीदार जूते पहिने हुए अमरीकी नमूने के सूट पहनने लगे। 1872 ई. में सभी पदाधिकारियों के लिये पाश्चात्य वेष भूषा धारण करना अनिवार्य कर दिया गया।

हाथ मिलाकर अभिवादन करने का रिवाज प्रचलित हुआ। औरतें भी विक्टोरियन ढंग के कपङे पहनने लगी। शरीर सौन्दर्य पर भी ध्यान दिया जाने लगा। पूर्व में दाँतों को काला करने व भौंहें मुँडवाने का रिवाज था और यह विवाहित जापानी महिलाओं में विशेष रूप से प्रचलित था, लेकिन 1873 ई. के बाद दाँतों की चमक-दमक पर विशेष ध्यान दिया गया और भौंहें मुँडवाने की प्रथा बंद हो गयी। दांतों पर ब्रुश मंजन करने का प्रचलन इतना बढ गया कि जापान में टूथ पेस्टों की सर्वाधिक खपत होने लगी।

जापान में सर्वप्रथम 1887 ई. में बिजली का प्रवेश हुआ, तब से बिजली का प्रयोग बहुत बढ गया। जापान में पश्चिमी शैली के मकान बनने शुरू हो गये तथा मकानों की भीतरी सजावट की शैली भी यूरोपीय हो गयी। शहरों में बङी मात्रा में सवारियाँ चलने लगी। 1869 ई. में हाथ से खींचने वाले हल्के पहियों की गाङी का प्रचलन हुआ, जिसे जीन रीकीशा (मानव शक्ति से चलने वाली गाङी) कहते थे। आजकल का साइकिल रिक्शा इसी से निकला है।

इन गाङियों पर लोग खूब घूमने लगे। 20 वीं शताब्दी में मोटर-गाङियों का अंत हो गया। 1880 ई. में बॉल रूम में यूरोपीय ढँग से नाचने का रिवाज भी बढा। जापान ने अपनी प्राचीन ललित कलाओं को भी त्याग दिया और उनके स्थान पर मशीनों द्वारा छपी हुई तस्वीरों का आयात किया जाने लगा, यहाँ तक कि खाने-पीने के बर्तनों तक का यूरोपीकरण हो गया।

धार्मिक जीवन में परिवर्तन

मेजी पुनर्स्थापना के पूर्व शोगूनों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया, जिससे जापान के प्राचीन शिन्तो धर्म का हास हुआ तथा बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि हो गयी, किन्तु मेजी पुनर्स्थापना के बाद जापान में धार्मिक जीवन में एक नवीन जागृति लाने का प्रयास किया गया। बौद्ध धर्म के स्थान पर अब प्राचीन शिन्तों धर्म का पुनरुद्धार कर उसे लोकप्रिय बनाया जाने लगा। यह जापान का राजधर्म बन गया।

शिन्तो धर्म में सम्राट के प्रति आदर का विशिष्ट स्थान था तथा विविध प्रकार की प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों की व्यसव्था भी थी। इस धर्म के माध्यम से राष्ट्रीयता के विकास में सहायता मिली। लोग सम्राट के प्रति पहले से अधिक राजभक्ति और सम्मान प्रदर्शित करने लगे। लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने में धर्म का उपयोग किया गया, जिससे जापानियों में राष्ट्रीय चेतना और एकता की भावना उत्पन्न हुई।

शिन्तों धर्म के पुनरुद्धार के बाद भी बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या काफी थी। बौद्ध धर्म के अलावा कन्फ्यूशियस तथा लाओत्से के अनुयायी भी विद्यमान थे। मेजी पुनर्स्थापना के प्रारंभिक काल में बौद्ध धर्म को दबाने का प्रयास किया गया तथा उस पर कुछ प्रतिबंध भी लगा दिये गये थे, फिर भी बौद्ध धर्म के प्रभाव में कोई विशेष कमी नहीं आई। पश्चिमी देशों से संधियाँ कर लेने के बाद ईसाई धर्म प्रचारकों को भी धर्म प्रचार की अनुमति दे दी गयी। फलस्वरूप जापान में ईसाइयों की संख्या बढने लगी।

जापान में आधुनिकीकरण का परिणाम

इन सभी बातों से स्पष्ट है, कि मेजी पुनर्स्थापना के बाद जापानी जीवन का कायापलट हो गया। खाने-पीने, रहने-सहने, पहिनने, ओढने, सोचने-विचारने तथा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन की सारी क्रियाएँ तेजी से बदल गई और जापान का एक आधुनिक देश के रूप में विश्व के रंगमंच पर आगमन हुआ। जापान के इस आधुनिकीकरण के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले।

जिस समय पाश्चात्य देशों ने बलात जापान का दरवाजा खोला था, उस समय जापान को विवश होकर अनेक असमान संधियों पर हस्ताक्षर करने पङे थे, जिनके परिणामस्वरूप जापान की प्रभुसत्ता नाममात्र की रह गयी थी। औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप जापान अब एक शक्तिशाली राष्ट्र बन गया था। वह किसी भी क्षेत्र में किसी पाश्चात्य देश से कम नहीं था। ऐसी स्थिति में जापान ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देशों से अनुरोध किया कि वे असमान संधियों को निरस्त करके समानता के स्तर पर दूसरी संधि करें। जापान ने क्षेत्रातीत अधिकार को समाप्त करने की विशेष रूप से माँग की। पश्चिमी देश अब जापान ने क्षेत्रातीत अधिकार को समाप्त करने की विशेष रूप से माँग की।

पश्चिमी देश अब जापान की इन माँगों की उपेक्षा नहीं कर सकते थे, क्योंकि जापान अब काफी शक्तिशाली हो गया था। अतः उन सभी असमान संधियों में संशोधन किया गया और जापान में विदेशियों के सारे विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गये। पाश्चात्य जीवन शैली को अपनाते हुये जापान इस समय जिस द्रुत गति से सभी क्षेत्रों में उन्नति कर रहा था, उसके फलस्वरूप वह पूर्णतया पाश्चात्य देशों के समकक्ष बन गया और अब पाश्चात्य देशों के लिये संभव नहीं रहा कि वे उसके साथ वही व्यवहार करें जो चीन व अन्य एशियाई देशों के साथ किया जाता था।

आधुनिकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम जापानी साम्राज्यवाद का विकास था। सैनिक दृष्टि से जापान पश्चिमी देशों के समकक्ष आ गया, अतः यह स्वाभाविक था, कि वह भी यूरोपीय राज्यों व अमेरिका का अनुसरण कर साम्राज्यवाद के मार्ग पर आग्रसर हो।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : जापान में आधुनिकीकरण

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