इतिहासमध्यकालीन भारत

मंगोल आक्रमणों का प्रभाव

मंगोल आक्रमणों का प्रभाव – मंगोल आक्रमणों ने परिस्थितियों में बदलाव उत्पन्न किए जिसका असर मौजूदा संस्थाओं और नीतियों पर भी पङा। दिल्ली सुल्तानों के लिये उत्तर-पश्चिमी सीमा को नियंत्रण में रखना आवश्यक था क्योंकि इससे उनको मध्य एशिया और मध्य-पूर्व के साथ व्यापार संपर्क बनाए रखने में मदद मिलती थी। इस क्षेत्र की जलवायु की दशा घोङों के पालन के लिये उपयुक्त थी। निरंतर मंगोल आक्रमण के दूरगामी प्रभाव भी पङ सकते थे। उपजाऊ क्षेत्रों का नाश हो गया होता जिससे इस क्षेत्र का सामाजिक आर्थिक ढाँचा नष्य हो जाता । अंततः दिल्ली के सुल्तानों को अपनी राजनीतिक शक्ति और स्थिति भर सुरक्षित करनी थी।

प्रारंभिक अवस्थाओं में मंगोल आक्रमण लूटने के उद्देश्य से होते थे। लेकिन मंगोल साम्राज्य के विभाजन और विघटन के बाद उनकी लूटने की इच्छा शासन करने की इच्छा में बदल गई। ममलूक शासकों में सुल्तान गयासुद्दीन बलबन को मंगोलों के साथ लङाई करने का काफी अनुभव था। उसने ईरान के इल खानों के साथ भी अपने राजनयिक संबंध बनाए रखे थे। चंगेज खाँ की तरह बलबन ने भी अपनी स्थिति सुदृढ करने के लिये अपने वंश को ईरान के अफारमियाब विख्यात वीरों से जोङ दिया। शम्सी अमीरों के एकाधिकार को तोङने के लिये उसने उच्च परिवारों के उन सदस्यों को भी विभिन्न पदों पर नियुक्त किया जो अपने-अपने कार्यों में निपुण थे और साथ ही सुल्तान के प्रति भी वफादार थे। उसने दरबार के नियमों और कार्यवाही के लिये एक मानदंड निर्धारित किया और निष्पक्ष न्याय पर विशेष जोर दिया। अपने सैनिकों को चुस्त रखने और उनकी तैयारी के लिए वह नियमित रूप से शिकार अभियानों पर जाता था। अपने योग्य अफसरों के अंतर्गत घुङसवार एवं प्यादों को रखकर उसने सेना का पुनर्गठन किया। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये उसने व्यापारिक मार्गों को डाकुओं की लूट से मुक्त कराया। साथ ही जीते हुए क्षेत्रों में सेना के लिये मजबूत किलेंबंदी की और नियमित तथा सही सूचना के प्रवाह को बनाए रखने के लिये खुफिया सिपाहियों को नियुक्त किया। अपनी आंतरिक स्थिति मजबूत करने के बाद उसने सीमा क्षेत्रों में किलों का पुनर्निर्माण करवाया, अपनी सेना में मंगोल सैनिकों और अफसरों को शामिल किया तथा जिन शहरों में और जिन लोगों ने भी उसका विरोध किया उन्हें वह वैसे ही तबाह करने में नहीं हिचकिचाया जैसे चंगेज खाँ और उसके उत्तराधिकारियों ने किया था।

खलजी और तुगलक सुल्तानों ने भारतीय समाज के सभी तत्वों को धर्म और जाति से ऊपर उठाकर उनकी योग्यता और सुल्तान के प्रति वफादारी के आधार पर राज्य का अंग बनाया। नई शासक श्रेणी ने एक केंद्रबद्ध राज्य का ढाँचा स्थापित करने में मदद की। इश तरह मंगोलों के विरुद्ध राज्य की सुरक्षा के लिये यह सभी तत्वों का एक संगठित और सफल प्रयत्न था। इल्तुतमिश से मुहम्मद तुगलक तक, इन सभी शासकों में एक चीज सामान्य थी, और वह थी मंगोलों से संघर्ष करने का उनका प्रत्यक्ष अनुभव। मंगोलों के ऊपर विजय से न केवल उनकी स्थिति सुरक्षित हुई बल्कि इस सफलता ने उनको उच्चतर स्थिति में पहुँचाया।

शासक वर्ग की उन्नति अथवा अवनति लङाई में उनके प्रदर्शन पर निर्भर करती थी। मंगोलों के ऊपर विजय का अर्थ था सूबेदारी और अक्ता की प्राप्ति। उनमें से कुछ अमीरों ने ज्यादा अधिकार और सुविधाओं की माँग की भी थी, और जब वह माँग मंजूर नहीं हुई , तो उनके पास खुद को स्वतंत्र घोषित करने या मंगोलों से मदद माँगने का विकल्प खुला था। जफर खाँ जैसे अमीरों की लगातार विजयों ने अलाउद्दीन को उसे अपना प्रतिस्पर्धी मानने के लिये बाध्य किया और उसने उसे मार डालने की योजनाएँ भी बनाई, हालाँकि वह मरा मंगोलों से लङते हुए ही।

अलाउद्दीन ने मंगोलों के नियमित हमलों का सामना करने के लिए कुछ खास उपाय भी किए थे। उसने सीमावर्ती किलों और दिल्ली के किलों की मरम्मत के अलावा और नए किलों का निर्माण भी करवाया था। किलों को योग्य और कुशल अधिकारियों के अंतर्गत रखा गया। सुरक्षा की पहली पंक्ति के रूप में बङे पैमाने की मोर्चाबंदी की गयी, खाइयाँ खुदवाई गयी और शहरी दीवारों का निर्माण करवाया गया। नए आधार पर सेना की भरती की गयी। सेना को ज्यादा वेतन देने के बजाए उसने बाजार नियंत्रण पद्धति आरंभ की, आवश्यक वस्तुओं की नई शुल्क नीति बनाकर कीमतें तय कीं, कीमतें कम रखने के लिये राज्य अन्न भंडार और राशनिंग शुल्क नीति बनाकर कीमतें तय की, कीमतें कम रखने के लिये राज्य अन्न भंडार और राशनिंग व्यवस्था स्थापित की, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया और इस तरह से न केवल कम वेतन पाने वाले सैनिकों को, बल्कि दिल्ली की आम जनता को भी पर्याप्त राहत प्रदान की। घोङों पर दाग लगाने की प्रणाली की शुरुआत करके उसने सेना की घुङसवार टुकङी को पूरी तरह से ठीक किया। उन्हें वेतन का भुगतान घोङों की संख्या के आधार पर नगद किया जाता था और इसके अलावा अन्य दूसरे भत्ते भी दिए जाते थे। उसने हिंदू अफसरों को भी सेना में भर्ती किया और मंगोलों तथा भारतीय मुसलमानों को प्रशासनिक पद देकर राज्य के प्रबंध में शामिल किया।

तारमशिरीन के लौट जाने के बाद, मुहम्मद तुगलक ने खुरासान और कराची का अभियान आरंभ किया, लेकिन दोनों का परिणाम उसकी नाकामयाबी ही रहा। मध्यपूर्व के इस्लामी राज्यों में मंगोल आक्रमणों के फलस्वरूप बहुत से प्रतिष्ठित शास्त्रज्ञों, कवियों, इतिहासकारों, रहस्यवादियों, सूफी शेखों, धार्मिक नेताओं और बहुत से प्रमुख परिवारों को वहाँ से भागने पर विवश होना पङा। इन लोगों ने दिल्ली के सुल्तानों से पनाह और शाही संरक्षण माँगा। सूफी शेखों ने हिंदू दर्शन और धर्म का गहरा अध्ययन किया और इस क्रम में हिंदुओं को इस्लाम के वास्तविक सिद्धांतों और पैगंबर की शिक्षाओं के बारे में समझाया।

मंगोल आक्रमणों का राजधानी दिल्ली शहर भी जबरदस्त प्रभाव पङा। बरनी के अनुसार दिल्ली इतनी बङी और समृद्ध हो गयी थी कि वह बगदाद और काहिरा की प्रतिद्वंद्वी थी। जलालुद्दीन खलजी के काल में बहुत से मंगोलों ने दिल्ली में ही रहने का फैसला किया था और इस कारण किलूगढी, गयासपुर और इंद्रपत में मंगोलपुरी के नाम से विशेष बस्तियाँ स्थापित हुई थी।

इस्लामी जगत के पूर्वी भाग से भारत में देशांतरण करते हुए कारीगर और व्यापारी अपने साथ अपना शिल्प, तकनीक और कार्य प्रणालियाँ भी लाए थे। फलतः वे कागज और निर्माण उद्योग – जैसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में बदलाव लाए। अरबों, मिस्त्र निवासी ईरानियों, तुर्कियों, मंगोलों और सय्यदों के अनेक दौरों में देशांतरण हुए और वे अपनी-अपनी व्यक्तिगत संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाज अपने साथ लाए जिसने भारतीय संस्कृति को बङे पैमाने पर समृद्ध बनाया। इन व्यक्तियों ने समाज में अपने उच्च स्थिति बनाई तथा शहरी जन समुदाय में भौगोलिक और मानव जातीय विभाजन पैदा किया जिसने शहरों के निष्पक्ष दृष्टिकोण को बदल डाला।

सीमा क्षेत्रों में सीमा के उस पार से इन व्यक्तियों की लगातार हलचल से जनसंख्या अस्थिर बनी रही। कोई भी सामाजिक वर्ग प्रमुख स्थिति बनाने में सफल नहीं हुआ। भारतीय सुल्तानों ने सीमावर्ती जातियों को नियंत्रण में रखने के या उनसे दोस्ती करने के बराबर प्रयास किए। ये जातियाँ कई प्रकार के हथियार बनाने में निपुण थी जो शत्रु को काफी क्षति पहुँचाते थे। ये लोग मंगोलों की युद्ध संबंधी रणनीति और उनके तौर तरीकों से भी बङी अच्छी तरह से परिचित थे।

मंगोल आक्रमण के फलस्वरूप भारत में राजनीति, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में इजतिहाद विचारधारा का पर्दापरण हुआ। इसने भी कुछ हद तक विविध परिवर्तनों का मार्गदर्शन किया। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात थी इजतिहाद विचारधारा के भारत में पदार्पण से स्वतंत्र तर्कवाद की राजनीतिक विचारधाराओं के पनपने में सहायता मिली।

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