इतिहासमध्यकालीन भारतविजयनगर साम्राज्य

विजयनगर का शासक सदाशिव | Vijayanagar ka shaasak sadaashiv | Sadashiva, the ruler of Vijayanagara

सदाशिव (1542-1572 ई.) – सदाशिव के शासनकाल में वास्तविक सत्ता राम राय के हाथ में रही। उसने साम्राज्य के शासन में बुनियादी परिवर्तन किए। उसने पुराने निष्ठावान एवं विश्वासपात्र अधिकारियों को निकालकर अपने विश्वासपात्र अधिकारियों को निकालकर अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों को नियुक्त करना प्रारंभ किया। इसके साथ ही उसने विजयनगर की सेना में बहुत संख्या में मुसलमानों की भरती प्रारंभ की। विजयनगर की पारंपरिक नीतियों के विपरीत उसने समकालीन दक्षिण की मुस्लिम सल्तनतों की अंतर्राज्यीय राजनीति में भी हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया। विजयनगर ने अब तक कभी भी किसी राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया था। राम राय अपने संपूर्ण शासनकाल में किसी न किसी राज्य के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने में व्यस्त रहा जो अंततः विजयनगर साम्राज्य के लिये घातक सिद्ध हुआ। परंतु राम राय एक महान राजनीतिज्ञ और कुशल सेनापति था तथा उसने अच्युतदेवराय के शासन के अंतिम दिनों में विद्यमान विनाशकारी स्थिति से कुछ समय के लिये विजयनगर साम्राज्य की रक्षा की। इस कार्य में उसके दो भाइयों (तिरूमल और वेंकटाद्रि) ने असीम सहायता की।

सदाशिव

सदाशिव के राज्यारोहण के पहले वर्ष में उसने त्रावणकोर के शासक को दंडित करने और पुर्तगालियों के सत्ता विस्तार एवं उनके द्वारा हिंदू मंदिरों की लूट को रोकने के लिये सेनाएँ भेजी। राम राय ने साम्राज्य के आंतरिक भागों में सर्वत्र विरोधी शक्तियों का दमन किया। साथ ही राम राय एवं पुर्तगालियों के संबंध बङे परिवर्तनशील रहे। यद्यपि 1546 ई. में उसने पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक समझौता कर लिया तथा उसने उनकी धर्म-परिवर्तन एवं साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं को सफल नहीं होने दिया।

राम राय ने अपनी अधिकांश शक्ति मुस्लिम सल्तनतों के विरुद्ध युद्ध करने में समाप्त की। इन आक्रामक गतिविधियों का प्रारंभ दक्षिणी सल्तनतों ने ही किया था। सदाशिव के शासन के पहले ही वर्ष में इब्राहीम आदिलशाह ने अदोनी के किले पर आक्रमण कर दिया। वेंकटाद्रि ने प्रारंभ में तो आदिलशाही सेनाओं को पीछे हटने को विवश किया, पर पुनः आकस्मिक आक्रमण के कारण उसे आदिलशाह से समझौता करना पङा। लेकिन इब्राहीम आदिल इससे भी शांत नहीं हुआ और उसने 1542-43 ई. में अहमदनगर के बुरहान निजामशाह के साथ मिलकर विजयनगर पर आक्रमण करते हुये उसके कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अब राम राय को विजयनगर की रक्षात्मक नीति को छोङने के लिये बाध्य होना पङा और उसने शक्ति एवं हीरे से हीरे को काटने अर्थात् एक राज्य को दूसरे राज्य के साथ भिङाने की कूटनीति का सहारा लिया। उसने बुरहान निजामशाह को अपनी ओर मिलाया और तीन लगातार युद्धों में आदिलशाह को पराजित करते हुए उसकी शक्ति को पूर्णतः कुचल दिया। 1552 ई. तक विजयनगर ने रायचूर और मुद्गल दोनों पर अधिकार कर लिया। परंतु 1553 ई. में बुरहान निजामशाह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हुसैन निजामशाह के शासनकाल में स्थिति में पुनः परिवर्तन आया। उसने 1558 ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान इब्राहीम कुतुबशाह के साथ मिलकर बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। इस पर बीजापुर ने राम राय से सहायता की याचना की। राम राय ने अपने भूतपूर्व शत्रु को आवश्यक सैनिक सहायता प्रदान कर, आक्रामक सेनाओं को पीछे हटने पर विवश किया और 1559 ई. में अहमदनगर को एक बहुत अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने पर बाध्य भी किया। इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि 1560 ई. तक दक्षिण भारत में विजयनगर की स्थिति सर्वोच्च हो गयी थी। अहमद नगर, गोलकुंडा और बीदर तीनों की शक्ति को कुचल दिया गया था और बीजापुर का अस्तित्व विजयनगर की दया पर आश्रित था।

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