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चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के

अपने पिता समुद्रगुप्त के समान ही चंद्रगुप्त द्वितीय ने भी विशाल साम्राज्य के लिये अनेक प्रकार के सिक्कों का प्रचलन करवाया। उसकी कुछ मुद्रायें पूर्णतया मौलिक एवं नवीन थी। स्वर्ण के अलावा उसकी रजत एवं ताम्र मुद्रायें भी प्राप्त हुई हैं।

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चंद्रगुप्त की स्वर्ण मुद्राओं का विवरण इस प्रकार है-

धनुर्धारी प्रकार –

इस प्रकार के सिक्के सबसे अधिक मिलते हैं। इनके मुख भाग पर धनुष-बाण लिये हुये राजा की मूर्ति, गरुङध्वज तथा मुद्रालेख देवश्रीमहाराजाधिराजश्रीचंद्रगुप्तः अंकित है। पृष्ठ भाग पर बैठी हुयी लक्ष्मी के साथ-2राजा की उपाधि श्रीविक्रम उत्कीर्ण है।

छत्रधारी प्रकार-

इसके अंतर्गत मुख्यतः दो प्रकार के सिक्के सम्मिलित हैं। मुख भाग पर आहुति डालते हुये राजा खङा है। वह अपना बाँया हाथ तलवार की मुठिया पर रखे हुये है। राजा के पीछे एक बौना नौकर उसके ऊपर छत्र ताने हुए खङा है। इस ओर दो प्रकार के लेख मिलते हैं-1) महाराजाधिराज श्रीचंद्रगुप्तः 2.) क्षितिमवजित्य सुचरितैः दिवं जयति विक्रमादित्यः (महाराजाधिराज श्री चंद्रगुप्त विक्रमादित्य पृथ्वी को जीतकर उत्तम कार्मों द्वारा स्वर्ग को जीतता है।)

पर्यंक प्रकार-

इस प्रकार के सिक्के बहुत ही कम प्राप्त हुये हैं। इनके मुख भाग पर राजा वस्र एवं आभूषण धारण किये हुए पलंग के नीचे रूपाकृति उत्कीर्ण है। रूपाकृति उसके शारीरिक एवं नैतिक गुणों का सूचक है।

सिंह-निहन्ता प्रकार-

इस प्रकार के सिक्कों के मुख भाग पर सिंह को धनुष बाण अथवा कृपाण से मारते हुये राजा की आकृति उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर सिंह पर बैठी हुई देवी दुर्गा की आकृति विभिन्न दशाओं में खुदी हुई है। इस प्रकार के सिक्के कई वर्ग के हैं, जिन पर भिन्न-2 मुद्रालेख मिलते हैं। जैसे – नरेन्द्रचंद्र प्रथितदिव जयत्यजेयो भुवि सिंह-विक्रमः (नरेन्द चंद्र,पृथ्वी का अजेय राजा सिंह विक्रम स्वर्ग को जीतता है।)इन सब के अलावा कुछ मुद्राओं पर देवश्री महाराजाधिराजश्रीचंद्रगुप्तः अथवा महाराजाधिराजश्रीचंद्रगुप्तः भी अंकित है। इस प्रकार के सिक्कों से अन्य बातों के साथ-2 उसकी गुजरात और काठियावाङ के शकों की विजय भी सूचित होती है।

अश्वारोही प्रकार-

इसके मुख भाग पर घोङे पर सवार राजा की आकृति तथा मुद्रालेख परमभागवत महाराजाधिराज अंकित है। पृष्ठ भाग में बैठी हुई देवी साथ-2 अजितविक्रमः खुदा हुआ है।

उपर्युक्त सभी सोने के सिक्के हैं। इन सिक्कों के अलावा चंद्रगुप्त द्वितीय ने चाँदी तथा ताँबे के सिक्के भी चलाये थे।

ताँबे के सिक्कों में कई प्रकार के सिक्के प्राप्त हुये हैं । इन सिक्कों पर श्रीविक्रम अथवा श्रीचंद्र तथा पृष्ठ भाग पर गरुङ की आकृति के साथ-2 लेख मिलते हैं – परमभागवतमहाराजाधिराजश्रीचंद्रगुप्तविक्रमादित्य, श्रीगुप्तकुलस्यमहाराजाधिराजश्रीगुप्तविक्रामांकाय।

ताँबे के सिक्के भी कई प्रकार के हैं। इनके मुख भाग पर श्रीविक्रम अथवा श्रीचंद्र तथा पृष्ठ भाग पर गरुङ की आकृति के साथ-2श्रीचंद्रगुप्त अथवा चंद्रगुप्त खुदा हुआ है। स्वर्ण सिक्कों को दीनार तथा रजत सिक्कों को रुप्यक (रूपक) कहा जाता था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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