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चोल काल में सैन्य संगठन कैसा था

चोल राजाओं ने एक विशाल संगठित सेना का निर्माण किया था। उनके कुल सैनिकों की संख्या एक लाख पचास हजार थी। उसके पास अश्व, गज एवं पैदल सैनिकों के साथ ही साथ अक अत्यन्त शक्तिशाली नौसेना भी थी। इसी नौसेना की सहायता से श्रीविजय, सिंहल, मालदीव आदि द्वीपों की वजिय की थी। नौ विद्या संबंधी लेखों या पुस्तकों में चोल नाविकों द्वारा प्रकट किये गये विचारों को 15-16वीं शती के उनके अरब उत्तराधिकारी मान्य प्रमाण के रूप में उद्धृत करते थे। चोल शासक स्वयं कुशल योद्धा थे और वे अधिकतर व्यक्तिगत रूप से युद्धों में भाग लिया करते थे। सेना के कई दल थे। लेखों में बडपेर्र (पदाति सैनिक), बिल्लिगल (धनुर्धारी सैनिक), कुदिरैच्चेवगर (अश्वारोही), आनैयाटककलकुंजिरमल्लर (गजसेना) आदि का उल्लेख मिलता है। कुछ सैन्यदल नागरिक कार्यों में भी भाग लेते थे तथा मंदिरों आदि को दान दिया करते थे। कुछ सैनिक सम्राट की सेवा में निरंतर उपस्थित रहते थे तथा उसकी रक्षा के लिये अपने प्राण तक न्योछावर कर सकते थे। ऐसे सैनिकों को वेलैक्कारर कहा गया है। सैनिक सेवाओं के बदले में राजस्व का एक भाग अथवा भूमि देने की प्रथा थी। चोल सैनिक अत्यधिक अनुशासित एवं प्रशिक्षित होते थे।

चोल सैनिक क्रूर तथा निर्दयी भी होते थे। विजय पाने के बाद शत्रुओं की वे हत्या कर देते थे। यहाँ तक कि स्त्रियों तथा बच्चों को भी नहीं छोङा जाता था। शत्रनगरों को भी वे ध्वस्त कर देते थे। पाण्ड्य तथा पश्चिमी चालुक्य राज्यों में उनका व्यवहार इसी प्रकार का रहा।

इस प्रकार चोल शासन व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है, कि प्राचीन युग की यह एक उत्कृष्ट शासन-प्रणाली थी, जिसमें केन्द्रीय नियंत्रण तथा स्थानीय स्वायत्तता साथ-साथ वर्तमान रही।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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