चंद्रगुप्त द्वितीय के वैवाहिक संबंध
गुप्तों की वैदेशिक नीति में वैवाहिक संबंधों का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि राजकन्या कुमारदेवी से विवाह कर सार्वभौम पद प्राप्त किया था तथा समुद्रगुप्त ने भी शक – कुषाणों से कन्याओं का उपहार पाया था।
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अतः चंद्रगुप्त द्वितीय ने भी, जो अपने पिता के ही समान एक कूटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी सम्राट था, सर्वप्रथम वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी आंतरिक स्थिति सुदृढ की। इस उद्देश्य से उसने अपने समय के तीन प्रमुख राजवंशों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये।
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वे प्रमुख तीन राजवंश जिनके साथ चंद्रगुप्त द्वितीय के वैवाहिक संबंध थे ,का विवरण निम्नलिखित है-
नागवंश –
नाग लोग प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से थे। प्रयाग प्रशस्ति में कई नाग राजवंशों का उल्लेख मिलता है, जो मथुरा, अहिच्छत्र, पद्मावती आदि में शासन करते थे। यद्यपि समुद्रगुप्त ने कई नाग राजाओं को जीता था।फिर भी उनकी शक्ति मजबूत थी।प्रयाग प्रशस्ति का लेखक कौन था?
नाग राजाओं का सहयोग प्राप्त करने के लिये चंद्रगुप्त ने नाग राजकुमारी कुबेरनागा के साथ अपना विवाह किया। उससे एक कन्या प्रभावतीगुप्ता उत्पन्न हुई। पूना ताम्रपत्र में उसने अपनी माता को नागरुलसंभूता (नागकुल में उत्पन्न) कहा है। नागवंश में वैवाहिक संबंध स्थापित कर चंद्रगुप्त ने उसका समर्थन प्राप्त कर लिया तथा यह गुप्तों की नवस्थापित चक्रवर्ती स्थिति के दृढीकरण में बङा सहयागी सिद्ध हुआ।
वाकाटक वंश-
वाकाटक लोग आधुनिक महाराष्ट्र में शासन करते थे। उनकी गणना दक्षिण की प्रतिष्ठित शक्तियों में की जाती थी। चंद्रगुप्त को गुजरात और काठियावाङ के शकराज की विजय करनी थी और इस कार्य के लिये वाकाटकों का सहयोग आवश्यक था। अतः वाकाटकों का सहयोग प्राप्त करने के लिये चंद्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावतीगुप्ता का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया। विवाह के कुछ समय बाद रुद्रसेन की मृत्यु हो गयी तथा प्रभावतीगुप्ता वाकाटक राज्य की संरक्षिका बनी क्योंकि उसके दोनों पुत्र (दिवाकर सेन तथा दामोदर सेन) अवयस्क थे।
इस समय में वाकाटक लोग पूरी तरह से चंद्रगुप्त के प्रभाव में आ गये थे। उसी के शासन-काल में चंद्रगुप्त ने गुजरात और काठियावाङ की विजय की तथा विधवा रानी ने अपने पिता को सभी संभव सहायता प्रदान की। वाकाटकों तथा गुप्तों ने मिलकर शकों का उन्मूलन कर दिया।
कदंब राजवंश-
कदंब राजवंश के लोग कुंतल (कर्नाटक) में शासन करते थे। तालगुंड अभिलेख से पता चलता है, कि इस वंश के शासक काकुत्सवर्मन् ने अपनी एक पुत्री का विवाह किसी गुप्त राजकुमार से किया था। वह चंद्रगुप्त का समकालीन राजा था।
चंद्रगुप्त के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम का विवाह कदंब वंश में हुआ था। भोज के श्रृंगारप्रकाश तथा क्षेमेन्द्र कृत औचित्यविचर्चा से पता चलता है, कि चंद्रगुप्त ने कालिदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था। कालिदास ने वापिस आकर अपने सम्राट को सूचना दी कि कुंतल नरेश ने अपने शासन का भार चंद्रगुप्त के ऊपर डाल दिया है, तथा वह स्वयं भोग-विलास में लिप्त है। इस वैवाहिक संबंध के फलस्वरूप चंद्रगुप्त की ख्याति सुदूर दक्षिण में फैल गयी।
Reference : https://www.indiaolddays.com/