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शिवाजी महाराज का भारतीय इतिहास में योगदान

शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज(Shivaji Maharaj) का जीवन परिचय – शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र)में हुआ। छत्रपति महाराज शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले था, शाहजी भोंसले एक शक्तिशाली सामंत थे। शिवाजी की माता का नाम जीजाबाई था, जो जाधव कुल से थी। उनका बाल्यकाल दादा कोंडदेव की देखरेख में हुआ। शिवाजी के बड़े भाई का नाम सम्भाजी था। शाहजी भोंसले कि दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थी। तुकाबाई के एक पुत्र हुआ जिसका नाम एकोजी राजे था।

शिवाजी महाराज

शिवाजी की 8 पत्निया तथा 8 संताने थी। जिनमें 2 पुत्र – संभाजी, राजाराम और 6 पुत्रियां – सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई, कमलाबाई, तथा राजकुंवरी बाई थी।

शिवाजी महाराज का परिचय एवं इतिहास में योगदान

शिवाजी महाराज का भारतीय इतिहास में योगदान

शिवाजी महाराज का बीजापुर पर आक्रमण

जब शिवाजी ने बीजापुर पर आक्रमण किया तब बीजापुर का सुल्तान मोहम्मद आदिलशाह था। वह एक निर्दयी तथा क्रूर शासक था। इसने अपने राज्य में  अन्याय फैला रखा था। शिवाजी को उसका व्यवहार पसंद नहीं आया।

मोहम्मद आदिलशाह के सैनिक बहुत ही क्रूर तथा निर्दयी थे, वे जनता तथा जानवरों के साथ बुरा व्यवहार करते थे।

एक बार शिवाजी अपने पिता शाह जी के साथ बीजापुर गए हुए थे। वहां पर बाजार में उन्होंने देखा कि एक कसाई  गाय को पीटता हुआ उसे बूचड़खाने में काटने के लिए ले जा रहा है। शिवाजी से ऐसा करुण दृश्य देखा नहीं गया उन्होंने अपनी तलवार से रस्सी को काटकर गाय को मुक्त कर दिया। 

जब शिवाजी अपने पिता शाह जी के साथ दरबार में पेश हुए तब उन्होंने आदिलशाह के सामने सर नहीं झुकाया। उनके पिता ने उन्हें समझाया कि बेटा वह सुल्तान है और उनके सामने सर झुकाना हम सबका कर्तव्य है। तो शिवाजी ने अपने पिता से कहा कि है सिर या तो आपके सामने झुक सकता है या फिर मां साहिब के सामने। 

आदिल शाह के सैनिक किसानों के द्वारा करने देने पर उन्हें बहुत भयंकर पीड़ा देते हैं तथा उन्हें जेल में डाल देते हैं शिवाजी ने इसका विरोध किया उन्होंने सैन्य अभियान शुरू किया । जब शिवाजी ने यह अभियान शुरू किया तब उस समय सुल्तान आदिलशाह एक लंबी बीमारी के कारण सैया पर था शिवाजी ने 646 ईस्वी में बीजापुर की तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार कर लिया। तथा यहाँ छुपाया हुआ खजाना निकाल लिया। शिवाजी ने इस खजाने से अपनी सेना का विस्तार किया तथा तोरण के किले से 5 मील पूर्व में मुरूम्बगढ़ के  पुराने किले को नया रूप देकर उसे राजगढ़ का नाम दिया। इसके साथ ही शिवाजी ने बीजापुर के मंत्रियों को रिश्वत देकर उन्हें अपनी तरफ मिला लिया। जिससे बीमार आदिलशाह ने अपनी कमजोर स्थिति का आभास करते हुए शिवाजी के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठाया।शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर बीजापुर के सेनापति ने भी उनके खिलाफ जाने की कोशिश नहीं की।

शिवाजी एवं अफजल खान की कहानी

अफजल खान –

अफजल खान  भारत में बीजापुर सल्तनत के आदिल शाही वंश का एक सेनापति था।

1659 में, बीजापुर सल्तनत ने अफजल खान को छत्रपती शिवाजी महाराज से सामना करने के लिए भेजा।

अफजल खान एक चालाक इंसान था जिसे पता था कि वह शिवाजी के साथ ही युद्ध करके जीत नहीं पायेगा तो उसने अपने एक सैनिक को शिवाजी के पास संधि करने के लिए भेजा। और यह  कहा गया कि अफजल खान और शिवाजी दोनों निहत्थे एक-दूसरे से मिलेंगे तथा संधि करेंगे।

शिवाजी अफजल खान की इस चालाकी से अवगत हो गए। उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए एक लोहे का कवच बनवाया।

वह निश्चित दिन पर अफजल खान से मिले। अफजल खान शिवाजी से बहुत लंबा-चौड़ा था। शिवाजी ने अपने बाएं हाथ में बघनखे तथा दाएं हाथ में बिछवा नाम की तेज कटारी छुपा रखी थी।

जब वह अफजल खान के गले लगे तो अफजल खान ने उन्हें अपने दबोचकरके कटार से मारने की कोशिश की। तो शिवाजी ने अपने बघनखे से अफजल खान के पेट में घुसाकर उसकी किडनी बाहर निकाल दी और उसकी हत्या कर दी।

जैसे ही यह खबर अफजल खान के सैनिकों के पास पहुंची तो उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया। शिवाजी के सैनिक पहाड़ियों में छिपे हुए थे जिन्होंने अफजल खान के सैनिकों को खदेड़ दिया।

शिवाजी तथा औरंगजेब के संबंध

मुगल सम्राट औरंगजेब  शिवाजी की बढ़ती हुई स्थिति को देखकर चिंतित हुआ। औरंगजेब ने शिवाजी को अपने वश में करने की कोशिश की। औरंगजेब ने अपने कई लोगों को शिवाजी को पकड़ने के लिए भेजा था, जिनमें से दो प्रमुख थे जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  • शाइस्ताखां
  • मिर्जा राजा जयसिंह

शाइस्ताखां के साथ शिवाजी का युद्ध

औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी के विरुद्ध भेजा। शाइस्ता खान उसी महल में रुका जहाँ शिवाजी का बचपन बीता था। 15 अप्रैल, 1663  की शाम को शिवाजी अपने 400 सैनिकों के साथ शाइस्ता खां के पास आए।  परंतु उन्हें किले के अंदर जाने से मना कर दिया गया। तो सैनिकों तथा शिवाजी ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में शाइस्ता खान की 6 पत्नियों तथा एक बच्चे की भी हत्या कर दी गई। शाइस्ता खां की भी अंगुली कट गई और वह रात के अंधेरे में भागने में सफल हो गया।

औरंगजेब ने शाइस्ता खां की इस असफलता से नाराज होकर उसे बंगाल भेज दिया। इसके बाद औरंगजेब ने  शहजादा मुअज्जम तथा मारवाड़ के जसवंत सिंह को शिवाजी को हराने के लिए भेजा। परंतु वे दोनों भी असफल रहे।

मिर्जा राजा जयसिंह से शिवाजी का विद्रोह

 शाइस्ता खां पर विजय हासिल करने के बाद शिवाजी का मनोबल बढा और शिवाजी ने खुलकर मुगल किलों पर अधिकार करना शुरू कर दिया। शिवाजी को सूरत के समृद्ध किले से एक करोङ रुपए के आभूषण तथा रत्न हाथ लगे।

औरंगजेब ने शिवाजी को रोकने के लिए आमेर के कुशल कूटनीतिज्ञ  मिर्जा राजा जयसिंह को भेजा। जय सिंह ने शिवाजी के दुश्मनों तथा मराठों को रिश्वत देकर अपनी तरफ मिला लिया। वह एक कूटनीतिज्ञ था जिसने शिवाजी के खिलाफ युद्ध न करके उसे एक मौके पर बंदी बनाने का विचार बनाया।

आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर शिवाजी को पुरंदर के किले में घेर लिया। जय सिंह द्वारा पुरंदर किले की घेराबंदी करने के बाद शिवाजी को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। 11 जून 1665 ई. को शिवाजी महाराज व मुगलों के मध्य पुरंदर की संधि हुई।

पुरंदर की संधि के कई नियम थे जैसे कि-

  • छत्रपती शिवाजी महाराज ने तेईस (23 तेईस) किलों को रखा, साथ में 100,000 (1 लाख) हूणों की आय का क्षेत्र था।शिवाजी अपने ये 23 किले मुगलों को लौटा देगा। 
  • छत्रपती शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपती संभाजी महाराज को मुगलों के अधीन 5,000-मजबूत बल की कमान सौंपी गई थी।
  • यदि शिवाजी बिजापुर के नियंत्रण में कोंकण क्षेत्र पर दावा करना चाहते थे, तो उन्हें मुगलों को 4 मिलियन (40 लाख) का भुगतान करना होगा।
  • आवश्यकता पड़ने पर बीजापुर को सहायता प्रदान करना।
  • शिवाजी का मुगल दरबार में उपस्थित होना आवश्यक नहीं है। 

इन आवश्यकताओं के साथ, शिवाजी आगे की राजनीतिक वार्ता के लिए औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा जाने के लिए सहमत हुए।

मई 1666 ईस्वी को शिवाजी औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुए। वहां पर उन्हें मनसबदारों की लाइन में खड़ा किया गया। उनके आगे मनसबदार जसवंत सिंह खड़ा था। यह वही जसवंत सिंह था जिसको शिवाजी के सैनिकों ने युद्ध में भगा दिया था।शिवाजी ने कहा कि जिस जसवंत सिंह की पीठ मेरे सैनिकों ने देखी थी। मुझे दुख है कि मुझे उसके पीछे खड़ा होना पड़ रहा है।

शिवाजी ने मुगल दरबार में सम्मानजनक व्यवहार नहीं मिलने पर दरबार छोड़ करके मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के यहां आ गए।

औरंगजेब ने शिवाजी को जयपुर भवन में गिरफ्तार कर लिया तथा उन्हें मार डालने का निश्चय किया। शिवाजी ने इस मुश्किल घड़ी में भी अपना धैर्य नहीं खोया तथा नए तरीकों के बारे में सोचने लगे ताकि वह जल्द से जल्द वहां से बच निकल सकें। 

शिवाजी ने आमेर की जेल में बीमार होने का नाटक किया जिसकी वजह से उनके लिए हमेशा फल फ्रूट आने लगे। पहले तो द्वारपाल फलों की टोकरी का गहन निरीक्षण करते थे परंतु बाद में वे लापरवाह हो गए। शिवाजी ने इसका फायदा उठाते हुए उन टोकरियों में बैठ करके अपने पुत्र संभाजी के साथ वहां से निकल आए।

इतने दिनों तक जेल में रहने के बाद शिवाजी का स्वास्थ्य गिर चुका था। वह वापस पुणे आ गए। 

पुणे में एक नए सूबेदार को नियुक्त किया गया जिसका साथी जसवंत सिंह था। जसवंत सिंह शिवाजी के प्रति सहानुभूति रखता था। वे युद्ध विराम चाहते थे और शिवाजी का स्वास्थ्य भी कमजोर हो चुका था।1667 ईस्वी में मराठा तथा मुगलों की संधि स्थापित हुई। इस संधि की मध्यस्था जसवंत सिंह ने की इस संधि की मुख्य शर्त थी – औरंगजेब ने शिवाजी को एक स्वतंत्र राजा माना और उन्हें “राजा” की उपाधि दी।

परंतु, औरंगजेब शिवाजी के विरुद्ध चाल चलने से कभी बाज नहीं आया। उसने संधि के बाद भी शिवाजी के विरुद्ध हमेशा कुछ न कुछ तैयार रखा। जिसके कारण शिवाजी ने वापस संधि के नियमों को तोड़ते हुए उन सभी किलों पर अधिकार कर लिया जो उन्होंने खोए थे। 

राज्याभिषेक

जून 1674 ईस्वी को शिवाजी ने बनारस के गंगाभट्ट नामक ब्राह्मण को बुलाया और उसी दिन उन्होंने अपने राज्याभिषेक करवाया। उन्होने कई उपाधियां जैसे छत्रपति, हिंदू धर्म सुधारक, गो ब्राह्मण प्रतिपालक धारण की। राज्य अभिषेक का कार्यक्रम उनकी राजधानी रायगढ़ में किया गया था

शिवाजी महाराज की नीतियां

शिवाजी एक हिंदू शासक थे जो धर्म सहिष्णु भी थे। उन्होंने किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया। 
उनके लिए हर हिंदू उतना ही महत्वपूर्ण था जितना हर एक मुसलमान। उनकी सेना में मुसलमान तथा हिंदू सैनिक थे। उन्होंने अपनी सभी प्रजा को धर्म को मानने की आजादी दी तथा उन्हें अपने पूजा-पाठ या नमाज पढ़ने के लिए भी खुली आजादी दी।शिवाजी ने मुस्लिम पीरों, फकीरों को दान दिया तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की।

शिवाजी महाराज सभी इंसानों को महत्त्व देते थे।उन्होंने कभी भी किसी भी महिला के साथ दुर्व्यवहार या अपमान नहीं किया।उन्होंने हर एक वैवाहित स्त्री को अपना मां समझा। कहा जा सकता है कि शिवाजी महाराज स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार रखते थे।


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