प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल द्वारका
गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र क्षेत्र में पश्चिमी समुन्द्रतट के समीप द्वीप पर स्थित द्वारका भगवान कृष्ण की राजधानी थी। महाभारत से पता चलता है कि कृष्ण ने जरासंध के आक्रमण से बचने के लिए मथुरा छोड़कर समुन्द्र के बीच द्वारका में अपनी राजधानी बसाई थी। इसे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित कहा गया है।
महाभारत में इस नगर का विस्तृत विवरण मिलता है। हरिवंशपुराण एवं माघकृत शिशुपालवध में भी इसकी रमणीयता का वर्णन है। ‘यहाँ के भवन सुर्य और चन्द्रमा के समान प्रकाशमान तथा मेरू पर्वत के समान ऊँचे थे। नगर के चारों ओर चौड़ी खाइयाँ थी। इसके उत्तर दिशा में रैवतक पर्वत उसके आभूषण की भाँति शोभायमान था।’
कृष्ण के साथ सम्बन्ध होने से द्वारका का धार्मिक महत्व अत्यधिक था। इसकी गणना सात मोक्षदायिका पुरियों में की गयी है। पुराणों में इसके महात्म्य का वर्णन मिलता है। गरूड पुराण में कहा गया है कि यहाँ वास करने से मनुष्य आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति करता है। (द्वारका च पुरीरम्या भुक्ति मुक्ति प्रदायिका)। स्कन्दपुराण के अनुसार यहाँ रहने वाले को सैकड़ों राजसूय यज्ञों का फल मिलता है-
अश्वमेध सहस्त्रं तु राजसूयशतं कलौ। पदे पदे च लभते द्वारकां गच्छतो नरः।। -स्कन्दपुराण, 220/28
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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