अलाउद्दीन खिलजीइतिहासखिलजी वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

अलाउद्दीन खिलजी के समय में घोङों,दासों और मवेशियों के बाजार

अलाउद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी के समय में घोङों, दासों और मवेशियों के इन तीनों बाजारों पर चार सामान्य नियम लागू होते थे – 1.) किस्म के अुसार मूल्य का निर्धारण, 2.) व्यापारियों और पूँजीपतियों का बहिष्कार, 3.) दलालों पर कठिन नियंत्रण, 4.) सुल्तान द्वारा बार-बार जाँच-पङताल।

सेना के लिये स्वीकृत होने वाले घोङे अपनी नस्ल व योग्यता के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किए गये थे। इसके लिये अनुभवी घोङे के दलालों से सहायता ली गयी थी। प्रथम श्रेणी 100 से 120 टंके, द्वितीय श्रेणी 80 से 90 टंके, तृतीय श्रेणी 60 से 70 टंके और छोटे भारतीय टट्टू जो सेना के लिये उपयुक्त नहीं माने जाते थे 10 से 20 टंके मूल्य के रखे गए। कीमतों को कम बनाए रखने के लिये अलाउद्दीन ने घोङों के दलालों और मध्यस्थों से कठोरता का व्यवहार किया। उन्हें नियंत्रण में लाना सरल न था। जियाउद्दीन बरनी का कहना है कि उन दिनों दलाल और मध्यस्थ अत्यंत उद्दंड, विद्रोही प्रकृति के लोग थे। वे क्रेता व विक्रेता दोनों से प्रत्येक लेन-देन में कमीशन लेते थे। वास्तव में वे लोग बाजार के राजा थे। परिणामस्वरूप अलाउद्दीन को उन्हें दबाने में कठिनाई हुई। उसने दुष्ट दलालों को समाप्त करने के लिए कठोर नियम बनाए। उन्हें आजीवन कारावास का दंड दिया गया। परंतु ये दंड केवल कुछ समय तक दिए गए। फरिश्ता का कहना है, जब कुछ समय बाद मूल्य स्थिर हो गए तो अलाउद्दीन को व्यापारियों पर दया आई और उसने उन्हें क्रय-विक्रय की अनुमति दे दी। किंतु वे सुल्तान द्वारा निश्चित दरों का उल्लंघन नहीं कर सकते थे। यहाँ व्यापारियों से फरिश्ता का आशय न केवल घोङे बल्कि दासों और मवेशियों के तीनों बाजारों के दलालों से है।

अगला अधिनियम यह था कि प्रमुख घोङों के दलाल घोङों सहित प्रत्येक चालीस दिन या दो मास बाद सुल्तान के सामने लाए जाएँगे। उनके आने पर वह उनसे कठोर और विस्तृत जानकारी प्राप्त करता था और यह देखता था कि प्रत्येक प्रकार का घोङा उसकी निर्धारित कीमत में ही बेचा जाता हो। बरनी के अनुसार उनसे इतनी कठोरता से व्यवहार किया जाता था कि दलाल मृत्यु की कामना करते थे। इस भय के कारण दलाल सावधान रहते थे और ग्राहकों को ठगते नहीं थे। तीनों बाजारों में अलाउद्दीन ने गुप्तचर भी रखे थे। परिणाम यह हुआ कि एक-दो वर्षों में घोङों का मूल्य स्थिर हो गया।

इन्हीं पद्धतियों से दासों और पशुओं की कीमतें निश्चित की गयी। बरनी की सूची के अनुसार घर में काम करने वाली दासी का मूल्य 5 से 12 टंके, विषय भोग के लिये दासी का 20 से 40 टंके, सुंदर युवा दास 20 से 30 टंके, अपने कार्य में दक्ष दास की कीमत 10 से 15 टंके तथा अयोग्य युवक दास की कीमत 7 से 8 टंके थी। यदि कोई 1000 या 2000 टंका मूल्य की अत्यंत सुंदर कन्या बाजार में विक्रय के लिये लाई जाती थी तो कोई भी उसे क्रय करने का साहस नहीं करता था। उन्हें भय रहता था कि कहीं मुनहिनयान (गुप्तचर पुलिस) सुल्तान को सूचना न दे दें कि अमुक व्यक्ति इतना धनवान है कि उसने इतनी अधिक कीमत दे दी है।

ऐसे ही नियम पशुओं के बाजार में भी लागू किए गए। एक उत्तम भारवाहक पशु जिसकी कीमत तुगलक काल में 40 टंका थी, अलाउद्दीन के समय 4 या 5 टंका में बिकता था। दुधारू भैंस 10 से 12 टंका, दुधारू गाय 3 से 4 टंका, मांस के लिये गाय 1 से 2 टंका, मास के लिये भैंस 5 से 6 टंका और मोटी बकरी या भेङ 10 से 14 जीतल तक बिकती थी।

इन बङेउनकी बाजारों के अलावा अन्य छोटी वस्तुओं के मूल्य उनकी उत्पादन लागत के आधार पर निश्चित किए गए थे। मिष्ठानों, तरकारियों, रोटी, कंघियों, चप्पलों, मोजों, जूतों, प्यालों, मटकों, कटोरियों, सुइयों, सुपारी, पान, गन्ना, मिट्टी के बर्तन, रंग गुलाब और हरे पौधे अर्थात सामान्य बाजार में बिकने वाली प्रत्येक वस्तु की मूल्य सूची बनाई गयी। बरनी के अनुसार राजसिंहासन द्वारा स्वीकृत मूल्यसूची वाणिज्य मंत्रालय को दे दी गयी। दीवान-ए-रियासत या दिल्ली के बाजारों के महानिरीक्षक ने विभिन्न बाजारों के शहना नियुक्त किए। प्रत्येक शहना को उसके बाजारों के लिये दरों की सूची मिलती थी और वे उन्हें लागू करते थे।

अलाउद्दीन ने मूल्य नियंत्रण संबंधी आदेशों के उल्लंघन के लिये कठोर दंड देने का आदेश दिया और वाणिज्य मंत्री (दीवान-ए-रियासत) नाजिर याकूब ने उन्हें यथाशक्ति कार्यान्वित किया। उसकी मान-मर्यादा बढाने के लिये उसे साम्राज्य का मुहतसिब (सेंसर) और नाजिर (नाप-तौल अधिकारी) भी नियुक्त किया। नाजिर याकूब की कठोर देखभाल के बावजूद भी व्यापारी ग्राहकों को छलते थे, खोटे बाट रखते थे, और अच्छी किस्म की वस्तुएँ अलग रखते थे। परिणामतः अलाउद्दीन अपने छोटे गुलाम लङकों को कुछ जीतल देकर भिन्न-भिन्न वस्तुएँ, खरीदने को भेजता था। याकूब इन लङकों द्वारा लाए गए सामान की जाँच करता था और यदि कोई दुकानदार कम तौलता था, तो उसे कठोरतम दंड दिया जाता था। इस कङे नियंत्रण का प्रभाव यह पङा कि बाजार व्यवस्थित हो गया।

भूमि अनुदानों का अंत – तुर्की सुल्तानों में अलाउद्दीन पहला शासक था जिसने वित्तीय और राजस्व सुधारों में गहरी रुचि ली थी। अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम उन समस्त भूमि अनुदानों को वापस ले लिया जो अमीर वर्ग, शासकीय कर्मचारियों, विद्वानों और धर्मशास्त्रियों के पास राज्य की ओर से दी गयी भेंट, अनुदान या पुरस्कार के रूप में थे। ये छोटी अक्ताओं के समान थे, अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों को दिए गए ऐसे भूखंड थे, जिनका राजस्व उनके वेतन या पुरस्कार के तुल्य माना जाता था। बलबन ने इन संपन्न भूस्वामियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने का प्रयत्न किया था पर उसे पूर्ण सफलता नहीं मिली थी।

गद्दी पर अपनी शक्ति के मजबूत होते ही अलाउद्दीन ने अमीरों का दमन किया। सुल्तान ने आदेश दिया कि सारी भू-संपत्ति, ग्राम और अन्य भूमि, जो लोगों के पास मिल्क (संपत्ति), इनाम और वक्फ (उपहार) के रूप में है अब वापस ले ली जाए और उसे खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया जाए। किंतु अलाउद्दीन ने समस्त अमीरों की भू-संपत्ति जब्त नहीं की थी। कुछ अमीर ऐसे भी थे जिनके पास भूमि थी। किंतु उसने सारे भूमि अनुदानों को वापस लेना और अपने अधिकारियों को नकद वेतन देना ही श्रेयस्कर समझा था।

सुल्तान ने भूमि अनुदान वापस लेने के बाद ग्राम के मुखियों (मुकद्दमों), जमीदारों (खुतों) और साधारण किसानों (बलाहारों) से संबंधित आदेश जारी किए। खूतों और मुकद्दमों के विशेषाधिकार छीन लिए। उनके पास इतना धन नहीं छोङा गया कि वे घुङसवारी कर सकें, अच्छे वस्त्र धारण कर सकें और विलासितापूर्ण या खर्चीली प्रवृत्तियों को बढा सकें। जमींदारों की संपन्नता व अहंकार को दबाने के लिये किसानों से धन वसूल करने पर रोक लगा दी गयी। जैसा कि मोरलैंड लिखते हैं और बरनी के अध्ययन से भी यही प्रतीत होता है कि वास्तव में प्रश्न ग्रामीण नेताओं और परगनों तथा ग्रामों के सरदारों और मुखियों की शक्ति को नष्ट करने का था। अलाउद्दीन ने ऐसे अनेक उपाय अपनाए जिससे उसके राज्य में कोई भी इतना संपन्न या शक्तिशाली न रहे कि राज्य के लिये भविष्य में संकट का स्त्रोत हो सके।

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